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________________ पृ. ५-१४ ,१५-४० भूमिका की विषयसूचि पंरन-मंत्री श्रीकिसनलालजी म. के जीवन की रंगीन रेखाएं "इसिभासियाई" सूत्रपरिचय अर्पण-पत्रिका इसिभासियाई सूत्र के मूल आवशॉ का छायाचित्र प्राकधन श्रीमनोहरमुनिजी म, एक परिचय आशीर्वाद भार अभिमत ८ ग्रंथविषयानुक्रम-सुचि अ. गा. पृष्ठ अ. मा. पृष्ठ १-प्रथम अध्ययनः सत्य श्रवण तरह उड जाती है। ४, १८, २२ श्रोतव्य के चार लक्षण । प्रमचर्य की सुदृढ धुरा श्रोतव्य के ग्रहण से प्राणी और ज्ञान दर्शन जैसे उपधानवान् बनता है। कुशल सारथिद्वारा शुध्द उपधान का लक्षण । १, १०, स्वरूप की प्राप्ति । ४, २३, २३ महानतों के ग्रहण से ५-पंचम अध्ययनः आई विजय संसार में अपुनरावर्तन , नमन करने वाला आस्मा २-द्वितीय अध्ययनः तु शान्त एवं भागम-लीन दुःख और उसके कारणों की होता है। ५, १३, व्याख्या । २, 1-२, ६-षष्ठ अध्ययन: काम-विजय चिमुक्ति के लिए साधक का निरंकुश विषयों में कर्तग्य । २, ६-२, ९-१० आसक्त भारुमा ज्ञान ३-तृतीय अध्ययनः कर्मलेप रूपी प्रग्रह से भ्रष्ट कर्म लेप का लक्षण । ३, १.५, मोह की आग बुमाने की होकर विनष्ट होता है। ६, १.५, २७-२९ अत्यंत कठिनता। ३, ९.११, १३-१५. स्वच्छन्द और विषय४-चतुर्थ अध्ययनः समत्व भाव लोलुप आत्मा अपने दुष्पशील व्यक्ति माया से भापका दुश्मन होता है। ३, ९.१०, २९-३० प्रतिच्छन्न रहते हैं। ४, १-२, १६-१७ . ७-सप्तम अध्ययनःप्रमाद जय मन, वाणी एवं कर्म की ३३ प्रमाद जन्म-मरण एकता जहां है वहीं साधुत्व है। ४, ५-६, १७-१८ अपने भ्रष्टाचार के प्रति का कारण है; भतः शानी को जानबुझ कर, दुर्लक्षित साधक कार्य में अप्रमत्त भविष्य में पश्चात्ताप करता है। ४, ९-१०, १९-२० रहना आवश्यक है। भच्छे, बुरे कर्मों को मारमा ८-अष्टम अध्ययन दुःखनाश ३५ ही जान सकता है। अभ्यन्तर दुःख के ग्रन्थिजाल को चोर या सन्त को वह स्वयं दुःखहेतु समझ कर उसका या सर्वज्ञानता है। ४, ५, २५ नाया करने के लिए संयम-पालम उल्लू की प्रशंसा और आवश्यक है उसीसे साधक कौवे की निंदा हवा की चिमुक्त होता है।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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