________________
षष्ठ अध्ययन
"हए" का पाठान्तर "रवे" मिलता है। जिसका अर्थ शब्द होता है, जो कि लिन्न रस्सी के साथ ठीक नहीं बैठता है।
णाचा अकण्णधाराव सागरे वायुणेरिता ॥
चंचला धावते णावा सभावाओ अकोविता ॥५॥ अर्थ :-नाविक्र ( मलाह ) रहित नौका वायु से प्रेरित होकर सागर में इतस्ततः दौलती है । इसी प्रकार अकोविंद मानव भी स्वभाव से भटकते है। गुजराती भाषान्तर:
નાવિક વગરની નાવ હવાને લીધે સમુદ્રમાં આમ તેમ દોડે છે તેમ અજ્ઞાની માણસ પણ (સંસારમાં વાસનાથી પ્રેરાઈને) આમ તેમ છોડે છે.
सागर में पड़ी हुई मल्लाह रहित नौका वायु के थड़ों से इतस्ततः लक्ष्य-हीन दौड़ती है। ज्ञान-शून्य आत्मा अपने आपको इच्छाओं की लहरों पर छोड़ देते हैं । इच्छाओं की लहरों पर तैरने वाला लक्ष्य हीन होकर भटक जाता है। टीका:-कर्णधारा नौरिव सागरे वायुनेरिता चपला धावते नौरिति द्वितीयपद स्वभावादकोविदा । अर्थ गतं ।
मुक्कं पुष्पं घ आगासे णिराधारे तु से णरे ॥
दढसुंबणिकद्धे तु विहरे बलवं विहिं ॥ ६॥ अर्थ :-आकाश में फेंका हुआ पुष्प, निराधार मानव और दृढ़ रस्सी से बद्ध पक्षी के लिये विधि ही बलबान है। गुजराती भाषान्तर:
આકાશમાં ફેંકાયેલા ફૂલ, (સમુદ્રમાં પડેલો) નિરાધાર માણસ અને મજબૂત દોરડાથી બંધાયેલા પક્ષી એ બધાની સફળતા અને શાન્તિ ભાગ્યને આધારે છે.
आकाश में उड़ता हुआ पुष्प कहाँ जा गिरेगा, अपार सागरमें पडा मानन कहाँ थाह पाएगा और सुदृढ़ सूत्र से अंधा पक्षी का लक्ष्य पर पहुँचेगा? उसके लिये कोई कुछ कह नहीं सकता। उसका भाग्य ही वहाँ एक मात्र सहायक हो । अर्थात् इनका लक्ष्य स्थान पर पहुँचना विधि के हाथों में है 1 अथवा आकाश में फेंके गये पुष्प की भांति बइ मनुष्य निराधार है। तथा बंधे हुए पक्षी के भांति उसका जीवन है। उसके लिये विधि ही बलवान है। अथवा उसकी मुक्ति के लिये तप की विधि ही बलवती है। वही उसे अशान्ति से मुक्त कर सकती है।
टीका:-पुष्यमिवाकाशे मुक्त स्थापित एवं निराधारः स नरः पुष्पमिव शुभयानिबन्न एवं वसूत्र निवज इति षष्ठे श्लोकेऽभिहितमिहवाध्याहार्य; नरो बलवन्तं तपोविधि बिदरेदिति । विहरसे सकर्मकः प्रयोगः । अर्थ गतं । छठे लोक में जो कहा गया है वही नवम अध्याय में अध्याहार्य है।
सुसमेत्तगर्ति चेव, गंतुकामेऽधि से जहा ॥
पवं लद्धा वि सम्मम्ग, सभावाओ अकोषिते ॥ ७ ॥ अर्थ :-सूत्र मात्र ही उसकी गति है और वह गमन करना चाहता है। स्वभाव से अकोविद पुरुष सम्यक् मार्ग को प्राप्त करके भी सक्ष्य स्थान को नहीं पा सकते। गुजराती भाषान्तर:
જે માણસ સ્વભાવથી કુશળ નથી તેઓ સભ્ય માર્ગને પ્રાપ્ત કરીને પોતાના લક્ષ્ય તરફ જઈ શક્તા નથી, પણ તે સૂત્રના અનુસારેજ ગતિ કરી શકે છે.
धागे से बंधा पक्षी गति करना चाहता है उपर उसकी दौड़ वहीं तक है जहां तक कि धागा है। उनसे वह आगे नहीं बढ़ सकता । इसी प्रकार जो स्वभावतः कुशल नहीं है, खतः ज्ञानसम्पन्न नहीं है दे सम्यग् मार्ग प्राप्त करके भी आगे नहीं बढ़ सकते । वे परम्परा के धागे से (सूत्र से) चिपटे रहेंगे, पर उनके विशेषार्थ तक पहुँच कर आत्मसाधना करना उनके वश की बात नहीं है।