________________
į
२२६
इसि भासियाई
अर्थ :---इस अज्ञान भट्टालिका में तू जागता हुआ शोचनीय है। जैसे कोई निर्धन व्यक्ति घाव हो जाने पर भी औषध के मूल्य को न जानता हुआ औषध खरीदने में असमर्थ रहता है, उसी प्रकार तुम भी समझो कि भाव जागृति अभाव में तुम तत्व को पा न सकोगे।
गुजराती भाषान्तर :--
આ
આ અતયા કિલ્લામાં તૂ જાગે છે (ખરો, પણ તે તારે કૃત્ય દિગિરીભર્યુ છે. જેમ એક ગરીબ માણસને વાગ્યું હોય કે તેને થા પડ્યો હોય તો પણ તેની દવાની કીમત માલુમ ન હોવાથી દવા ખરીદવામાં અસમર્થ અને છે તેમજ બાવ નગૃતિનો અભાવ હોય તો તૂ તત્ત્વને મેળવી શકીશ નહીં,
प्रस्तुत गाथा में अर्हर्षि भाव जागृति के लिये प्रेरणा दे रहे हैं, केवल आंखें खुल रहना ही जागृति नहीं है। भाव जागृति का मतलब है वस्तु के स्वरूप का ज्ञान जब तक वस्तु तव को नहीं पहचाना तब तक देख लेना कोई महत्त्व नहीं रखता। वनस्पति को देख लेने मात्र से वह औषध के रूप में काम नहीं दे सकती गुण न जाना जाय तब तक नाग दमनी (विषनाशक बेल ) भी केवल जब मात्र है । अतर्षि सोदाहरण इस तथ्य को पुष्ट कर रहे हैं। एक पीड़ित व्यक्ति जिसके शरीर में चारों ओर घाव हो रहे हैं, वह औषधिविक्रेता के पास भी पहुंचता है, किन्तु औषधि का मूल्य वह जानता नहीं है और वह पहले ही घबरा जाता है मुझे निर्धन के पास इतने पैसे कहा कि मैं इसे खरीद सकूं ? यह औषधियों के नादार के निकट बहकर भी खास्थ्य लाभ प्राप्त नहीं कर सकता। अतः साधक वस्तु तस्व को समते वही भाव जागृति है और अज्ञात अट्टालिका में दही रक्षण दे सकती है।
ठीका : अज्ञाताहालिके आम्रच्छतोचनीयोऽसि नहिसिसि यथा कश्चिदनहीनो मतिः समीपथ मूल्यमचिन्छन् दातुं न शक्यः । गतार्थः ।
जागरह णरा णिच्वं जागरमाणस्स जागरति सुतं । जे सुचति न से सुहिले जामरमाणे सुही होति ॥ २२ ॥
अर्थ :- मनुष्यों | सदा जाग्रत रहो । जागृत रहनेवाले के लिये सूत्र भी जागृत रहता है, जो सोता हैं उसके लिये सुख नहीं है। जागृत रहनेवाले पास ही मुख है I
गुजराती भाषान्तर:—
માનવો 1 હમેશા સાવધાન રહો. જાગૃત રહેનારને માટે સૂત્ર પણ જાગૃત રહે છે. જે માણસ સુએ છે તેને સુખ મળશે નહી, જે જાગૃત રહે છે. તેને પાસે સુખ હંમેશા રહે છે.
साधक को जाति का संदेश देते हुए अतर्षि ने एक महत्व पूर्ण बात कही है कि सूत्र भी उसी के लिये जानत है जिसकी आत्मा जागृत है। आचार्य संपदागणि व्यवहारमाप्य में 'सूत्र' शब्द की व्याख्या करते हुए एक स्थान पर लिखते हैं सुख का एक रूप सुप्तं भी बनता है । अर्थात् सूत्र तो सुप्त रहता है उसे जगाने की आवश्यकता है। सूत्र को वही जगा सकता है जिसकी आत्मा खयं जागृत हो ।
दूसरी ओर जागृत बारमा को ही सूत्र प्रकाश दे सकता है। किन्तु जिसकी आमा सुप्त है उसके लिये सम्य शाख भी प्रकाश नहीं दे सकते खप्रकाश के अभाव में पर प्रकाश का कोई महत्व भी नहीं है। अंधे के हाथ में रही हजार पावर की बैटरी भी कोई उपयोगी नहीं है, वह उसे कांटों और कंकरों से बचा नहीं सकती क्योंकि उसके पास स्वतः प्रकाश नहीं है। ठीक इसी प्रकार प्रकाशहीन दृष्टि लेकर आप आम के पास पहुंचेंगे तो वहां भी प्रकाश प्राप्त न होगा। साथही यदि दृष्टि प्रकाशमती है तो आगम ही नहीं । आगमोत्तर साहित्य भी आपको सम्यग्ज्ञान प्रकाश देगा, क्योंकि प्रकाश के अभाव में सम्यक् श्रुत भी मिथ्याभुत है म महावीर के विचार सूत्रों में यह तय दिन के उजाले की मोतिर है।
सम्मविद्विरस सम्म सुबाई मिच्छादिस्सि मिच्छा सुयाई - नंदीसूत्र
सम्यक दृष्टि संपश्न के लिये सम्यक है और मिध्यादृष्टि के लिये यही त मिया भी है। रसश हृदयवाले व्यक्ति के लिये ही मुला एक महकता पुष्प है तो जब कि गुबरेले के लिये गुलाब सभी गन्ध देनेवाला पदार्थ मात्र है। अतः अत कह रहे हैं खुली दृष्टि लेकर चलें तो सर्वत्र प्रकाश मिलेगा ।
1