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________________ २६० सि-भासिया गुजराती भाषान्तरः જે માણસ પાપનું કામ કરે છે તે દુનિયામાં અંધારું ફેલાવે છે, જ્યારે બુદ્ધિમાન માણસ નિર્દોષ (શુદ્ધ પુણ્યનું કામ કરી સૂર્યના જેવો અજવાળો ફેલાવે છે. अशुभ परिणति स्वयं अंधकार में है। वह जहाँ जायमा सर्वत्र अंधकार फैलाएगा। जिसने प्रकाश पथ पाया है, वह प्रज्ञाशील पुरुष निण्याप जीवन बिताकर पुण्य की प्रभा से पालोकित हो सूर्य की भौति विश्व को प्रकाश किरण देता है। . सिया पावं सई कुजा ण तं कुजा पुणो पुणो । णाणि कम्मं च णं कुजा साधु कम्म विद्याणिया ॥३॥ अर्थः-पाप का प्रसंग उपस्थित हो और एक बार पाप हो जाए तब भी साधक उस पाप को पुनः पुनः न करे। किन्तु ज्ञानी श्रेष्ठ कर्मों को पहिचान कर उन्हीं में सदैव प्रवृत्त हो । गुजराती भाषान्तर:---- કદાચ પાપ થવાને પ્રસંગ આવે અને અમારા હાથે પાપકૃત્ય પણ થઈ જાય તો તે ફરીવાર કોઈપણ હાલતમાં ન થાય એવી કાળજી સાધકે રાખવી. જ્ઞાની માણસે આ ઉગ્ર કાર્યો છે એમ સમને જ હંમેશા તેમાં પોતાની પ્રવૃત્તિ રાખવી. * कभी कभी मानव को अनिच्छापूर्वक भी किसी अनिष्ट प्रत्ति में भाग लेना पड़ता है। किन्तु उस समय भी उसकी शान चेतना खुली रहे । पाप को पाप माने और उसके जल्दी ही अलग हद जाने का विचार रखे । लज्जाशील ग्यरित एक बार कभी कहीं फिसल गया तो उसे वह भूल सदैव कचोटती रहेगी और पुन: कभी भी उस ओर कदम नहीं बढ़ाएगा । गिरना खभाविक है,पर गिरकर वहीं पड़े रहना दुर्वलता है; गिरकर उठ खडे होना बहादुरी है। एक इंग्लिश विचारक कहता है M like it is to fall into ain, friendlike it is to lwell therein, christlike it is or sin to grieve, oldlike it is all sin to live. पाप में पड़ना मानव स्वभाव है, उसमें डूबे रहना शैतान खभाव है, उस पर दुःखित होना सन्त-म्पभाव है और सब पापों से मुक्त होना ईश्वर स्वभाव है ।-~लोगफेलो. ' सिया......कुला तं तु पुणो पुणो णिकाय च णं कुजा साहु भोजो वि जायत्ति रहस्से खलु भो पावं कम्म समजिणित्ता दवाओ खेत्तओ कालओं भाव घेत्तओ कालओ भावओ कम्मओ अज्झवसायओ सम्मं अपलीयंचमाणे जहत्थं आलोपजा! अर्थः-यदि पाप कर्म कमी हो जाय पुनः पुनः उसका आचरण करके उसका समूह न बनावे जिससे कि साधक को पुनः जन्म लेना पड़े। गुप्त रूप से पाप किया हो तब भी उसको द्रव्य क्षेत्र काल और भाव से कर्म (क्रियात्मक रूप से) और अध्यवसाय से सम्यक् प्रकार से किसी से निपट रूप से यथार्थ आलोचना करे । गुजराती भाषान्तर: જે કદાચ ( અજ્ઞાનથી) પાપકૃત્ય પિતાને હાથે થઈ ગયું હોય તે તે ફરી કરી તેની વૃદ્ધી થવા દેવી નહીં, જેને લીધે સાધકને ફરી આ સંસારમાં જન્મ લે પડે. કદાચ પાપકૃત્ય એકાંતમાં થઈ ગયું હોય તો તે પાપને દ્રશ્ય, ક્ષેત્ર, કાલ અને ભાવથી કર્મ ( ક્રિયાત્મક રૂપથી) અને અધ્યવસાયથી સારી રીતે નિષ્કપટ રૂપથી સાચી રીતે આલોચના કરે. । मानव से भूल होना स्वाभाविक है, किन्तु प्रशाशील साधक मूलों की आवृत्ति नहीं होने दे। क्योंकि एक भूल क्षम्य हो सकती है, किन्तु भूलों का समूह भयंकर परिणाम मी ला सकता है। अतः भूलों का परिमार्जन करते रहे। यदि एकान्त में भी पार किया गया है तब भी हृदय-शुद्धि के साथ उसकी आलोचना होनी चाहिए । फिर मी उसमें ट्रय्य क्षेत्र काल और भाव को बिचेक तो रखना ही चाहिए, आलोचना सुनने के लिये पात्र भी खोजना चाहिए। सुयोग्य पात्र मिलने पर शुद्ध अभ्यवसायपूर्वक निष्कपट आलोचना करे। कपट सहित आलोचना से आत्मशुद्धि संभव नहीं है। क्योंकि रोगी डाक्टर से छल करके कमी स्वस्थ नहीं हो सकता । आलोचना में निष्कारता को स्थान है। टीका:- चतुर्थस्य पूर्वाधमपूर्णम् । उत्तरार्ध तु कर्मसंचयधिषयम् । यस्य विपाकेन साधुभूयोऽपि जायते ।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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