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________________ पंतीरूपान २२५ दाणं गारवाणं व मल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निच्चं से न मच्छइ मंडले । बिहगाकसायसन्माण झाणाणं च दुयं तहा। जे भिक्खू बजई निच्च से न अरछद मंडले ॥ उत्तर अ० ३१ गा०४-५. संशा :-जन की मूल अमिप्याएं संज्ञा कहलाती हैं जो अयाधिक रूप में समा संझारी आत्माओं में व्याप्त हैं। ने आहार, भय, मैथुन और परिग्रह की नियां संज्ञा है। गौरव:- याहिरी संगधाएं जिनको पाकर जन सामान्य गर्व की अनुभूति करना और दूगरों को हीन मगता है। जागरह णरा णिच्चं मा भेधम्मचरण पमत्ताणं । काहिंति बहाचोरा दोग्गतिगमणे हिडाकम्मं ॥ २० ॥ अर्थ:-गानयो । सदैव जान रहो । धर्माचरण में प्रमत्त न वनो : तुम्हारे ये बहुत से चोर दुर्गति गमन के लिये निकट कर्म करते है। गुजराती भाषान्तर: માનવો ! હરહમેશા સાવધાન રહો. ધર્માચરણમાં ઉદામ ( પ્રવૃત્તિ) રાખો. તમારા આ ઘણા ખરા ચોર દુર્ગતિનગમનને માટે હીન કૃત્યો કરે છે, साधक को सजग रहने को पिर प्रेरणा दी गई है। चतुर चोर कोने में दुबक जाते है और रात्रि के निस्तथ क्षणों में जब कि नालिक गहरी नींद में होता है तब वे बाहर आते है और संपत्ति का अपहरण करने हैं । ठीक इसी प्रकार वासना के चोर जागति में आते नहमने हैं। सामाजिक गय या वजा परिजनों का भय उन्हें बाहर आने से रोकता है और दृप्तीलिये चे अवचेतन मन की अंधेरी गुफा में जा छिपते हैं, किन्तु रात्रि के प्रशान्त क्षणों में जब कि व्यक्ति निद्रा की गोद में होता है। समाज का भय रहता है न खजन परिजनों के सामने खुले जाने का ही उस समय अप्न के रूप में वाराना के चोर प्रवेश करते है। स्वान क्या है ? मन के छुपे चोरों की कीड़ा ही हो । हमारे खप हमें अपने आपको परखने का मौका देते है। यदि जन में बासना के चित्र आने हैं तो समझना होगा मन के भीतर काम का चौर बैठा है। यदि स्वर में भोजन का दृश्य आता सताना होगा मन अभी मिठाईयों से अनुप्त है। ये दृश्य राद करते है कि याराना के गोरी को दबाया गया निकाला-नहीं गया । जैसे कश्य आर्डर के समय सुना के चौराहे पर आसे ही उपद्रवी तत्व गली पूत्यों में दुबक जाते है और उसके हरते ही पुनः सुलकर खेलने लगते हैं। ऐसे ही संयम के जीवन के चौराहे पर आते ही वासना और विकृतियों के चोर मन की अंधेरी गुहाओं में दुबक जाते हैं और मौका पाते ही पुनः मंच पर आ जाते हैं। अतः भाधक राजग रह । जागृति की भांति निद्रा में भी उसका विकारों पर अनुशासन रहे। स्वान उसके जीवन का सही चित्र देते हैं कि विकारों के साथ संघर्ष में उसे विजय ने कहां तक साथ दिया है। वह अप्रमत्त रहकर साधना करे। अनुचित ढंग से दान न करे । अन्यथा वे मन में घुटती हुई अतृप्त कामनाएं साधक को दोनों ओर से ले बैटगी । अगमवाणी है कामे व पत्थमाणा मकामा जति दोरगई। उत्तरा० अ०९ बाहर से निष्काम बना साधा अन्तर से काम की अभ्यर्थना करता है तो वे अतृप्त इच्छाएं उसे दुर्गति का पथिक बना देंगी। अण्णायकम्मि अट्टालकमि जग्गंत सोयणिजोसि । णाहिसि वणितो संतो ओसहमलं अविदे तो ॥२१॥
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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