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________________ पंचम अध्ययन पुण्फसाल - अज्झयण पुप्फसालपुत्त उत्राचः— मन का अहंकार आत्मा के सूक्ष्म शत्रुओं में एक है। अहंकार पर ठेस लगती है तो कोध उछलता है । अहं ही विकास पाकर कुटुम्ब और परिवार बनता है। यही मैं और मेरा पाप के अग्रदूत हैं। पंचम अध्ययन अहं विजय के लिये प्रेरणा देता है। माणः पचोरित्ताणं, बिण अव्याणुवदंस ॥ पुप्फसाल पुसेण, अरहता इसिणा बुहयं ॥ १ ॥ अर्थ :- मान से नीचे उतरे हुए विनय में आत्मा को स्थित रखने वाले पुष्पलालपुत्र अतर्षि ने कहा है । गुजराती भाषान्तर :-- માનથી ટુડે ઉતરેલા અને વિનયમાં પોતાના આત્માને સ્થિર રાખનાર પુષ્પશાલપુત્ર નામક અદ્ભુત એ આમ કહ્યું છે. शुद्र आगाम सिरसा, भले लिखाण अंजलि ॥ पाण-भोजण से किया, सव्वं च सयणासणं ॥ २ ॥ अर्थ :- उन्होंने मस्तक के द्वारा पृथ्वी को छूकर भूमि पर अंजलि करके भोजन पानी और समस्त शयनासन का त्याग कर दिया है। गुजराती भाषान्तर: તેમને મસ્તક દ્વારા પૃથ્વીને સ્પર્શ કરીને તથા ભૂમિ ઊપર અને હાથ જોડીને સર્વ ભોજન પાણી તથા શય્યાસનનો ત્યાગ કર્યો છે. समाणस सदा, संति आगम वट्टती ॥ कोध-माण-पहीणस्स, आता जाणइ पंजवे ॥ ३ ॥ अर्थ :- नमस्कार करने वाले की आत्मा सदैव शान्ति और आगम में लीन रहती । क्रोध और मान से विहीन आत्मा पर्यायों को जानता है। गुजराती भाषान्तरः નમસ્કાર કરનાર આત્મા સદા શાન્તિ તથા આગમ ્ શાસ્રવચન )માં તલ્લીન રહે છે, જેણે ક્રોધ તથા भान त्या छे ते ( सर्व द्रव्योनी ) पर्यायोने लगे है. नमनशील आत्मा की निश्रा आगम में होती है । और आगमाभ्यादी शान्तिपथ से परिचित रहता है। अशान्ति के मूल क्रोध और अहं से उपरत होकर आत्मा समस्तपर्यायों को जानता है । कषाय मोह के क्षय के साथ अन्तर्मुहूर्त में शेष तीनों घातिकर्म क्षय कर आत्मा सर्वश बनता है । सर्वज्ञ द्रव्यों की अनन्त पर्यायें युगपत् जानते हैं। छास्थ समस्त दन्यों का परिज्ञान रखता है, किन्तु एक ब्रव्य की भी वह समस्त पर्यायों को वह नहीं जान सकता । वाचकमुख्य भी बोलते हैं"मतिश्रुतयोर्निबंधः सर्वद्रव्येष्वसर्व पर्यायेषु मति श्रुत का विषय प्रबन्ध समस्त प्रव्यों में है, पर समस्त पर्यायों में नहीं है । "द्रव्यपर्यायेषु के लक्ष्य" केवलज्ञान का विषयनिर्बन्ध समस्त द्रव्यपर्यायों में युगपत् है । तत्वार्थसूत्र अ० १ सूत्र २७-३०. टीका :- मानात् प्रत्यवतीर्य मानं त्यक्वा विनय आत्मानं उपदर्शयेत् क्रोधमानहीनस्य आत्मा पर्यायान् जानाति, कोषस्थाने शमं सेवते मानस्थाने मार्दवम् । मान रूप गज से नीचे उत्तर कर आत्मा विनय के दर्शन करता है । क्रोध-मान से विहीन आत्मा पर्यायों को जानता है। क्रोध के स्थान पर शान्ति और मान के स्थान पर मार्दव को प्राप्त करता है । ४
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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