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इसि-भासियाई मा छोड़ सकता है. बीटी सिगारेट भी छोड़ सकता है और कभी कभी रोटी भी छोड़ देता है पर क्रोध नहीं छोड़ शकता । कोध छोड़ने को कहनेवाला क्रोध का भाजन बन जायगा । वह ऐसे चिढ़ जायगा मानों किसी हिंदूबा मुसलमान से कह दिया हो कि तुम हिन्दू या इस्लाम धर्म छोड़ दो।।
सका तमो णिवारेतुं मणिणा जोतिणा वि या। कोयं तमं तु दुज्ञेयो, संसारे सब्बदेहिणं ॥ ७ ॥ ससं बुद्धि मती मेधा, गंभीरं सरलत्तणं ।
कोहग्गहाभिभूत रस सञ्चं भवति णिप्प॥८॥ अर्थ:-गि और ज्योति के द्वारा अंधकार का निवारण किया जा सकता पर कांध का अंधकार संसार के समन्त देहयारियों के लिये भजेग है।
शोध रूप अद से अभिभूा व्यक्ति के सत्व बुद्धि मति नेघा गमीर्य और सरलता रागी निष्प्रभ हो जाते हैं । गुजराती भाषांतर:1 રને અને જ્યોતિ અંધકારનું નિવારણ કરી શકે છે. પણ જો અધિકાર સંસારના બધાં પ્રાણીઓ માટે : 74 (निबा२३ १२वा अशय).
કોલરૂપી મહા પરાજય પામેલા માણસની સાવક બુદ્ધિ, મતિ, મંધા, ગાંભીર્ય અને સરલતાપણું નિપ્રભ ( मुं) मनी नय छे.
कोध की अग्नि व तुलना के बाद अब कमारा अंधकार से अम उमिन किया जा रहा है। छोटा। झीपक पर के अंधकार को दूर कर सकता है, पर कोर का अंधकार गेला अंधकार है जिसे संसार का कोई दीपक दूर नहीं कर सकता कोच एक राक्षा दे, पन आना हे नथ तुफान मात्र लाता है। आप बुलाते हैं तभी वह आता है, आते ही वह खुराक मागता है। उसका गोलर सदसदी विचक शुद्धि, तत्वग्राहिणी प्रज्ञ', याणी की प्रवरना और दारीर की कार्यक्षमता। वेवारी के सरलता और गंभीरता तो उसके आने ही भाग खड़ी होती है।
एसा कहा जाता है कि खटमल सा खून लगते ही हीरे की चनक समार हो जाती है। यही कहानी आत्मा की है। उस पर कोष का दाग लग जाता तो उसकी सारी चमक भमान हो जाती।
पर आश्चर्य तो यह है इतना सब कुछ जानकर भी मानव कोर से चिपटा हुवा है, आज घर अगा की नहीं-क्रोध की पाठशाला हो गया है। पुत्र गलती करता है नो पिता उसे क्षमा के बदले कोध की भाषा में समझाना है। छोटा भाई गलती पर हैं तो यहाभाई कोत्र का उपयोग करता है। यह दे कोध का फैलाव । मनुष्य समझता है में क्रोध की भाषा से रोगमझा इंगा पर यह भ्रांति है। कोध की कहारा शिक्षा की मधुरिमा मिलनी है तो शिक्षा की मिठास खा जाती है, और फिर मारी शिक्षा विष मिले दूत की गाति फेंकने काम की रह जाती है।
प्रसिद्ध विचारक महात्मा भगानदीन जी ने लिखा है काँध की गई हमने यालकों को क्षमा का पाठ दिश होता और क्षमा का प्रयोग सिम्बाया होता गरे न अवतारों की जरूरत होती न रमूल पैगम्बरों की न महापुरुषों की।
गंभीरमेरूसारे वि पुवं होऊण संजमे ।।
कोउगमरयो धूते असारत्तमतिच्छति ॥९॥ अर्थ:-- पहले संया सुमेह के समान गंभीर वारशील रहा हो फिर भी क्रोधोत्पत्ति की रज से आवृत होकर निःसार हो जाता है। गुजराती भाषांतर :
પ્રધમ સંયમ મેસ્પર્વતની જેમ ગંભીર (અડગ) રહ્યો છે, તો પણ કીધોસ્પત્તિની એક ચિનગારીથી ભસ્મીભૂત થઈ જાય છે.
गीत शरीर को मारती है, तो क्रोध संयम की मौत है। मेरा विशाल और मारशील संग्रम को क्रोध की नहीं चिनगारी भस्म कर सकती है। रुई के देर के लिये न चिनगारी पाप है। चंयुकौशिक की जीवन कहानी इराका ज्वलंत उदाहरण हैं।