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तीसवां अध्ययन
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रूप से उस सोने का शासन स्वीकार कर लेते हैं, जोकि अनुभव हीन है। उसे शासक बनाकर समाज में से अच्छाईयों को देश निकाला देते हैं। पैसा नौकर अच्छा है किन्तु उसे स्वामी बनाकर तो हम अपने आपको मानसिक गुलामी की जंजीरों में जल देते हैं। Money is a good servant but & bad master पैसा नोकर अच्छा है किन्तु स्वामी के रूप में पैश्वा बहुत बुरा है । व्यक्ति की अच्छाई पैसे के द्वारा न मापी जाकर उसकी मधुर वाणी और अच्छे कार्यों द्वारा मापी जानी चाहिये ।
दुभालियार भासा दुकडेण य कस्मणा ।
जोगक्लेमं वहतं तु उसु वायो व सिंचति ॥ ३ ॥
अर्थ :- दुर्भाषित वाणी और बुरे कार्यों के द्वारा जो योगक्षेम का वहन करना चाहता है वह मानो देख को वायु से सिंचन करता है ।
गुजराती भाषान्तरः
ખરાબ (ભૂંડ) બોલી, અને ખરાબ કામો કરી પોતાની જીંદગીની ગુજણુ ફરવા ચાહનાર માણસ પવનથી शेरीन (सिंचनशी ) बता शमचा भागे है.
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मधुर वाणी में शक्ति बसती है और सुन्दर आचरण में पवित्रता रहती है। किन्तु जिनके पास दोनों का अभाव है वह मन का दरिद्री हैं । उसके पास योग और क्षेम दोनों ही नहीं आ सकते । असभ्य वाणी और बुरे कार्यों के द्वारा ओ व्यक्ति रोगक्षेम चाहता है उसका कार्य वायु के द्वारा इक्षु के सिंचन सा निष्फल है।
टिप्पणी- 'उतुवायो' शब्द अप्रचलित है। कोश में भी परिलक्षित नहीं होता। उसका एक संभावित अर्थ ऊपर दिया जा चुका है। दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है-पात के पत्रों का सिंचन; यह भी एक निष्फल किया ही हैं ।
सुभासिया भासाव सुकडेण य कम्मुणा । पणे कालवासी वा जसं तु अभिगच्छति ॥ ४ ॥
अर्थ:-सुभाषितवाणी और सुन्दर कृत्यों के द्वारा मानव समय पर बरसनेवाले मेघ के सदृश यश को प्राप्त करता है । गुजराती भाषान्तर :
સીડી વાણી બોલી અને સારા કૃત્યો કરનાર માણુસ સમય પર આવેલા મેઘરાજની જેમ સર્વત્ર વખાય છે, जिसकी वाणी में अमृत बरसता हो और जिसके जीवन में सदाचार की सौरभ है उसका जीवन उतना ही यशस्वी होता है जितना कि समय पर बररानेवाला मेघ ।
टीका :-- सुभाषितया भाषया सुकृतेन च कर्मणा । पर्जन्यः कालत्रयौन यशोऽभिगच्छति । गतार्थः ।
य बालेहि संस रिंग णेत्र वालेहिं संथवं ।
धमाधम्मं च वालेहिं गेच कुन कडाइ यि ॥ ५ ॥
अर्थ :-- साधक अज्ञानियों का संसर्ग न करे और न उनसे परिचय ही रखें। उनके साथ धर्माधर्म की चर्चा भी न करें ! गुजराती भाषान्तर :
સાધકે અજ્ઞાની માણુસૌથી છેટે જ રહેવું જોઈ એ. અને તેવા માસો સાથે પોતાનો સંબંધ પણ રાખવો નહીં અને તેવા માણુસો સાથે ધર્મ-અધર્મની ચર્ચા પણ કરવી નહી.
प्रस्तुत गाथा में साधक को अज्ञानियों के संसर्ग से दूर रहने की प्रेरणा दीगई है। क्योंकि मूर्ख व्यक्तियों का परिचय भी कष्टप्रद होता है। कोयले का व्यापार करनेवाले के हाथ काले हुए बिना नहीं रहते। ऐसे ही अज्ञानियों से अति परिचय रखनेवालों का जीवन भी उज्वलता को खो बैठता है ।
“जैसा संग चैंसा रंग" मनुष्य जिसके साथ रहता है पैसा बन जाता है। एक कहावत है यदि तुम मेड़िये के साथ रहोगे तो गुर्राना भी सीख जाओगे । यह तो देखा गया है कि बकरी चरानेवाला वकरी की भांति झुककर पानी पीता है। इंग्लिश विचारक बोलता है- Tell me with whom thou art fond and 1 will tell thee who thou art.