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________________ पैंतीसवां अध्ययन २१९ ખીજા માજુથી ઘાયલ થયેલા માણુસનો એકજ ભવ બગડે છે; પરંતુ માયાના બાણથી ઘવાયેલો માસ ભવપરંપરા ( એટલે અનેક નવો )ને બગાડી દે છે, એમ હું માનું છું. सरलता की भूमि में धर्म का पौधा लगता है। जीवन की वकता सरल वस्तु को कपट रखकर कोई भी रोगी स्वस्थ नहीं हुआ है। अध्यापक ने छल कर कोई भी व्यक्ति दुराव छिपा पाकर कोई भी मुवकील विजय नहीं पा सका । विकृत बना देती है। डाक्टर से शिक्षा नहीं पासका। वकील से आलोचना जैसी पवित्र क्रिया भी दूषित हो जाती है । जो आलोचना शुद्ध हृदय से की जाती है तो जिस पाप का एक माका आता है, किन्तु छल के द्वारा की हुई आलोचना करने पर उसी अपराध का दो मास का प्रायश्वित आता है। आगम में मायाशील आत्मा को मिथ्या दृष्ठि बताया गया है। 'मायी मिच्छादिट्टी अमायी सम्मदिनी' । साथ ही माया को तिर्यग्योनि का बन्ध हेतु बताया गया है। जीवन की वक्रता शरीर को भी वक बना देती है । अण्णाणविप्पमूढप्पा पच्चुप्पण्णाभिचारए । लोभं किया महाबाणं अप्या विधह अप्पकं ॥ ७ ॥ मणे बाणेण विद्धे तु भवमेकं विणिजति । लोभवाणेण विद्धे तु गिज्जती भवसंतति ॥ ८ ॥ अर्थ :- अज्ञान से आत आत्मा वर्तमान को ही ग्रहण करता है। लोभ को महाबाण बनाकर उसके द्वारा आत्मा स्वयं को बींध लेता है। अन्य बाथ से बींधा हुआ आत्मा एक भव को ही खोता है, पर लोभ बाण से विन्द्र व्यक्ति अनेक भवों को खो बैठता है । गुजराती भाषान्तर : અજ્ઞાનથી આવૃત ( ઘેરાયેલો ) માનવ ચાલ. પરિસ્થિતીને જ વળગી રહે છે. ચૌલને મહામાણુ ( મોટામાં મોટું સાધન) સમજી પોતાના જ કૃત્યોથી પોતાને ઘાયલ કરી બેસે છે. બીજા બાણુથી ઘાયલ થયેયો આત્મા કદાચ એક ભવને ખોઈ બેસે છે, પણ લોભ પી આણુથી ધાયલ થયેલ આત્મા ઘણા જ ભવોને ખોઈ બેસે છે, I लोभ यह चतुर्थं कषाय है, जिसके लिये आगम बोलते हैं लोहो लध्वविभासणो । ” लोभ समस्त विनाश का हेतु है। इंग्लिश कहावत है- Ararioe is root of all evils, लोभ समस्त पापों की जड़ है । देश और कोणिक के बीच हुए युद्ध और भीषण नरसंहार के पीछे एक हृदय का लोभ ही तो बोल रहा था। विभिन्न राष्ट्रों में होनेवाली रक्त क्रान्तियों की जड़ में लोभ ही बोल रहा है। संग्रह और शोषण वृत्ति के पीछे भी यही काम करता है । टीका :- ज्ञानविप्रमुहारमा प्रत्युत्पन्नाभिधारकः कोपं मानं मायां लोभं कृत्वा महाबाण मारमा विश्वत्यात्मानं । मन्ये वाणेन बि एकमेव भवं विनीयते क्रोधमानमायालोभवाणेन विद्धस्तु भवसंतसिं नीयते जनः । गतार्थः । लम्हा तेसिं विणासाय सम्ममागम्मसम्मति । अयं परं च जाणित्ता चरेऽविसय गोयरं ॥ ९ ॥ अर्थ :- अतः साधक के कपाय के नाश के लिये सम्यक रूप से सम्मति को प्राप्त करे और ख और पर का ज्ञान करके भविषय गोचर वातावरण में रहे. । गुजराती भाषान्तर : માટે સાધકના કષાયનો નાશ કરવા માટે સારી રીતે સતિ મેળવી લેવી જોઈએ અને સ્વ તથા પરનું જ્ઞાન કરી લઈ અવિષયગોચર ( જ્યાં વિષયોનું જ્ઞાન દ્રિયોને થાય નહી એવા ) વાતાવરણમાં જ રહેવું જોઈએ. ? जे भिक्खु मासियं परिहारं ठाणं परिसेवित्त आलोएज्जा आपलियेचियं आलोयमाणरस मासि, पलिओनिय आलोय माणस दोमासि । व्यवहारसूत्र ३० १ सू० १. २ माया तैर्यग्योनमस्य । तत्त्वार्थे अ. ६ सू. १७
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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