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इसि मासियाई
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'इंग्लिश का गुजराती अनुवाद एवं जर्मन प्रति से पाठ संशोधन एवं अन्य अनुवाद कार्य में माटुंगा के मूक सेयाशील श्री प्रवीणभाई कोठारी का अमूल्य सहयोग जो प्राप्त हुआ है उसे भी मैं भूल नहीं सकता ।
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अनुबाद होकर मेरे सामने आया तब तक १९५६ का माटुंगा चातुर्मास भी समास हो गया और हम इदौरकी ओर लौट पड़े। क्योंकि वहाँ श्रद्धेय गुरुदेव स्थविर-पद-विभूषित मंत्री श्री किशनलालजी महाराज अस्वस्थ थे । गुरुदेव के पवित्र दर्शनों के लिये हम चल पड़े । पर इसिमासियाई का कार्य अधूरा था !
हमने बम्बई छोड़ी, बम्बई का कान्दावादी संघ हमें नहीं छोड़ रहा था । बम्बई संघ के उपप्रमुख सेठ प्राणलाल माई, सेक्क्रेटरी सेठ गिरधर भाई आदि सभी का अनुरोध था कि अलग चातुर्मास कांदावाड़ी हो। कोट और माटुंगा में आपके चातुर्मास हो चुके अब कांदावाड़ी कैसे सुनी रह सकती है ? उनके आग्रह को ठेलते हुए आगे बढ़ते ही रहे और उनके प्रयत्न भी बढ़ते रहे। जब हम गुरुदेव के समीप इन्दौर पहुंचे वहां सेठ गिरधर माई, सेठ रविचन्द्र भाई, खेठ मगनमाई आदि चातुर्मास की प्रार्थना हेतु आ पहुंचे। उनके भक्ति मरे आग्रह को गुरुदेव टाल 'न सके और अपनी अस्वस्थता को भी उपेक्षित करके प्रखर सेवाशील पं० श्री नगिनचन्द्रजी म०, प्रिय वक्ता श्री विनयचन्द्रजी म० और इन पंक्तियों के लेखक को बम्बई चातुर्मास के लिये आज्ञा प्रदान की ।
जेंट की तपती दुपहरी और अन्य कठिनाइयों को सहते हुए बम्बई पहुंचे । बम्बई - वासियों ने स्नेहभरा स्वागत किया। जब सेक्रेटरी श्री गिरधर लाल भाई दफ्तरी ने प्रियवक्ता श्री विनय चन्द्र जी म० से बम्बई चातुर्मास के प्रवचन सम्पादन एवं प्रकाशन के लिये कहा तो महाराज श्री | कहा “प्रवचन पुस्तकें तो कोट और माटुंगा से प्रकाशित हो चुकी हैं, किन्तु श्री मनोहर मुनिजी ने तीन वर्ष के परिश्रम से जो इसिमासियाई सूत्र का अनुवाद एवं सम्पादन किया है उसको प्रकाशित करना चाहिये | समाज के लिये वह एक नई देन होगी ।" और कांदाबाड़ी संघ ने महाराज की प्रेरणा को सहर्ष शिरोधार्य कर लिया। प्रिय वक्ता म० की प्रेरणा एवं कांदावाड़ी बम्बई संघ के सरप्रयत्नों के फलस्वरूप इसिमासियाई जनता के हाथों में पहुंच रहा है ।
यद्यपि इसके प्रकाशन के लिये दर्शनज्ञ पं० श्री दलसुख भाई ने भी गवर्नमेण्ट द्वारा संचालित प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित करने की प्रेरणा की थी और सेठ मगनलाल भाई पी. दोशी ने सन्मति प्रचारक संघ के 'अन्तर्गत प्रकाशन करने का सुझाव भी दिया था । किन्तु बम्बई संघ को यह श्रेय मिलना था । प्रस्तुत सूत्र के प्रकाशन में सेठ प्रांणलाल भाई, इन्दरजी उपप्रमुख बम्बई ( कांदाबाड़ी ) संघ, सेठ गिरधरलाल भाई प्रमुख बम्बई संघ, एवं सेवाशील कार्यकर्ता सेठ छोटालाल भाई कामदार का भी सक्रिय सहयोग रहा है। साथ ही सन्मति प्रचारक संघ, हैद्राबाद के संस्थापक प्रसिद्ध वक्ता यति थीं. निर्मलकुमारजी 'विश्वबंधु' का भी सुन्दर सहयोग रहा है। प्रुफ संशोधन में सहयोगी श्री शान्तिमुनिजी म. ने और उसे लाने ले जाने में भाई गजानन शंकर चौहान ने जो सहयोग दिया उसे भी भुलाया नहीं जा सकता ।
विजयादशमी
संवत २०२०, दि० २८ सितम्बर १९६३
विलापारला, बम्बई
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मुनि मनोहर "शास्त्री" "साहित्यरस"
१ माटुंगा के प्रवचन "जीवन सौरभ" के रूप में हिन्दी और गुजराती में प्रकाशित है।
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