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________________ इसि भासिया शक्ति का सम्यक् प्रयोग करने पर मानव का पंडित रूप व्यक्त होता है और जब कि आत्मा की शक्ति मिथ्या प्रयोग की और होती है तब वह बाल कहलात । यह सम्यक् और मिथ्या प्रयोग वाणी और कर्म दोनों प्रकार का होता है। दीका :- द्वाभ्यां स्थानाम्यां वाले जानीयात्, द्वाभ्यां स्थानाभ्यां पंडितं जानीयात् यथा सम्यक् प्रयोगेन व मियायोगेन च कर्मणा भावयेन चेति श्लोकार्थम् । गतार्थः । १९८ उस दुकडेण य कम्मुणा । बालमेतं वियाजा कजाकज-विणिच्छा ॥ १ ॥ अर्थ : – दुवचैन वोलने, कुकूच करने तथा कार्याकार्य के विनय के द्वारा यह बाल ( अज्ञानी है ) ऐसा समझा जा सकता है। गुजराती भाषान्तर : ખરાબ વાતો કરવાથી, ખરાબ કામ કરવાથી અને કાર્ય અને અકાર્યના નિર્ણય ( કેવી રીતે કરે છે તે ) થી આ માણસ આલ એટલે અજ્ઞાની છે એમ સમજી શકાય છે, वाणी मन का चित्र है। जीभ के द्वारा जीवन परखा जाता है। जब मानव के मुंह से कटु शब्द निकलते हैं तो समदा लेना होगा भीतर का मरी | शीशी में इन भरा है या गटर का पानी यह निर्णय उसी क्षण हो जाता जबकि उसका दफन ( वुच ) खोला जाए। ऐसे ही यह विद्वान है या मूर्ख यह निर्णय भी उसी क्षण हो जाता है जब कि उसके मुंह का ढक्कन खुलता है । किन्तु हमें यह भी याद रखना चाहिये कि कटु और तीखे शब्द कमजोर पक्ष की निशानी है । मनुष्य हंसी और मजाक में कभी व्यंग के बाण छोड़ता है । किन्तु वे व्यंग के विष वुझे बाण हृदय की प्रसन्नता छीन लेते हैं। अतः ऐसी मजाकों से हमें बचना चाहिये जो हमारे मित्र के लिये तीर का काम दे । एक इंग्लिश विचारक बोलता है-Give yourself to be merry, but lot your mirth be ever Void of all icurre lity and biting words to any mann for a wound given by a word is often times harder to be cared than that which is given with the sword. तुम अपने आपको विनोद में रखो, किन्तु असभ्य भाषा और काटनेवाले शब्दों से तुम्हारे विनोद को दूर रखो, क्योंकि किसी भी मनुष्य पर किये गये शाब्दिक घाव का भरना तलवार के घाव से भी अधिक कठिन होता हैं । अतः हमारे व्यंग विनोद भी मधुर हों किसी के दिल में छेद है ऐसा नहीं होना चाहिये। साथ ही हमारे कार्य भी सुन्दर होने चाहिये । मधुर हैं किन्तु कार्यक है तो ऐसी मधुर शब्दावलि कोई महत्व नहीं रखती । वह तो "विषकुंभं पयोमुखं" है । अतः वाणी का माधुर्य जीवन में उतरना चाहिये। साथ ही हमारी विवेक दृष्टि रात्र खुली रहनी चाहिये । यदि विवेक का प्रदीप बुझ गया तो जीवन की अंधेरी रात में कर्तव्य की प्रेरणा नहीं मिल सकती। हां, तो हमें याद रखना है जिसकी वाणी से अशुभ शब्द निकलते हों, जीवन दुष्कृत्यों से दूषित हो और जिसका विवेकदीपक बुझ गया हो वह अज्ञान से आवृत है, फिर उसने चाहे जितने शास्त्र क्यों न रट रखे हों । टीका :- दुर्भाषितया भाषया दुष्कृतेन च कर्मणा, कार्याकार्यविनिश्चये बालमेतं विजानीयात् । सुभासियार भासा सुकडेण य कम्मुणा । पंडितं तं वियाणेजा धम्माधम्म- विणिच्छप ॥ २ ॥ अर्थ :- सुभाषित वाणी, सुन्दर नृत्य और धर्माधर्म के विनिश्चय के द्वारा पंडित की पहचान होती है। गुजराती भाषान्तर :-- વિદ્વાન માણસની સાચી ઓળખાણ તેના મોલવા-ચાલવા ઉપરથી, ` સારા કાર્યો અને ધર્માધર્મના નિર્ણય ઉપરથી તરતજ થઈ જાય છે. व्यक्ति की अच्छाई बुराई की पहचान उसकी वाणी और कार्यों के द्वारा होती है। स्थूल माप दंडों के द्वारा व्यक्ति मापा नहीं जा सकता | आज व्यक्ति पैसे के गज से मापा जाता है और सोने के पाटों द्वारा तोला जाता है। जिसके पास अधिक संपत्ति और वैभव विलास के प्रसाधन हैं वह श्रेष्ठ माना जाता है, किन्तु व्यक्ति को इस रूप में तोलकर हम अप्रत्यक्ष
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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