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इसि-भासियाई केवल जिन-मूर्ति-पूजा या हरिहंत चइयं के पाठ लिये आगों को अप्रामाणिक माना जाय तो उपांग सूत्र ही नहीं अंगमूत्र भी छोड़ने होंगा क्योंकि 'अरिहंत चेझ्याई पाठ तो 'उपासक दशांग' और ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र में भी मिलता है | उपासक आनंद अन्य तीर्थों में विहित 'अरिहंत चेइयं' के वन्दन पूजन का परित्याग करता है । द्रौपदी जिनमूर्ति का पूजन करती है । अतः यह तो नहीं कहा जा सकता कि अरिहंतचइय' शब्द के लिये आगमों का परित्याग किया गया है।
पदिसंबज मोसाय का आधार मनाया जाय और कहा जाय कि सर्वज्ञ भ० महाबीरद्वारा प्रणीत सूत्रों को ही प्रमाण माना जायगा । इस आधारपर आगमों की छटनी करना चाहेंगे तो इस छटनी में बहुत कुछ खोना पडेगा। क्योंकि सर्वज्ञ प्रणित आगमों में केवल द्वादशांगी का ही समावेश होसकता है यदि ऐसा कहा जाए की नंदीसूत्र में जो आगों का परिचय दिया गया है उस रूप में वे उपलब्ध नहीं हैं । पर नंदी सूत्र के आगम परिचय के अनुकूल तो आज एक भी आगम नहीं है। नंदी सूत्र में जहाँ द्वादशांगी का परिचय मिलता है जहाँ हर अंगसूत्र की पदसंख्या अपने पूर्ववर्ती से दुगुनी है | आज न तो पदसंख्या ही उतने रूप में उपलब्ध है न द्विगुणित वृद्धि ही है। क्रम का इतना विपर्यास है कि व्यारूपा प्रज्ञप्ति के उत्तरवर्ती सभी सूत्र उससे छोटे ही है। ज्ञाता धर्म कथांग सूत्र की उन हजागे कथाओं में से केवल गिनी चुकी कथाएं ही उपलब्ध हैं।
प्रस्तुत प्रश्न का दूसरा उत्तर होगा क्या परिवर्धित और परिवर्तित आगम को मान्यता प्रदान नहीं की गई ? आगमों का हम जरा गहराई से अध्ययन करें तो अनुभव होगा भ० महावीर के परिनिर्वाण के बाद आगमों में परिवर्तन ही नहीं परिवर्द्धन भी हुआ है । स्थानांग सूत्र के सातवें स्थानक में सप्त निलवों के प्रकरण में गोष्ठामाहिल का भी उल्लेख आता है। जबकि गोष्ठागाहिल भ० महावीर के निर्वाण के करीब तीन सौ वर्ष बाद हुआ है और स्थानांग सूत्र की रचना भ० महावीर के समय में संपन्न हो चुकी थी, क्योंकि वह अंगसूत्र है। तीन सौ वर्ष बाद की घटना का उसमें समावेश होना यह सिद्ध करता है कि अंग साहित्य की रचना के बाद भी उसमें परिवर्तन हुआ है। उत्तरवर्ती आचार्यों ने अपनी समसामयिक घटनाओं का यथास्थान उसमें प्रक्षेप किया है।
आगमों में स्वल्प परिवर्तन ही नहीं कहीं पूग आमूलचूल परिवर्तन भी हुआ है । उदाहरण के लिये प्रश्न व्याकरण सूत्र को ही ले | श्री नंदी सूत्र में उसका परिचय कुछ अन्य रूप में मिलता है और आज वह बिलकुल भिन्नरूप में उपलब्ध है । देखिये नंदी सूत्र में प्रश्नव्याकरण सूत्र का परिचय इस रूप में मिलता है
से किनं पाहवामरणाई ? पपहवागरणे सुर्य अत्तर पलिण सयं, अत्तर क्षपसिण समं, अनुत्तर पसणा पसिणसयं, तंजहा अंगुट्ठ पसिगाई, बाहु पासिणाई, अदाग पसिणाई अचे विविचित्ता बिताइसया, नागसुबन्नेहि रवि दिया संवाया भाषति ।
-नंदी सूत्र ५४
प्रश्न व्याकरण में अंगुष्ठ प्रश्न आदि ३२४ प्रक्ष, अप्रश्न और सैकड़ों विद्याएं है । पर आज प्रश्नव्याकरण पंचाश्रय और पंचसंवर वर्णनात्मक है | स्थानांग सूत्र के दशम स्थानक में दस दशाओं के वर्णन में प्रक्षव्याकरण दशा का वर्णन कुछ भिन्न रूप में ही मिलता है । वहां प्रश्न व्याकरण के उपमा संख्या इसिमासियाई आदि दस अध्ययन बताये हैं।
अतः इस तर्क में भी कोई प्राण नहीं है कि श्री नंदीसूत्र में उल्लिखित अन्य आगम परिवर्तित है अतः हमें मान्य नहीं है।
१. उपासक दशा, २ ज्ञातासूत्र.