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________________ + इस - भासियाई १८ गुजराती भाषान्तर : દીવાલો પર કોતરેલા સૂત્રો અને લાકડા પર દોરેલા ચિત્રો સ્હેજ સમઝઈ જાય છે ત્યારે માજીસના હૈયાને જાણવું ઘણું કઠણ છે કેમકે તે ગહન છે. } मानव बाहर से नहीं भीतर से परखा जाता है। चित्रों को समझ लेना जितना सरल है उतना ही मनुष्य हृदय को जान केना कठिन है। टीकाकार का अभिप्राय भी समान है “सुग्राणिति” सुयानेत्ति स्थाने सुज्ञातं भवति चित्र भिश्यां काभ्रे 41 निवेशितं, इदं मनुष्य तु तं दुर्विज्ञानध्यं । दीवार और काल पर अंकित चित्र अज्ञात होता है, किन्तु हृदय गहन हैं, जल्दी से उसे कोई समझ नहीं सकता । अण्णा स मणे होइ, अनं कुणंति कम्मुणा ॥ अण्णमगणाणि भासते, मणुस्स महणे हु से ॥ ५ ॥ अर्थ :--- जिसके मन में कुछ दूसरा है और कार्य कुछ दूसरे हैं, पर वे एक दूसरे से बोलते हैं तूने मनुष्यजन्म पाया है । गुजराती भाषान्तर : માણસનું હૈયું ગહન કેમ છે તે બતાવે છે, તે મનમાં બીજું વિચારે છે ત્યારે દેહથી કામ કાંઈ જીંદા જ કરે છે. તેમાં નવાઈ તો આ છે કે આવું પોતે ફરતાં છતાં એક બીજાને કહે છે તમે મનુષ્ય અવતાર પામ્યા છો, તેને શા માટે બગાડો છો. जिनका बाहरी रूप कुछ दूसरा होता है और भीतरी कहानी कुछ दूसरी होती हैं उन्हीं साधकों का यहां चित्रण दिया है। बाहरी सिंका तो पूर्ण आत्म-संयमी साधक का है, किन्तु भीतरी सिक्का खराब है: किन्तु तारीफ तो यह है कि वे एक दूसरे को उपदेश देते हैं तुमने सुन्दर-सा मानव जीवन पाया है, इसे क्यों मिट्टी के मोल खतम कर रहे हो । टीका :- अन्यथा स भवति मनसि अन्यत् कर्मणा वेष्टितेन कुर्वन्ति, अन्यत्तु भाषन्ते पुत्रमन्येभ्यो मनुष्येभ्यो गहूनः स खलु पुरुषः । जहाँ मन, वाणी और कर्म की एकता है वहीं साधुत्व हैं। जिसके मन में कुछ दूसरा है, जिसकी वाणी में कुछ और है और जिसके कार्य में कुछ तीसरी ही बात है, वह दुरामा है । तण-खाणु-कंडकलता-घणाणि वल्लीघणाणि || सदणियिसंकुलाई मगुस्स-हिंदवाई गहणाणि ॥ ६ ॥ अर्थ :- घांस ठूंठ, कैटकलता, बादल, लतामण्डप के सदृश मनुष्यों के शट, छली संकुचित और हृदय होते हैं। गुजराती भाषान्तर : માણસોના હૈયાં વિચિત્ર હોય છે. કેટલાકનાં હૈયાં ઘાંસ જેવા તુચ્છ, કેટલાકનાં કાંટાંની બેલડી જેવા બીજાને ચુલનારા હોય છે તો કેટલાકનાં હૈયાં વાદળાં અને લતામંડપ જેવા પણ હોય છે, જે બીન્તને શાન્તિ આપે છે. તો કેટલાકના હૈયાં શઠ ઇલિયા અને સંકુચિત પણ હોય છે. १ तृण-पशु की परीक्षा आहर से होती है, जब कि मानव की परीक्षा उसके हृदय से होती है। यहां मानव के पांच हृदय बताये गये हैं । किसी का हृदय तृण सा क्षुद्र होते है, जो शक्तिहीन है और अपने आप की रक्षा भी जो अपने आप नहीं कर सकता, न दूसरे किसी आर्थिक अभाव की तपती दुपहरी में क्लान्त मानव को छाया देने में भी समर्थ है। २ ( खाणुं ) दूसरा वह हृदय जिसने विकास तो किया है, किन्तु जिसकी जीवन की मधुरता के पत्ते तर चूके हूँ रसहीन जीवन जीनेवाला । १ –मनस्येकं वचस्येकं काये चैकं महात्मनाम् ॥ मनस्यन्यत् वचस्यन्यद् काये चान्यत् दुरात्मनाम् ॥ १ ॥
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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