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________________ इसिगिरि अर्हतर्षि प्रोक्त चौंतीसवाँ अध्ययन जीवन उजले और काले धागों से बुना है। जीचन के हर क्षेत्र में कइये और मीठे छूट मिलते हैं। दुनिया के हर विचार को पहले शल मिले हैं और जब वह शलों से भी प्यार करता है तो दुनियाँ उस पर फूल बरसाती है, किन्तु जो शूलों को देखकर घबरा जाता है, दुनियां की आलोचनाओं से जिसका धैर्य समाप्त हो जाता है और जिसकी अपने कार्य से आस्था हिल उठती है वह कभी भी सफलता का दर्शन नहीं कर सकता । सफलता कायरों का साथ कभी नहीं करती। दुनिया की आलोचना से घबरा कर हम अपनी कर्तव्य निष्ठा से अलग न हो जाए। क्योंकि दुनियां की आने केवल बाहरी रूप देखती हैं। विचारक ने ठीक कहा है। Mon in general jadve more from upperincos than from reality. All men have eyes but few hare thogift of penetration.-मेकियावेली साधारणतः मनुष्य सत्य की अपेक्षा बाहरी आकार से ही अनुमान लगाते हैं। अखि तो सभी के पास होती है किन्तु विवेक की माखो का वरदान किसी को ही मिलता है। अतः जन साधारण हमारा विरोध और आलोचना करता है तो हमें उससे घबराना नहीं चाहिये । मैं तो कहूंगा जब हमारे कार्यो का विरोध हो नभी समझना चाहिये काम में निखार आ रहा है। विचारक बर्क ने ठीक कहा है 'जो हमसे क्रुदती लखता है वह हमारे अंगों को मजबूत करता है हमारे गुणों को सेज करता है । विरोधी हमारी मदद ही करता है।' शिलार कहता है Opposition always intends the enthusiast, never converts him, विरोध उत्साहियों को सदेव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं । विरोध को सद्द लेने की भी एक कला होती है उसमें मन को साधने की आवश्यकता होती है 1 सेनिक का शिक्षित घोड़ा टोफों के गोलों से भी नहीं चमकता, जबकि गधा पटान्ये की आवाम से ही बेकाबू हो जाता है । अतः विरोध सह लेने के लिये मन को साधने की आवश्यकता होती है। अहेतर्षि उसी साधना की ओर साधक का ध्यान खींचने के लिए प्रस्तुत अध्ययन को उपस्थित कर रहे है - पंचेहिं ठाणेहिं पंडिसे बालेग परीलहोयसम्गे उदीरिजमाणे सम्म सहेजा खमेजा तितिखेजा अधियासेजा। अर्थ:-पांच स्थानी से पंडित बालपुरूषों ( अज्ञानियों)द्वारा उदीर्ण किये जानेवाले परीवह और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करे, उनको धारण करे उसको क्षमाभाव रखे और उन पर विजय प्राप्त करे । गुजराती भाषान्तर: પાંચ સ્થાનેથી પંડિત બાલ પુનષ ( અજ્ઞાની) વડે થનાર પરીવહ (ખ) અને ઉપસર્ગ (ત્રાસ કે કષ્ટ) એઓનું સહન કરે, તિતિક્ષા (ખમવાની શક્તિ થી ક્ષમા કરવી અને એવી રીતે તેના ઉપર વિજય (કાબુ મેળવવો. यदि अज्ञानी किसी सेतु पर प्रहार करता है तो साधक पांच प्रकार के विचारों से उन कष्टों का स्वागत करे और उन्हे समभाव के साथ सहे । टीका:-पंचेषु स्थानेषु पंडितो बालेन परीषहोपसर्गान् उदीयमाणान् सम्यक् सहेत् क्षमेत् तितिक्षेत अधिवालवेत् । गतार्थः। बाले खलु पंडित परोक्ख फरसं वदेजा, ते पंडिते बहु मण्णेजा: 'दिट्ठा मे पस हाले परोक्खं फरसं वदति, णो पञ्चपखं । मुक्खसभाषा हि बाला, णं किंचि बालेहितोण यिजति । तं पंडिते सम्म सहेज्जा खमेजा सितिखेजा अधियासेज्जा। अर्थ:--यदि एक अज्ञानी प्राणी किसी पंडित पुरुप को परोक्ष में कठोर बचन बोले तो पंडित उसे बहुत माने और वह सोचे कि यह प्रत्यक्ष में तो कुछ नहीं बोल रहा है। वे अज्ञानी व्यक्ति मूर्ख स्वभाव वाले होते हैं । अज्ञानियों से कुछ
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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