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________________ नयम अध्ययन मिथ्यात्व और कषायों की प्रधियों ही दुःखों के लिये बद्धमूल हैं और इसे मैं अपने पुरुषार्थ के द्वारा ही भेद सकता हूँ। यह परिशाम पाते ही आत्मा संग्रम में स्थित होता है और संयम की परिणति में लीन मुनि समस्त दुःखों से मुक्त हो जाता है। टीका:-तसाद य एतद् ग्रंथजालं विविधानि लोकबंधनानि विज्ञाय दुःखं दुःखावह चिच्या संयमे तिष्ठति स खलु मुनिर्दुःसाद् विमुच्यते। अतः जो ग्रंथ जालरूप विविध प्रकार के लोकबंधनों को जानकर दुःख को दुःख का हेतु जानकर संयम में रहता है वही साधक दुःख से विमुक्त होता है। एवं से वुद्ध०॥ गतार्थ केतलीपुत्र अर्हतर्णिमोक्त ॥ इति केतलीपुत्राध्ययनं ॥ ॥ इति अष्टम अध्ययन समाप्त ॥ नवम अध्ययन णवम महाकासवझयर्ण महाकाश्यप अर्हतर्षिभाषित । जन्म और मृत्यु की परम्परा कर्म के अस्तित्व को सूचित करती है। जब तक कर्म उपस्थित है तब तक भरभ्रमण चालू रहेगा। कार्य की समाति के लिए कारण को समाप्त करना होगा। संलार रंग मंच पर होने वाली घटनाएं, विचित्रताएं, दुःख और त्रास के रोमांचक दृश्य पर्दे के पीछे एक ही सूत्रधार काम कर रहा है, वह है कर्म जब तक कर्म सूत्रधार है। भयानक नाटक के दृश्यों को समाप्त करने के लिए सूत्रधार को अलग हटाना होगा । कर्म की फिलोसफी ही प्रस्तुत अध्ययन का विषय है। जाव जाव जम्मं ताव ताव कम्म, कम्मुणा खलु भो पया सिया, समियं उवनिचिजद, अवचिजह य, इइ महाकासेवेण अरहता इसिणा बुइत ॥ अर्थ:-जब तक जन्म है तब तक कम है। कर्म से ही प्रजा उत्पन्न होती है। सम्यक् चरित्र के अनुसरण से कमी का अपचय होता है और वे सम्पूर्ण क्षय भी हो सकते है । महा काश्यप आहेतर्षि इस प्रकार बोले : गुजराती भाषान्तर: જ્યાં સુધી જન્મે છે ત્યાં સુધી કર્મ છે. કર્મથી જ પ્રજા ઉત્પન્ન થાય છે. સમ્યફ ચારિત્ર્યના અનુસરણથી કમ શિથિલ થાય છે અને તેનો સંપૂર્ણ ક્ષય પણ થઈ શકે છે. મહાકાય અહેતર્ષિ આ પ્રમાણે બોક્યા. महर्षि काश्यप एक महत्व पूर्ण सिद्धान्त बताते हैं। जहां-तक अन्म की परम्परा है वहां तक कर्म की परम्पार है। जन्म और कर्म एक दूसरे पर आधार रखते हैं। कर्म से जन्म है और जन्म लेने पर फिर नए कमों का संचय है। अतः कर्म-चक्र की गति को रोकने के लिए हमें जन्म-परम्परा को रोकना होगा। कर्म-परम्परा को रोकने का प्रमुख साधन सम्यक् चरित्र है। दर्शन से आत्मा तस्व का साक्षात्कार करता है, सम्यक ज्ञान के द्वारा उसकी विशेष स्थिति को समझता है और सम्यक् चरित्र के द्वारा उसके प्रवाह को रोकता है अथवा प्रवाह में कमी तो अवश्य लाता है। टीका-पावट यावजन्म तावत् तास्त कर्म, कर्मणा खलु भो प्रजा स्यात, सम्यक् चरितं मनुस्त्योऽपचीयतेउपचीयते च कर्म ।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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