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इसि भासियाई
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ओर जाना किन्तु लगता है, उसने नागर की जम भूल से नागफनी का पाना किया है। इसीलिये दुःख की परम्परा मौजूद है। उसका पुरुषार्थ पानी विलोडन मात्र रहा है। इसका कारण है वह दुःख के बाहरी कारणों से बचता है, किन्तु उसके उपादान से चिपटा रहता है अशान्ति का मूल है आरंभ सुख के लिये वह आरंभ करता है, किन्तु आरंभ हो अशान्ति की जड है। वह फल से घृणा करता है जब कि फूल से प्यार करता है।
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कर्मवाद का प्रतिपादन करते हुए बोलते हैं:
गच्छति कम्मे हिंसेऽणुवजे पुणरवि आयाति से सयं कडेणं । जम्ममरणार अट्ठो पुणरबि आयाह से सकम्म सित्ते ॥ ३ ॥
अर्थः:-आरमा लत कमी से अनुबद्ध होकर (परलोक) गमन करता है। अपने ही कर्मों के द्वारा में आता है। इस प्रकार वह आते आत्मा स्वकर्म से सिक्त सिंचित जन्म और मृत्युकी परंपरा में आता है। I गुजराती भाषान्तरः —
આત્મા પોતે કરેલા કર્મોથી બંધાઈને (પરલોકમાં) જાય છે. પોતાના જ કર્મોદ્રારા ફરી પાછો તે આ સંસારમાં આવે છે. એ પ્રમાણે તે આર્દ્ર આત્મા પોતાના કર્મને લીધે જન્મ અને મૃત્યુની પરંપરામાં આવી જાય છે, (इसाई छे.)
पुनः इस संधर
फेसता है )
जन्म-मृत्यु की परंपरा का मूल क्या है और इसका उत्तरदायित्व किस पर है इस प्रश्न का उत्तर प्रस्तुत गाथा में दिया गया है। जन्म और मृत्यु के लिये तू स्वयं उत्तरदायी है। तेरे शुभ और अशुभ कर्म ही जन्म और मृत्यु के बीज हैं। कर्म का अनुबन्ध भय परंपरा में परिभ्रमण कराता है। नरक और स्वर्ग का निर्माता तू
है।
आत्मा की अनुमतियों मामकर्म हैं, वे ही द्रव्य कर्म को एकत्रित करती हैं। सूर्य स्वयं अपनी किरणों द्वारा बादलों का निर्माण करता है और स्वयं ही किरणों द्वारा उन्हें द्रवित कर स्वयं उनसे मुक्त होता है। कर्मवाद का सिद्धान्त हमारी बहिष्टि को मोडकर अन्तर की ओर जाता है। अपनी स्थिति के लिये तुं स्वयं उत्तरदायी है। इंग्लिश का विचारक बोलता है:
It is our own past which has made us what we are. We are the children of our deeds.
आज हम जो कुछ हैं - हमारे अतीत से हमको बनाया है। हम अपने कार्यो के बालक है ।
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कर्मवाद मानव को अन्तरभिमुख बनाता है जो कुछ मनता और बिगडता है उसके लिये उत्तरदायी में स्वयं हूँ। फिर दूसरे पर रोष और दोष क्यों ? पेन्सिल रखते अपने ही हाथों चाकू ने पेन्सिल के साथ अंजिल डाली तो दूसरों से हने मिलने की कोई मूर्खता न करेगा कर्मवाद बोलता है, विपत्ति की एक दिन तूने ही निमंत्रण दिया था आज वह आई है, तो उससे भागने की और आक्रोश की कोई आवश्यकता नहीं है। तेरे अशुभ का उदय है। उसे कोई रोक नहीं सकता। विपत्ति के लिये किसी को दोष न दे। संपत्ति के लिये किसी से भीख न मांग तेरे शुभ का उदय होगा तो बिना माँगे मिलके रहेगी। कर्मबाद कहता है मानव सब कुछ तेरे हाम है। दूसरा तो केवल निमित्त मात्र है ॥ "
जाम
१ भगवती सूत्र में इस प्रश्न की चर्चा है । प्र. सयं भन्ते ! नेरईया नेरई येसु इक्वज्जति असयं भन्ते नेरईया नेरईयेसु उववति ? गणिय लेना नरहेपति नो अस या नेर उति प्र से गण भन्ने एवं उक्त कम्मोदपणे, कम्भ गुरुतयार कम्ममारिया कम गुरुभारियतवाट अनुभा अनुभाणं कम्मा विवागणं, अभागं कम्माणं फल विवाणं सुवं नरईया जाय उननन्ति भो असम नेरहंगा नेरप जाव उपनयति से वे गांगेयान्ति भगवती सूत्र श. १३१. १०७.
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गांगेय अणगार प्रश्न करते हैं:- प्रभो नारक जीव नरक में स्वयं उत्पन्न होते हैं या दूसरा उन्हें वहाँ उत्पन्न करता है ! प्रभु ने उत्तर दिया गांगेय नारक स्वयं ही नरक में उत्पन्न होते हैं 1 दूसरा उन्हें कोई वहाँ उत्पन्न नहीं कर सकता। प्रतिमन करते हुये गांगेय अणगार भोले प्रभो! आप किस अपेक्षा विशेष से ऐसा फरमार है ? उत्तर- कर्म के उदय से, कर्म से भारी होनेके कारण, अशुभ के विपाकोदय और फलोदय से आत्मा नरक में उत्पन्न होता है। अतः ऐसा कहा जाता है कि नरक स्वयं ही नरक में उत्पन्न होता है ।
भगवती श. ९. ३९.३७७