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________________ चौंतीसवां अध्ययन २०९ गुजराती भाषान्तरः સમજો કે અજ્ઞાની માણસ સજ્જન પર કોઈ શસ્ત્રથી પણ હુમલો કરે તો તત્ત્વજ્ઞ માણસે બહુ શાંતિથી તેનો આવી રીતે વિચાર કરવો જોઈ એ કે આ અજ્ઞાની ( ખાલક જેવી) માણસ શસ્ત્રથી મારા ઉપર હુમલો કે થા કરે છે, પણ મને મારી નાખતો નથીને? બસ,, આ માસ સાવ મૂરખ છે જે એ ન કરે તેટલું ઓછું છે, એમ સમજી શાંત રહેવું. एक सम्त की सीधी और सच्ची बात भी कभी कभी स्वार्थी सत्ताधीशों की दुनियां में भूकंप मचा देती है। क्योंकि नम सत्य सुनने के लिये दुनियां के पास कान नहीं है । लेबनान के प्रसिद्ध विचारक खलील जिमान ने कहा है "यदि तुम एक बार नग्न सत्य बोलोगे तो तुम्हारे स्नेही साथी तुम्हें छोड़ देंगे। यदि दुबारा तुमने नम सत्य उच्चारा तो तुम देश की सीमाओं से बाहर कर दिये जाओगे और यदि तीसरी बार नन सल कहने के लिये तुम्हारी जीभ खुली तो फोसी का लटकता रस्सा गले में झूल जाएगा और दुनियां से तुम्हारा अस्तित्व समाप्त कर देगा। दुनियां के काम कये हैं। और सत्य की ओच सहनी पड़ती है"। एक विचारक ने कहा है Truths and roses have thorns about them. सत्य और गुलाब के पुष्प के चारों ओर कांटे होते हैं। विश्व कवि रवीन्द्रनाथ ने कहा है “सत्य अपने विरुद्ध एक अभी पैदा कर देता है और वही उसके बीजों को दूर दूर तक फैला देती है"। हर विचारक को अभि परीक्षा से गुजरना पड़ता है। गालियां और उपहास तो सुधारक के लिये सर्व प्रथम उपहार हैं, किन्तु जव वे कामयाब नहीं होते तो स्वार्थ और सत्ता का आक्रोश हाथ में तलवारें लेकर निकल पड़ता है। किन्तु शस्त्र प्रहार के समय भी साधक अपनी अपनी समस्थिति को मंध न होने दे। वह गोचे ये बेवारे अज्ञान की अंधेरी गलियों में भूले भटके राही मेरे शरीर पर भावात करके ही रह जाते हैं। मेरा जीवन तो समाप्त नहीं करते। मैंने इनके विचारों पर प्रहार किया है और ये तो शरीर पर प्रहार करके रह जाते हैं; पर यह निश्चित हैं कि शरीर के प्रहार की अपेक्षा विचार की देह का आघात मार्मिक होता है। चिन्तन की यह धारा साधक की मनःस्थिति को द्वेष से विकृत होते बचाती ही है, साथ ही शान्ति के वे शीतल छींटे उनकी आत्मा में कषाय को प्रवेश नहीं करने देते और इसीलिये वह अपने प्रहार कर्ता को भी क्षमा कर सकता है। इसी पवित्र विचारों की प्रेरणा ने तेजोलेश्या के द्वारा मार्मिक वेदना देनेवाले गौशालक को भगवान महावीर के मुंह से क्षमा कराया था। दोका :- बालश्चेति संयोजने वेद् अर्थे वा पंडितं केनविला जातेन किंचिच्छरीरजातं शरीर भागमाच्छिनत्ति विच्छिनत्यादि यावश्वविच्छिन्द्यात् तत् पंडिता इत्यादि यावत् विच्छिनत्ति वा न जीविताद्व्यपरोपयति मूर्ख इत्यादि पूर्ववत् । गतार्थः । बाले य पंडितं जीवियाओ बबरोवेजा, तं पंडित बहु मण्णेजा, "दिट्ठा मे एस वाले जीविताओ चवरोवेति णो धम्माओ भंसेति मुक्खसभावा हि बाला ण किंचि बालेहिंतो ण विजति तं पंडिते सम्म सहेजा खमेजा, तितिक्खेजा, अहिया सेज्जा । अर्थ :- यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति किसी पंडित का जीवन समाध करता है तब भी पंडित उसे बहुत माने और सोचे, मैंने देखा है वह अज्ञानी मेरा जीवन ही समाप्त करता है किन्तु मुझे धर्म से पृथकू नहीं करता। अज्ञानी मूर्ख खभाव वाले होते हैं, वे जो न करे यही कम है। अतः पंडित उसको सम्यक् प्रकार से सहन करे, क्षमाभाव रखे, शान्ति रखे, और मन को समाधि भाव में रखे । गुजराती भाषान्तर: એક અજ્ઞાની માસ કોઈપણુ બુદ્ધિમાન માણસનો પ્રભુ લઈ લે તો પણ્ તેની છેલ્લી ઘડી સુધી એવું સમજવું જોઈ એ કે આ મૂરખ મારો તો જીવ જ લે છે, મારા ધર્મશ્રી મને જુદો પાડતો નથીને ? અજ્ઞાની માસ હંમેશા મૂરખવૃત્તિના જ હોય છે. માટે સમજુ માણસે તેનું નૃત્ય ગમે તેમ કરી સહન કરવું, ક્ષમા અને શાંતિ ટકાવવી અને સમાવિભાવને જરાપણુ ખલલ ન પડૅ એવી રીતે વર્તવું. २७
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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