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________________ = इन्द्रनाग अतर्षि प्रोक्त एकचालीसवाँ अध्ययन कुछ आत्माएं गद्दिर्दृष्टि लेकर चलती हैं। वे केवल वर्तमान सुख को ही देखती हैं, किन्तु उसके पीछे आनेवाली दुःख की परम्परा को नहीं देखती। मछली केवल अपने ग्रास को देखती है, किन्तु उसके पीछे छुपे कांटे को नहीं । यहीं बहिष्टि मिथ्या हो जाती है | वह मानव को देहाभ्यास में उलझाये रहती है, किन्तु देह से ऊपर उठकर देहातील को देखने नहीं देती । जबकि अन्तर्दृष्टि आत्मा को बाहर से हटाकर अन्तर को देखने की प्रेरणा देती है। वह शरीर के नहीं आत्मा के सौन्दर्य को निरखने की प्रेरणा देती है । वह नश्वर से टकर अनश्वर से प्रेम करने की पवित्र देशना प्रस्तुत अध्ययन का प्रमुख विषय है । जेसिं आजीवतो अप्पा पराणं बलदंसणं । तवं ते आमिस किच्चा जणा संणिश्वते जणं ॥ १ ॥ अर्थ -- जो आत्माएं अपनी आजीविका के लिये प्रदर्शन करती हैं। वे तप दुषित करके मनुष्यों को एकत्रित करते हैं। गुजराती भाषा જે જીવો પોતાની ગુજરાણુ માટે પોતાના સામર્થ્યનું પ્રદર્શન કરાવે છે તે પોતાની તપશ્ચર્યાંને નકામી બનાવી આમ જનતાનો ખ્યાલ ( પોતાની તરફ ) ખેંચી લઈ શકે છે. तप आत्मशोधन का एक पवित्रतम प्रसाधन है। कोयले की कालिमा को साबुन नहीं धो सकता, उसे तो आग की ज्वाला हीं उजबल बना सकती है। इसी प्रकार सुख सुविधाओं के प्रशाधन आत्मा की कर्मजन्य कालिमा को यो नहीं सकना, किन्तु यह पस्तेज में ही शक्ति है जो आत्मा को उज्वल बना सकता है। A तप का उद्देश्य -शोधन हो होना चहिए। यश और प्रतिष्ठा की कामना या भौतिक की चाह तपः साधना को दूषित करती हैं। इस में साधक अपनी शक्ति को मिट्टी के मोल बेच देता हैं। इसे जैन आगमों में निदान तप कहा गया है। यहां उससे ने की प्रेरणा दी गई है। ओ तप को आजीविका का साधन बनाते हैं वे अपने बल का प्रदर्शन करते हैं; इसके द्वारा संग्रह कर सकते हैं। बाहिरी जनता के दिल पर ने अपने तप की छाप अंकित कर दें, किन्तु वे अपने तप की सही शांत को नहीं पा सकते । टीकाः येषामामारूपमाजीवा द्वेतोर्नराणां बलवर्शनं तोष-दर्शनाय भवति, ये आजीवनार्थमात्मनस्तपोबलं मरान् दर्शयन्ति ते जनाः स्वतप भामित्रं कृत्वा जनं संचीयन्ते मेलयन्ति । गतार्थः । विकीतं सेसि सुकडं तु तं च णिस्साए जीवियं । कम्मा अजाता वा जाणिजा ममका सढा ॥ २ ॥ अर्थ -- उनका ( कामनासहित तप करनेवालों का ) सुकृत मानो खरीदा हुआ होता है। और उस सुकृत पर ● आधारित उनका जीवन भी मानो बिका हुआ है। उनकी क्रियाएं अनार्यवत होती हैं; वे ममत्वशील और शठ होते हैं । गुजराती भाषांतर: જે માણસો પોતાની અમુક કામના પૂર્ણ થવા માટે તપ કરે છે, તેઓનું પુણ્ય તો બીજાએ ખરીદી લીધું છે એમ સમજવું, અને તે સુકૃત ઉપર આધાર મુકી રહેલ માસોની જીંદગી તો ખરેખર વેંચી નાખેલી જ ગણાય. તેઓના કામો અનાર્ય માણુસ જેવા જ થાય છે. તે માણસોનો સ્વભાવ સ્વાર્થી અને કપટી હોય છે. जो साधक किसी फच्छा को लेकर काम करता है वह मानो अपनी साधना को क्षेत्र डालता हैं । गृहिणी दिनभर काम करती है, किन्तु कभी वह अपने धम का मूल्य नहीं चाहती; जबकि दासी आठ घंटे काम करके मूल्य मांगती है। परियाम में एक घर की स्वामिनी बनती है; जबकि दूसरी को केवल मजदूरी के बारह आने मान मिल पाते हैं । शावक फलासक्ति को अपनी साधना के बीच न आने दें; अन्यथा फल की उधेड़बुन में वह लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाएगा। फलासक्ति तो मोक्ष की भी नहीं होनी चाहिए। साधक बनने की कामना की तो अगले जीवन में साधक बन सकेंगे, किन्तु सिद्ध नहीं पा सकते । ३४
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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