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इलि-भासियाई
यदि मुझे मालूम हो जाय कि तुम किसके साथ रहते हो तो में बता सकता हूं कि तुम कौन हो। प्याज का साथ करनेवाली थेली से प्याज की बास आयेगी और गुलाब के फूलों का साथ करनेवाली शैली में फूलों की सौरभ आयेगी।
यद्यपि निश्चय दृष्टि में एक प्रात्मा न दूसरे को सूधार सकती है, न उभे बिगाड़ ही सकती है। यदि उसमें विकृति भाने का गण है तो पहीलो र साहै। लबाड़ में जलने का स्वभाव है तभी तो आग उसे जलाती है। पत्थर में वैसा स्वभाव नहीं है अतः दुनिया की कोई भी आग उसे जला नहीं सकती। इसी प्रकार जिसमें चिकृत होने का स्वभाव है उसे ही बाहरी संयोग विगाड़ सकते हैं। साथ ही उसके पतन का समय है तभी उसे ऐसा संयोग मिलता है। यदि उसका उदयकाल है तो उसे निमित्त भी सुंदर मिलेंगे।
फिर भी भावी भाव का ज्ञान न रखनेवाला जन सामान्य निमित्त से प्रभावित हो ही जाता है । हां, जिनकी चेतना जागृत है और जो विशिष्ट स्थिति तक पहुंच चुके है फिर वाहरी निमित्त उन्हें प्रभावित नहीं कर सकते हैं । गौशालक का निमित्त पाकर भी भगवान् महावीर की आत्मा विकृत नहीं हो सकी, क्योंकि वे निम्न भूमिकाओं को पार कर गये थे और विकारों पर विजय पाने की उनमें क्षमता भी थी। इसीलिये अशुम वातावरण भी उनकी शुभवृत्ति को अशुभ में मोड़ नहीं सका। फिर भी जन साधारण को चाहिये कि जब तक उच्च स्थिति पर पहुंच न जाए तब तक सुन्दर निमित्तों के बीच रहे, ताकि सुन्दर संस्कार मिलते रहें । क्योंकि यदि शरीर स्वस्थ और सबल है तो बाहर के कीटाणु उरा पर आक्रमण नहीं कर सकते। उसके शरीर के कीटाणु रोग के कीटाणुओं से लड़ सकते हैं, किन्तु यदि शरीर दुर्बल है और हार्ट कमजोर है तो रोग के कीटाणु बहुत जल्दी असर कर सकते हैं। इसीलिये तो डाक्टर रोगी को स्वच्छ वातावरण में रहने की खास हिदायत देते है। इसीलिये जन साधारण को भी चाहिये, कि जबतक चेतना पूर्ण विकसित न हो तब तक दूषित वातावरण से अवश्य बचता रहे।
इटेवाकित्ति पावेहि पेश्या गच्छेइ दोग्गति ।
सम्हा बालेहि संसगिणेव कुन्जा कदावि वि ।। ६॥ अर्थ:-रानों के द्वारा यहां भी अपयश मिलता है और बाद में आत्मा दुर्गति को जाता है। अतः साधक अज्ञानी आत्माओं का संसर्ग कमी न करे। गुजराती भाषान्तर :
પાપો (ખરાબ કામ) કરવાથી આ ભવમાં પણ અપયશ મળે છે અને પછી તે આમા દુર્ગતિને પ્રાપ્ત કરે છે, માટે સાધકે અજ્ઞાનની આત્માઓને સાથે કોઈ તરહનો સંબંધ કોઈ પણ સંજોગમાં ન કરવું જોઈએ.
पूर्व गाया में माधक को अज्ञानी आत्माओं से दूर रहने की प्रेरणा दी गई थी । यहां उराका प्रतिफल बताया गया है। मूखों का संग यहां भी अयश को दिलाता है। जो मून्दी के परिचय में रहता है और उनके इशारों पर काम करता है दुनियाँ उसे भी कभी सम्मान नहीं देती । साथ ही जब वह यहां से विदा लेता है तो परलोक में उसे सुन्दर स्थान नहीं मिलता । अतः वह उभयतो भ्रष्ट होकर अशान्ति पाता है। अनः विचारशील साधक अज्ञानियों के संसर्ग से दूर रहे। भगवान महावीर मे साधक को प्रेरणा दी थी : अज्ञानियों के संग से दूर रहो।
साहहिं संगम कुजा साहहिं चय संथ ।
धम्माधम्मं च साहहिं सदा कुश्विज पंडिए ॥६॥ अर्थ:-साधक साधु पुरुषों का संगम करे और साधु पुरुषों का ही संस्तव करे । प्रज्ञाशील पुरुष धर्म की चर्चा भी साधु पुरुषों के साथ ही करे। गुजराती भाषान्तर:- સાધકે સજજને સાથે સંબંધ રાખવું જોઈએ, અને સાધુ પુરૂષોની જ સ્તુતિ કરવી. તેમજ બુદ્ધિમાન પુરૂષ ધર્મની ચર્ચા સજજનો સાથે જ કરવી,
___ साधुपुरुषों का परिचय जीवन का निर्माण करता है। बवूल की छाया में काटे मिलते हैं और नीम के निकट जाने पर शुद्ध वायु मिलती है। ऐसे ही जीवन के कलाकारों के पास जीवन-निर्माण की प्रेरणा मिलती है और अज्ञानियों के निकट जीवन को गिराने की बातें मिलती हैं।
१न जारजातस्य ललाटगं कुले प्रसूतस्य न पाणिपाम् ॥ यदा यदा मुत्रति वाक्यबाण सदा तदा जातिकुलप्रमाणम् ।।