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________________ दी ३ P ₹ द २६६ इस - भासियाई महात्मा बनने का संकल्प किया तो महात्मा। उन सकेंगे, किन्तु परमात्म-तत्व दूर रह जाएगा। इसलिए गीती कहती है:"कर्म में ही तुम्हारा अधिकार है. फल की ओर न जाओ" । एक इंग्लिश बिचारक भी बोलता है - Thy business is with the action only never with its fruits, so let not the fruit of action be thy motive nor be thou to in action attached. तुम्हारा प्रयत्न केवल कार्य के लिये होना चाहिये, उसके फल के लिये कभी नहीं, कार्य के फल को तुम अपना लक्ष्य न बनने दो । यहाँ फलक व्यक्ति का जीवन बताया गया है उसके जीवन की मस्ती छिन जाती है। उसकी साधना बिक्री हुई है। ऐसा व्यक्ति फल पाने की जल्दी में साधन का विवेक भी खो सकता है। अतः अद्देवर्षि साधक को फलासक्ति से दूर रहने की प्रेरणा देते हैं । टीका:- तेषां सुकृतं तपो विक्रीतं भवति । तच सुकृतमाश्रित्य जीवितं । चिक्रीतं कर्मचेष्टा व्यापारवन्तो जना भजात्यानार्या वा मामकाः शठा भवन्ति, एतादृशां ताजानीयात् । गतार्थः । गलुच्छिना असोते वा मच्छा पावंति वेधणं । अणामतम पस्संता पच्छा सोयंति दुम्मती ॥ ३ ॥ अर्थ - अस्रोत (निर्जल स्थल ) में अथवा कंठ छिया हुआ मत्स्य वेदना को प्राप्त करता है। इसी प्रकार अनागत ( भविष्य ) को न देखनेवाला दुर्मति बाद में शोक करता है। गुजराती भाषांतर: જેવી રીતે પુરાકની આશાથી અસ્રોત ( =નિર્જલ એટલે પાણી જ્યાં ન હોય તે જગ્યા) માં ગયેલી માછળીને કે ગળું કપાયેલ માછળીને ઘણું જ દુ:ખ થાય છે, તેવી જ રીતે મોહરૂપી મન્ને ઉંચે ફેંકેલો પ્રાણી ભાવી કાળનો ખ્યાલ ન કરી ચાલુ સુખમાં મગ અની અંતે દુઃખી થાય છે. केवल वर्तमान सुख को देखनेवाला मानव उस मछली जैसा हैं जो मांस की आशा में जलस्रोत से बाहर आजाती है। अथवा मांस के प्रलोभन में फंसकर केवल मोस को देखती है, उसके पीछे छिपे कांटे को नहीं देखती। परिणाम में वह अपना कंठ लिखवा लेती है। सीमित बुद्धिवाले प्राणी परिणाम की ओर दृष्टि नहीं डालते । असंज़ी भी केवल वर्तमान इपेक्षी होता है। इसी प्रकार बहुत-सी आत्माएं तात्कालिक लाभ के पीछे बहुत बड़ी हानि को निमंत्रण दे देती हैं । मस्स्या वेदनां प्राप्नुवन्ति तथाऽनागतमपश्यन्तो दुर्मतयः टीकाः – यथोच्छिन्नगला अत्रोतसेि शुष्कस्थले वा पश्वाच्छोचन्ते । गतार्थः । मच्छा व झीणपाणिया कंकाणं वासमागता । पच्चुप्पण्णर से गिद्धो मोह मल्लपणोल्लिया ॥ ४ ॥ अर्थ- जैसे मत्स्य पानी से रहित ही कंकास के घास में फँस जाती है। इसी प्रकार मोद रूप मल्ल से उद्वेष्टित प्राणी केवल वर्तमान के दुख में गृद्ध होते हैं। गुजराती भाषांतर: જેમ માછળી અમુક લોભને કારણે પાણીરહિત જગ્યામાં આવી ઘાસ કે કાંકરામાં ફસાઈ મુસીમતનો ભોગ બને છે તેવી જ રીતે વિષયના મોહમાં આસક્ત થયેલો પ્રાણી વર્તમાન સુખમાં જ ઘેલો અહી બેસે છે (ને તેના માઠા પરિણામને ભુલી જાય છે ). अपने खुराक के पीछे दौडनेवाली मछली पानी से बाहर आकर समुद्र के तटवती कंकास घास में फंस जाती है और तप कर प्राण छोड़ देती है । इसी प्रकार मोह से उद्वेलित आत्मा वर्तमान रस में आसक्त होकर दुःखी होता है। पूर्व अध्ययनों में वर्तमान सुख के लिये मछली का उदाहरण अनेक बार भी चुका है। टीकाः - मरस्या यथा क्षीणपानीयाः कंकानां घासमागता इति लोकार्थ पूर्वगतेन वा संबन्धनीयं, लेखकदोषेण वा गलितमुत्तरार्थं । प्रत्युत्पन्नरसे गृद्धा मोहमलमणुश्वा इस बलयतीमुत्कंठां प्राप्नुवन्ती वारिमध्ये वारण इव । १ कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन-गीता.
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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