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पैंतालीसवाँ अध्ययन
२८५ मधुर सौरभ सबका मन हर लेती है । इसीलिये खाद्य पदार्थों में और स्वागत समारंभों में सुरभित द्रव्यों का उपगयो होता है। पर यह बाहर की सुवास है, किन्तु मन की पवित्रता सत्य और शील के गुण अन्तर की सौरभ है । अन्तर सौरभ से सुरभित व्यक्ति सर्वत्र प्रिय होता हैं और जिस तुन्दर तीर्थ में मगर आदि नहीं है और पचिनी समूह से जो खिल रहा है यह सबके लिये प्रिय पात्र होता है। इसी प्रकार जिनेश्वर देव के शासन के जिस उद्यान में नानावित्र भाव सद्गुणों के फूल महक रहे है वह किसे प्रिय नहीं होगा। हर को हृदय के व्यक्ति और श्रद्धा मर भित हृदय को वह आकर्षित करता है।
हिन को इन्छिन रसायण प्राप्त होती है तो वह कितना आनंदित होता है। वैसे ही जो विभाग दशाओं की व्याधि से पीड़ित हैं उसे आत्म-शान्ति की रसायन क्यों न प्रिय होगी?
अपहातोव सर रम्मं वाहितो वा स्याहरं । उछुहितो व जहाऽऽहारं रणे मूढो व येदिय ॥२८॥ वहि सीताहतो वा वि णिवायं बाणिलाहतो।
तातार वा भउविग्गो अणसो वा धणागमं |॥ २९ ॥ अर्थ:--अस्नात (स्मान नहीं किये हुए व्यक्ति ) के लिये जैसे सरोवर रम्य है, रोगपीडित के लिए रोगहारक (वैद्य) का घर (औषधालय) प्रिय है। अधित व्यक्ति के लिये आहार प्रिय है। युद्ध में मू माकुल व्यक्ति सुरक्षित स्थान पसन्द करता है। शीत से पीड़ित व्यक्ति के लिए अग्निप्रिय है। वायु से पीडित निर्वात स्थान चाहता है 1 भयोद्विग्न रक्षण को चाहता है और ऋण से पीडित व्यक्ति धनप्राप्ति माहता है। गुजराती भाषांतर :
અઆત (એટલે સ્નાન ન કરેલા માણસને માટે સરોવર રમીય હોય છે. દરદથી હૈરાણ થયેલા (માદા) માણસ માટે દરદને મટાડનાર (વૈદ્ય) ના ઘેર (દવાખાનું) પ્રિય છે, ભૂખ લાગેલા માણસને આહાર ગમે છે, જંગ (લડાઈ) માં બીએલો માણસ સુરક્ષિત (જ્યાં મરણનું ભય નહી એવા સ્થાનને પસંદ કરે છે. ટાઢથી કંટાળેલા માણસને અગ્નિ (ગરમી) બહુ ગમે છે. પવનથી પીડિત માણસ પવન વગરનું સ્થળ પસંદ કરે છે. ભયથી ઉદ્વિગ્ન (ભયભીત) માણસ કોઈ રક્ષણ કરનારને ચાહે છે અને દેવાદાર માણસ ક્યાંથી (કોઈ પણ સાધનથી) દ્રવ્યપ્રાપ્તિ થાય તે માટે કોશિશ કરે છે.
पुर्व गाथा के अनुसन्धान में प्रस्तुत दो गाथाएं आई हैं। जिनेश्वर देव का शासन सम्यक्त्वशील आत्मा को उतना ही प्रिय है जितना कि अस्नात व्यक्ति को सरोवर, रोगी को औषधालय, क्षुधित' को भोजन, युद्ध में कायर व्यक्ति को सुरक्षित स्थान । दूसरी गाथा में भी ऐसे ही मन के प्रिय पदार्थों का निरूपण है। ठंड से ठिठुरते व्यक्ति को अमि प्रिय लगती है। घायु से पीडित व्यक्ति को निर्वात वायु रहित स्थान प्रिय होता है। भय से उद्विग्न बालक के सम्मुख उसके त्रायक अभिभावक आजाते हैं तो उसे कितने प्रिय होते हैं ? और अग्ण से दवा व्यक्ति जम चारों और से असहाय हो तब अचानक कहीं से उसे संपत्ति की प्राप्ति हो जाय तो वह धन उसे कितना प्रिय होगा. इसी प्रकार जन्म और मृत्यु की परम्परा से पीडित व्यक्ति को वीतराग का शासन प्रिय होता है। अपहातो का पाठान्तर ताहातो मिलता है, उसका अर्थ है तृष्णात प्यास से आकुल व्यक्ति के लिये सरोवर कितना सुरम्य होता है ।।
टीका:-अस्नातो वा रम्य सरो च्याधितो घा रोगहरं वैद्य, धितो वाऽऽहार, रणे मूडो ज्याकलोवारन्दि लुण्ठित वहिं शीताहतो वापि नित्रात बाऽनिलाइतस्त्रातारं वा भयोद्विप ऋणार्थी वा धनागमम् ।
___ गंभीरं सब्बतोम हेतुभंगणयुज्जलं ।
सरणं पयतो मणे जिर्णिदवयणं तहा ॥ ३० ॥ अर्थः-गंभीर सर्वतोभद्र हेतु मंग नय से उज्ज्वल जिनेन्द्र देव के वचनों के शरण जानेवाला मी ऐसा ही आनंद पाता है जैसे कि तृपति व्यक्ति पानी मिलने से आनंदित होता है। गुजराती भाषान्तर:
ગંભીર, સર્વકલ્યાણપ્રદ એવા નયથી ઉજવેલ જિનેન્દ્રદેવના વચનને માન આપનાર માણસ તરસ લાગેલા માણસને પાછું મળ્યા પછી જેમ અચાનક સંતોષ થાય છે તેવી તે જ રીતે સંતુષ્ટ બને છે.
१, तहातो। णण्हातो। २. अमृत शिशिरे बहि: अमृन क्षीरभोजनम् ।।