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इसि-भासिया जब अज्ञान का आवेग तूफान पर होता है तो कभी कभी ना सत्य के वक्ता को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है और आशय नहीं यदि अज्ञानी मानव विश्व प्रकाश पुंज को अपने ही हाथों चुना दे। इतिहास साक्षी है मानव के विकास के लिये जिन्होंने नया प्रकाश दिया, क्रान्ति की नई लहर दी, उसके जीवन को नया मोड़ दिया, पर उस मानव ने उन्हें क्या दिया ? किसी युगद्रष्टा महापुरुष को उराने फांसी पर चढ़ाया तो किसी सत्य के प्रखर वा को जहर का प्याला पिलाकर दुनियां के लेटफार्म से हट जाने को विवश कर दिया तो किसी को गोली से वींध दिया।
पर उस महापुरुष में क्या दिया। उसने दुनियां का विष पिया और बदले में अमृत दिया। दुनिया ने उसे या •और तिरस्कार दिया तो उसने दुनियों को प्रेम और करुणा दी। सत्वद्रष्टा विचारक मौत की एड़ियों में भी अपने मारनेवाले के प्रति आशीर्वाद बरसाता । लाउन जोगको नाभर देता है जो जोदते है, इभी प्रकार महापुरुष अपने हृदय में उन्हें भी आश्रय देते हैं, जो उन्हें सताते हैं । उर्दू का शायर बोलला है
"कातिल का इरादा है चिसिमल को मिटा देंगे। विस्मिल का तकाजा है कासिल को नुक्षा देंगे।"
और राच बात यह है अपने मिटाने वाले के प्रति आशीर्वाद बरसाकर ही मानव महामानव बनता है। क्रोध का बदला क्रोध से लेने में क्या आनंद है? सारी दुनियां जानती है किन्तु क्रोध को क्षमा से जीतने का आनंद महापुरुष ही जानता है। दक्षिण के महान संत तिरुवल्लूर बोलते हैं-घमंड में चूर होकर जिन्होंने तुम्हें हानि पहुंचाई है उन्हें तुम अपनी मलमनसाहत से विजय कर लो-बदला लेने की खुशी केवल एक दिन रहती है, मगर जो पुरुष क्षमा कर देता है उसका गौरव सदा स्थिर रहता है। एक और महत्त्वपूर्ण बात ये कह गये हैं-अतिथिसत्कार से इन्कार करना ही सबसे अधिक गरीबी है तो मूखों की बेहूदगी को सहन करना सबसे बड़ी बहादुरी है।
एक विचारक अपने प्राण विधातक को भी इसलिये क्षमा कर देता है कि वह सोचता है इसने मेरे प्राण के दीप को घुझाया है किन्तु मेरे राज्य विचारों के प्रदीप को नहीं बुझाया और इसी विचारसृष्टि ने क्रूस पर चढे ईसा से मुंह से कहलवाया था परमात्मा इन्हें क्षमा करना ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। इसी विचार ज्योति को पाकर गजसुकुमार की आत्मा ने सोमिल को क्षमा किया था और स्कंधक ने अपनी चमड़ी उतारनेवाले से कहा था- भाई : तुझे कष्ट तो नहीं हो रहा है। और इसी प्रकाश को पाकर राष्ट्रपिता गांधीजी की आँखों ने गोडसे को क्षमा किया था।।
यह पूरी विचार सृष्टि समत्व साधना की है । अज्ञानियों के कष्टों को हम सह सकें और मन में उनके प्रति दुर्भावना न आने पाएँ, उसकी यह साधना है इसके द्वारा हम कपाय पर विजय पा सकते हैं।
एक रूपक बौद्ध साहित्य में गी मिलता है। एक भिक्षु भगवान बुद्ध से अनार्य देश में विचरण की अनुमति मांगता है । तब करुणावतार बुद्ध बोले
मिक्षु । अनार्य लोक तुम्हें गालियां देंगे और तुम्हार। अपमान करेंगे तो? भन्ते । मैं सनझंमा ये केवल गालियां ही देते है, ६ आदि रो प्रहार तो नहीं करते ! भिक्षु । यदि उन्होंने इंटे से प्रहार किया तो? भन्ते में समझूगा इन्होंने दंडे से ही प्रहार किया है, शस्त्र से शरीर पर आत्रात तो नहीं किया ! मिनु ! यदि किसी ने तुम्हारे शरीर पर शस्त्र से प्रहार किया तो? भन्ते । मैं सोचूंगा इन्होंने मेरे प्राण तो विसर्जित नहीं किये। भिक्षु | यदि वे प्राण लेने पर उतारू हो गये तो मन्ते । म सोचूंगा इन्होंने मुझे आत्महत्या के पाप से बचाया है ! दुर्जन पर सज्जनता की विजय की ऐसी कहानियाँ थोडे परिवर्तन के साथ जैन, नीद्ध और वैदिक साहित्य में मिल जाती है।
टीका:-बालश्च पंडित जीविता ज्यवरोपयेत् तद् पंडित इत्यादि यावत् ध्यपरोपयति न धर्माद् भ्रश्यति । मूर्ख इत्यादि पूर्ववत् । गताः ।
इसिगिरिणामाण परिवायेणं अरहता इनिणा बुइतं. जेण केणइ उवापर्ण पंडिओ मोहज्ज अप्पकं । बालेण उदीरिता दोसा तं पि तस्स हिजं भवे ॥१॥