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________________ तारायण अर्हता प्रोत छत्तीसवां अध्ययन है पूर्व अध्ययन में कषाय का रूप बताकर भाव-जागृति का संदेश दिया गया था प्रस्तुत अध्ययन में कषाय विजय की प्रेरणा है। जब तक मोह तब तक फोन आता रहेगा, फिर भी उस पर विजय पाने के प्रयत्न आवश्यक हैं। को आया और लड़ लिये और मिल गये यह मानव का चित्र हैं, किन्तु क्रोध आया और लड़े और क्रोध शान्त होने के बाद एक दूसरे को मिटाने में जुट गये गढ़ किये का है। लड़ाई शत्रुओं की अपेक्षा मित्रों में ज्यादा होती है। मित्रों में आये दिन उसई होती है जबकि शत्रु एक बार लड़ते हैं। शत्रु लड़कर जिन्दगी भर के अलग हो जाते हैं जब कि मित्र लड़कर भी एक हैं। में भी एक बाग है और जितनी जल्दी हो सके उस आग को बुझा देना ही ठीक है, क्योंकि वह शुद्ध ग नहीं, ज्वर की विकृत गर्मी है। शरीर में गर्मी तो आवश्यक है किन्तु एक सौ सात डिग्री की गर्मी मृत्यु का वारंट है। इसी प्रकार आत्मा में शुद्ध तेज तो आवश्यक है किन्तु कोष की गर्मी नमी है और वह नरक की माँ है। लवार को देखकर नीर की याद आ जाती है। राजू को देखकर व्यापारी की याद आ जाती है। इसी प्रकार म की को देखकर विचारकों को नरक की जनता की याद आ जाती है उस नरक की आग से भी क्रोध की आग अधिक भयावह है जो जीवन भर क्रोध की आग में झुला है, जहां पहुंचा वहाँ सर्वत्र जिसने लाग लगाने का कार्य किया है उस आग में परिवार समाज और राष्ट्र भी झुलसा है क्या उसके नसीब में स्वर्ग के फूल हैं ? नहीं, आग लगानेबाले के भाग्य में भाग है। नरक की आग उसका मूर्त रूप हैं 1 अतः साधक अपने कोष पर विजय पाये इस रूप में वह अपने गीतरी तेज को बश कर सकता है और उसके द्वारा महान सफलता पा सकता है। विज्ञान की सफलता आज तेज तत्व पर निर्भर है। बिजली को काबू में करके अनंत गगन में रॉकेट और उपग्रह छोड़ने में सफल हो सका है। चह इसी प्रकार साधक अपने भीतरी तेज को काबू में रखकर आध्यात्मिक उपग्रह छोड़ सकता है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था A heat conserved is trashanted into energy 80 anger controlled can be transunted into a power which en move the world. जैसे ताप सरचित रहकर शक्ति में परिवर्तित दिया जा सकता है जो विश्व को हिला दे। अईत उसी को पर विजय पाने की प्रेरणा दे रहे हैं उप्पतंता उप्पतता उप्पयंत पितेण वोच्छामि । किं संतं बोच्छामि ? ण संतं वामि कुकसया, वित्तेण तारायमेण अरहता इसिया बुतं ॥ + अर्थ :उम्र रूप में उत्पन्न होने से कोष से उबलते हुए व्यक्ति को प्रिय वचनों से योगा क्या शान्त मचन सेकुरित होकर (फोध में जल भुन कर ) कुल्लित वचन कहूंगा इस प्रकार आध्यात्मिक लक्ष्मी से युक्त तारायण अवधि पो गुजराती भाषांतरः ઉગ્ર સ્વરૂપમાં પેદા થએલ ગુસ્સાથી ગરમ થયેલા માણસામે મીઠી વાતો કરું, કે શાન્તુ વચનોથી સમઝાનું કે ગુસ્સાના જુસ્સામાં છૂટ્ટી વાતો કરું ? આ પ્રકારે આધ્યાત્મિક-લક્ષ્મીસંપન્ન તારાયણ તર્ષિ બોલ્યા. शब्द की टक्कर लगते ही को उबल उठता है । क्रोध के क्षणों में मनुष्य सोचता है जिसके प्रति को आ रहा है। उसको अधिक से अधिक पीड़ा पहुंचाई जाय और इसीलिये वह मर्मवेधी शब्दों का प्रयोग करता है किन्तु सोचना यह कि क्या यह जरूरी है। क्रोधी को देखकर हम भी कीन में उबल जावें। दूसरे को धूलिधूसरित देखकर हम तो अपने ऊपर धूल नहीं दाते। दूसरे को निर्धन देशकर हमें निर्धन बनने का स्वप्न नहीं आता, फिर दूसरे को क्रोधी देखकर हमें क्यों फोन आ जाता है ? इसका मतलब यह हुआ क्रोध हम में भरा है यह तो एक बहाना है " कि उसे कोषित देखकर मुझे गुस्सा आ गया । " १ एस मारे एस न रथे ।-भाचारांगसूत्र,
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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