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चौंतीसवां अध्ययन
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भी अछूता नहीं है यह सोचकर विद्वान् पुरुष चिन्दात्मक वचनों को सहन करे उनके प्रति क्षमाभाव रखे, मन के समाधिभाव को नष्ट न होने दे ।
गुजराती भाषान्तर :
જો એક ાણ્યો માણસ કોટપણ પાંડેત પુરુષને પરોક્ષ (તેની ગેરહાજરી) માં કાંઈપણ ભૂંડી વાતો ઓલે તો પંડિતે તે અજ્ઞાની માણુને સંમાન કરવો અને માની લેવું જોઈએ કે તે માણસ જે કાંઈ ખોલ્યો છે તે મારી ગેરહાજરીમાં જ ખોલ્યો છે, મારે સામેતો ખોલ્યો જ નથી. કારણ કે અજ્ઞાની માઝુસ મૂર્ખ સ્વભાવનો હોય છે. અજ્ઞાની માણસ તો હરએક વિષયની, કે હરએક વ્યક્તિની ( પોતે જાણકાર સમ) વાતો કરે છે, એ ધ્યાનમાં લઈ તેના નિંદાત્મક વાક્યોનું સહન કરે અને તેને ક્ષમા કરે તેમજ પોતાના સમાધિભાવમાં ખલલ પડવા ન દે.
दुनिया ने हर विचारक का विरोध ही किया है। क्योंकि वह समाज की सड़ी गली परंपरा को तोड़कर नया मार्ग प्रस्तुत करता है तो समाज चीखता है और चिलाता है। विचारविहीन लोग उसकी अप्रत्यक्ष आलोचना का आश्रय लेते हैं । उनमें इतना साहस नहीं होता कि वे प्रवक्ष में आकर कुछ कह सकें। ऐसे प्रसंगों में भी प्रज्ञाशील अपने विचार के प्रदीप को सुझते न दे और न उन पर आक्रोश ही करे। वह सोचे कि ये बेचारे अज्ञानशील हैं, इनकी आत्मा अंधकार में भटक रही है। ज्ञान की किरण का इन्हें दर्शन नहीं हुआ है। फिर भी ये बेचारे परोक्ष में मेरी आलोचना करके ही रद्द जाते हैं, प्रत्यक्ष में आकर बोलने का साहस नहीं करते ।
साथ ही ये मूर्ख स्वभाव वाले हैं यदि बातों का जवाब दिया जायगा तो इनकी आलोचना को बल मिलेगा । साथ ही हर मूर्ख अपने आपको सबसे बड़ा बुद्धिमान मानता है। उसकी जीभ से तो वह भगवान भी नहीं बचा है फिर हम जैसों की तो कहानी ही क्या है! ये विचार भी मानव की मनःस्थिति को सम रखने में सहायक होते हैं और निन्दा और अपमान के कढ़वे घूंट उतार जाने का साहस भी देते हैं और फिर विचारक दृढ़ता पूर्वक अपने मार्ग पर आगे बढ़ जाता है ।
टीका :- यथा बालः खलु पंडित परोक्षं परुषं वदेत् तत्पडितो बहु मध्ये यथा ष्टष बालो मे परोक्षं परुषं वदति न प्रत्यक्षं । मूर्खम्वभावा हि बालाः न किंचिद् बालेभ्यः कर्तृभ्यो न विद्यत इति तद् पंडितः सम्यक् सहतीत्यादि । मतार्थः ॥
चाले खलु पंडितं पचखमेव फरसं चदेजा, तं पंडिए बहु मण्णेज्जा : 'दिट्ठा मे एस वाले पश्चखं shirt, णो वा लडिया या लेडुणा वा मुट्टिणा वा वाले कवालेण वा अभिहणति, तजेति तालेति परितालेति परितावेति उद्वेति, मुक्खसभावा हि बाला, पण किंचि वाले हिंतो ण विज्जति' तं पंडिते सम्पं सहेजा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अधियासेज । ।
अर्थः- यदि अज्ञानी व्यक्ति किसी प्रज्ञाशील पुरुष को प्रत्यक्ष में कठोर वचन कहे तब भी विद्वान उसे बहुत समझे और सोधे । मैंने देखा है यह अज्ञानी व्यक्ति प्रत्यक्ष में कठोर वचन कह रहा है। किन्तु किसी डंडे से, लाठी से पत्थर से मुठे से या छोटे कपाल ( घड़े का टुकड़ा ठीकारो ) आदि से मारता नहीं हैं, तर्जना नहीं करता है। लाइना और परिताड़ना भी नहीं करता है न परिताप ही पहुंचाता है। ये अज्ञानी मूर्ख स्वभाव के होते हैं; ये न करें नहीं कम है। अतः विद्वान् उन कष्टों को सम्यक् प्रकार से सहन करे, क्षमाभाव रखे, शान्ति रने और मन के समाधिभाव को चलित न होने दे |
गुजराती भाषान्तर:
જો અજ્ઞાની માણસ કોઈ બુદ્ધિમાન માણસના મોઢા ઉપર અપમાન કરે તો પણ પંડિત તેનો ગંભીરતાથી વિચાર કરવો જોઈ એ કે આ અજ્ઞાની માણુસ શ્ત કઠોર વાણીથી લે છે પરંતુ લાઠીથી, લાકડીથી, પથ્થરી અમર કપાલથી મારતો નથી, પીડા આપતો નથી કે મર્મ વચનથી કે અન્ય સાધનોથી સંતાપ કરાવતો નથી, અજ્ઞાની માણસો એવાજ હોય છે, તે લોકો જે એવું કામ ન કરે તેટલુંજ ઓછું; માટે બુદ્ધિમાન માણસે ગમે તે રીતે તેવા કષ્ટોનું સહન કરવું જોઈ એ, ક્ષમાભાવ (બુલ કરનારને ખમવું), શાંતિ અને સમાધિભાવ ( ધ્યાનસ્થ વૃત્તિ) થી अभिशु असे व्यक्ति ( अस्थिर ) थवा हेधुं नखी.