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________________ २७० इसि-भासियाई गुजराती भाषान्तर: જેઓએ સાધુવેરનો ઉપયોગ સમાજમાં પ્રભુત્વ અને પોતાની જીવિકા મેળવવા અર્થે કરે છે તેઓ પોતાનું જીવન બગાડી નાખે છે એમ સમજવું. ભોતિક જ્ઞાન અને મંત્રોપદેશ એ તે દતિકાચે (સંદેશ પહોંચવાના કામો જેવું છે. ભાવી તપ કે ભવિષ્યને ઉપદેશ કરી જીવવું સિંધ (મુનિમર્યાદાને ન શોભે એવું ) છે. जनता के विश्वास के लिये लोक में मुनिवेश का विधान है, किन्तु जिन्होंने मुनिवेश को आजीविका का साधन बनाया है वे उस देश के प्रति वफादार नहीं है। जिसका लक्ष्य भटक चुका है, साधना का सही उद्देश्य जिसे पाना नहीं है वह अपनी साधना को बाजी पर लगा देता है। उसके द्वारा चंद चांदी के टुकडे एकत्रित करने में अपनी सफलता मान बैठता है । फिर वह कर्तव्या-कर्तव्य का विवेक भी खो देता है। वह मुनि कप के बाहर के तमाम कार्यों में रस लेता है। भौतिक विद्या और मंत्र का उपदेश दतिकार्य करना । भवितव्यता का उपदेश ये सभी मुनि-मर्यादा के बाहर हैं। इसलिए कि इनके द्वारा साधक आत्म-विद्या को भलकर देहाध्यास में पड़ता है। जिसके पास साधना का सच्चा रस नहीं है फिर वह भौतिक विद्याओं के बल पर जन समाज में प्रभुत्व जमाना चाहता है। कुछ भावुक भक्त अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये उनके बहकावे में आ जाते हैं और जब के उनके द्वारा संपत्ति अर्जन में सफल होते हैं तो उसकी कुछ भेंट गुरु के चरणों पर भी चढ़ा देते हैं। इस प्रकार दोनों लोभ की दुनिया में भटक जाते हैं और संयम के सम्यक् पथ से बहुत दूर जा गिरते हैं। ____ ऐसा साधक कुछ देर के लिये भौविक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सफल हो सकता है, किन्तु आत्मिक आनंद उसके पास नहीं है। टीका:-विधामंत्रोपदेशैः तूतिसंप्रेषणैर्वा भाविभवोपदेशे चाविशुद्धिमति जीवति । गताः । मूलकोबुयकम्मेहिं भासापणाइपहिं या ॥१२॥ अक्खाइओवदेसेहि अविसुद्धं तु जीवति । .................... ॥१३॥ अर्थ-कुछ भूल कौतुहल पूर्ण कर्मों के द्वारा, भाषा चातुर्य से आग्यायिका अथवा अक्ष=पासे आदिक के उपदेश से जीनेवाला अशुद्ध जीवन जीता है। गुजराती भाषान्तर: કેટલાક સાધુએ સમાજમાં અજાયબી લાગે એવા કામથી કે પોતાના વાચાતુર્યથી અને એવા જ બીજા દુનિયાદારીના ઉપદેશ કરી નિષિદ્ધ જીવન જીવે છે. प्रस्तुत अध्ययन आनी विका अध्ययन है। विभिन्न मानव जीवन-यापन के लिये विविध प्रसाधनों का उपयोग करते . हैं। कोई शरीरबल को जीविका के साधन बनाते हैं। कुछ लोग तपजीवी होते हैं, वे तप के प्रदर्शन के द्वारा या कठोर तप के द्वारा जनता आतङ्कित करके अर्थप्राप्ति करते हैं। कुछ लोग साधुवेश का जीविका के साधन के रूप उपयोग करते हैं। विद्यामंत्रों उपदेश के द्वारा आवश्यकता पूर्ति करना भी आजीविका का साधन है। कोई ज्ञानीवि है तो कोई क्रिया-जीवि तो कोई नियतिवाद के उपदेशक हैं। भगवान महावीर के युग में नियतिवाद का समर्थक एक दर्शक था; उसका नेतृत्व गौशाला के हाथों में था। भगवान महावीर ने उसे आजीवक पन्थ के नाम से घोषित किया था 1 क्योंकि वे नियतिवाद का आश्रय लेकर जीवनयापन करते थे। किन्तु आजीविका के ये सभी प्रसाधन अशुद्ध है। टीका:-मुलकर्मभिः कौतुककर्मभिः भाषया प्रणयिभिचाख्यायिकोपदेशैरविशुवमिति जीवति । नागेण अरहता इसिणा बुहतं भासे मासे य जो पालो कुसग्गेण आहारय । ण से सुयक्षाय धम्पस अग्धगति सतिम कलं ॥ १४ ॥ १ तेथे कालेणं तेणं समरण गोसालए मखलीपुत्ते चवीसवासपरियाए. कुंभकारिए कुंमकारावर्णसि आजीविमसंघसंपरिबुडे आजीवियसमयेणं अप्पाणं भावे माणेविहरद | भगवतीसूत्र शतक १५,
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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