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________________ नयम अध्ययन અને ક્યાંક બંધ છે. આજે દુનિયાનું ચિત્ર છે. એ રાણેના સ્વાર્થ ખાતર અંદરોઅંદર ઘડે છે તે સંઘર્ષમાંથી યુદ્ધની જવાળા ફૂટી નીટ છે. હજારો સૈનિકો અને હજારો નાગરિકો તે જ્વાળામાં હોમાઈ જાય છે, શસ્ત્રોને લીધે કોઈના હાથ કપાઈ જાય છે, કોઈના પગ કપાઈ જાય છે, ફર્સ છે અને કોઈ બમ પાંડ છે. યુદ્ધના આવા નાના નાના શાઓ તે રોજ જોવા મળે છે. અર્થાત્ જ્યાં સુધી કર્મ છે ત્યાં સુધી દુઃખ છે જ ને છે. (મોજૂદ છે. अंडुसंधणकई बंधणाई, त्रियलयंधणापि, जावजीवर्षधणाणि, नियलजुयल संकोडण-मोडणाई यियुप्पाडणाई दसणुप्पाडणाई, उल्लंबणाई ओलंघणाई घसणाई पीलणाई सीहपुच्छणाई कडग्गिदाहणाई, भत्तयाण निरोहणाई दोगश्चाई दोभसाइं दोमणसाई ॥ अर्थ:-शृंखला और बेटी के बन्धन, यावज्जीवन के बन्धन, युगल रूप में शंखला में जकडे, संकोचन मोडन आदि काट, कहीं हृदय उखाडे जा रहे हैं, कहीं किसी के दात उखाडे जा रहे हैं। कहीं पर किसी क्ष की शाखाओं से मांधा जा रहा है, कहीं पर किसी को श्रृंखला से बांध कर ऊपर लटकाया आ रहा है। कहीं किसी को घसीटा जा रहा है, कहीं पर किसी का घोलन हो रहा है, कहीं पर पीडन किया जा रहा है। कहीं पर सींग को पूंछ से बांध कर चमड़ी उवेदी जा रही है । कहीं पर कटामिदाह हो रहा है, कहीं पर भोजन और पानी नहीं दिया जा रहा है। कोई दरिद्रता के दुःख से पीडित हैं। कोई भोजन के अभाव से या अभोज्य भोजन से दुःखी है। कोई दुर्मन है, दिन रात आर्थिक या पारिवारिक कठिनाइयों से हमेशा चिंतित रहते हैं। સાંકળ અને બેડીના બંધન, ચાવજ્જવનના બંધન, યુગલ રૂપમાં શંખલામાં જ કડાયેલો, ફુલાવું સંકોચાવું તુટવું વગેરે દુઃખ, ક્યાંક હદય ખાલી કર્યું જઈ રહ્યા છે, જ્યાંક કોઈના દાંત પાડવામાં આવી રહ્યો છે, કયાંક ફોઈ વૃક્ષની ડાળીથી બંધાઈ રહ્યો છે, કયાંક કોઈનાં સાંકળોથી બાંધીને ઉપર લટકાવી રહ્યા છે ક્યાંક કોઈને ઘસેડાવાઈ રહ્યો છે. ક્યાંક કોઈને માર મારાઈ રહ્યો છે, ક્યાંક કોઈ પર બળાત્કાર થઈ રહ્યો છે, જ્યાંક આગળ શિગડાને પુછડી બાંધી ચામડી ઉતરવાઈ રહી છે, તો ક્યાંક ઘોર અગ્નિદાહ થઈ રહ્યો છે, કોઈ જગ્યાએ અબપાણી પણ અપાતા નશી. કોઈ દરિદ્રતાના દુઃખથી પીડાય છે, કોઈ અન્નના અભાવથી અગર અણગમતા અન્નથી દુઃખી થઈ રહ્યા છે. કોઈ આથક કે પારિવારિક આપત્તિ શ્રી હંમેશા ચિંતિત છે, यहाँ दुःख पूर्ण विभीषिकामय संसार का नाम-चित्र दिया गया है। चारों ओर दुःख की और अशान्ति की लपटें हैं। बहत से प्राणी मात्र की क्रूरता से पीवित हैं। कोई आर्थिक चिन्ताओं से पीडित है, कोई दारिद्य की अमि से मुलसे जा रहे हैं। कोई अर्थिक कष्ट से युक्त हैं तो पारिवारिक समस्याओं में उलझे रहते है। लाखों की सम्पत्ति होने पर भी पारिवारिक समस्याएं मानव को अशान्त बनाए रखती है। टीका:-मन्दु इति शृंखला सया बन्धनानि निगदधन्धनानि सिंहपुष्यनानित्ति श्रीअभयदेवेन औपपातिकवृत्ती मेहनत्रोटनमिति व्याख्यातानि कडरिगदाहणाइति कट फेन वेष्टितुं प्रदीपनं इति दशाश्रुतस्कंधचुराणिः दोष कट्यं केवलं दुश्वानि प्रत्यनुभवमानो जीवा संसारसागरं अनुपरिवर्तने ॥ अर्थात् अन्दु शंखला से बांधा जाना निबिड बन्धन । सिंह पुरधनानि की औपपातिक सूत्र की दीका में आचार्य अभवदेव मेहणत्रोटन" के रूप में व्याख्या करते हैं । कीरिंगदाह से मतलब है कटक से बांधने के लिए प्रदीप्त करना ।" दशाश्रुतस्कंधचूर्णि । शेष सभी सरल है। केवल दुःख का अनुभव करता हुआ आत्मा संसार-सागर में भटकता है। "सिंह-पुरुणाई" का एक अर्थ यह होता है, खींग को पूंछ से बांध कर उसकी चमड़ी उधेदना । दूसरा अर्थ यह भी होता है कि किसी आदमी के गर्दन के पिछले भाग की चमबी उत्तार कर सिंह की पूंछ की आकृति में लटकाया जाता है। कटानि बांस के दो भागों को मिलाकर जलाना कटामि कहलाता है, कि दूसरा अर्थ होता क्ट नामक घास में लपेट कर आदमी को जला डालना कटामि कहलाता है। भाउमरणारं भर णिमरणाई पुत्तमरणाई धूयमरणाई भज्जमरणाई अण्णाणि य सयणमित्त बंधुवरंगमरणाई तेसिं च णं दोगचाई दोभाई दोमणस्साई अप्पियसंवासाई पियत्रिपओगाई हीलणाई जिसणाई गरहणाई पचहणारं
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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