________________
षष्ठं अध्ययन
३९
वासना वासित आत्मा स्वतः स्वभाव दशा की हत्या करता है । आत्म-गुणों को नष्ट कर आत्मा का पतन करता है, अतः वह आत्मा का शत्रु ही है। दूसरी ओर मोह के आवेग में आत्महत्या करने वालों की भी कमी नहीं है। अतः साधक को इससे दूर रहने का संकेत किया गया है। वह विवर्जन केवल पार्थिव ही न हों अपितु मानसिक भी होना चाहिये । जितनी दूरी है उतना ही मन शान्त रहेगा ।
मनती सुकमप्पाणं पडिबद्धे पलायते ॥ विरते भगवं वक्कलचीरि उग्गतवेत्ति ॥ १२ ॥
एवं से ० ॥
अर्थ :--जो अपने आपको मुक्त मान लेता है वह प्रतिबद्ध होकर पलायन करता है। किन्तु भगवान वल्कलची ही संसार के दावानल से बाहर निकलते हैं ।
गुजराती भाषान्तर :
જે સ્વયં પોતાને મુક્ત માની બેસે છે, તેને સામેથી ( કર્મથી ) અંધાઈ ને ભાગવું પડે છે. પરંતુ ભગવાન વલીરિ જ સંસારરૂપી દાવાનળમાંથી બહાર નીકળે છે,
बहुत से लोक अपने आपको मुक्त मानते हैं, किन्तु केवल मान लेने मात्र से आग उण्डी नहीं हो जाती। मुक्त मान लेने पर भी वह आत्मा कर्म-श्रृंखलाओं से प्रतिबद्ध होकर पलायन करता है। तो वह 'बदतो व्याघात' हुआ मुक्त आत्मा पुनः कर्मबद्ध हो संसार में परिभ्रमण नहीं करेगा ।
छटुं वलचीरिणामज्झयणं ॥
॥ वक्कलची रिप्रो पर्छ अध्ययनं समाप्तम् ॥