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________________ महासाल पुत्र अश्ण अर्हतर्षि प्रोक्त तेंतीसवां अध्ययन मानव के पास दो शक्तियां हैं - एक जीभ और दूसरा जीवन । जीभ तो यद्यपि पशु को भी मिली है किन्तु पशुओं की जीभ उनके भावों को स्पष्टतः अभिव्यक करने में असमर्थ है । जवकि मानव को कुदरत की यह देन है कि वह अपने विचारों को वाणी के द्वारा अभिव्यक्त कर सकता है। देखना यह है वाणी का वरदान पाकर मानव उसका उपयोग किस ढंग से करता है। वाणी के द्वारा हम दूसरों के हृदय के घावों को भर सकते है और उसके जीभ के द्वारा दूसरे के दिल में घाव भी कर सकते है। किन्तु यह भूलना न होगा कि जीभ के द्वारा किया गया जस्म तलवार से भी गहरा होता है। महान् विचारक पाइश्वेगोरस ने कहा है- A wound from a tongue is worse than th wound from it aword, for the latter affects only the body, the former the spirits. जिला का घाव तलवार के शव से बुरा होता है, क्योंकि तलवार शरीर पर आधात करती है जब कि जिला आत्मा पर । एक जापानी कहावत भी है 'जीभ केवल तीन इंच लंबी है जब कि वह छ: फूट ऊंचे आदमी को समाप्त कर सकती हैं। किन्तु जिला का गरगोग माननीयता क रता है। एक वैद्य जीभ को देखकर भीतर का हाल बता सकता है। इसी प्रकार जीभ के द्वारा व्यक्ति की भीतरी अच्छाई और बुराई का पता लग सकता है। यह विद्वाम् है या मूर्ख है यह वाणी के द्वारा जाना आ सकता है । मूर्ख के सिर पर सिंग नहीं होते और विद्वान् के हाथों में कमल नहीं खिला करते, किन्तु जब वे मुंह खोलते हैं तभी उनकी कुलीनता का परिचय होता है। वाणी के साथ आचरण आता है । वाणी सुन्दर है और आचरण दृषित है तब भी जीवन में सुन्दरता नहीं आ सकती । संपति का भी प्रभाव होता है। वक्तृत्व कला में भी जादू होता है। सौन्दर्य में भी एक आकर्षण होता है. किन्तु समस्त प्रभाव उसी क्षण समाप्त हो जाते हैं जब कि जीवन का प्रभाव समाप्त हो जाता है। एक विचारक के शब्दों में A beautiful behaviour is better than a beautiful form, it gives a higher ploasure thun statues and pictures, it is the finest of the fine arts. सुन्दर आकृति की अपेक्षा सुन्दर आचरण श्रेष्ठ है । क्योंकि यह मूर्तियों और फोटूओं से भी अधिक आनंद देता है। यह समस्त कलाओं में श्रेष्ठ कला है। जिसने वाणी और वर्तन (आचरण) की कला पाई है वही विद्वान है। प्रस्तुत अध्याय इसी भित्ति पर खड़ा है। दोहिं ठाणेहिं यालं जाणेजा दोहि ठाणेहिं पंडितं जाणेजा । सम्मापओएणं; मिच्छा पोतेणं कम्मुणा भासणेण य । अर्थ:-दो स्थानों से मानब का बाल रूप प्रकट होता है और दो स्थानों से पंडित जाना जाता है । घम्यक् प्रयोग और मिथ्या प्रयोग से; कर्म से और भाषण से । गुजराती भाषान्तर: માણસનું બાલરૂપ બે કારણોથી સાફ સાફ () જણાય છે, અને એ કારણથી પંડિતને ઓળખી શકાય छ. ते ॥ -सभ्य प्रयोग, मिथ्या प्रयोग, र्भ भने मापथी. ज्ञानी और अज्ञानी की पहचान क्या है ? उसके उत्तर में अहर्षि कहते हैं-हर आत्मा में अनंत शक्ति है । उस शक्ति का वह उपयोग किस रूप में करता है उसी आधार से बताया जा सकता है कि यह विद्वान् है या मूर्ख । शक्ति राषण को मिली थी तो शक्ति हनुमान को भी मिली थी। एक ने अपनी शक्ति का उपयोग असदाचार में किया तो दूसरे ने अपनी शक्ति एक महापुरुष की सेवा में समर्पित कर दी । इसीलिये एक ने विश्व से घृणा पाई जबकि दूसरे को दुनिया ने पूजा है।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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