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इसि - मालियाई
एयं किसि फसित्ताणं सव्वसप्तदयावहा । माहणे खत्तिए वेस्से सुने वा वि य सिज्झति ॥ ४ ॥
अर्थ :- प्राणिमात्र पर दया का झरना बहाने वाली इस खेती को करके ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र भी सिद्ध स्थिति को पा सकता है ।
गुजराती भाषान्तर :
હરએક પ્રાણી પર દયાનું ઝરણુ હંમેશા ચાલુ રાખનારી આ ખેતીને કરી ગ્રાહ્નણુ, ક્ષત્રિય, વૈશ્ય અને શુદ્ધ પણુ સિદ્ધપદને પ્રાપ્ત કરી શકે છે.
जिसके मन के कोने में प्राणि मात्र के प्रति दया और प्रेम का झरना फूट पड़ा है। जिसका करुणा निर्झर देश, काल पंथ और संप्रदायों के गड्ढ़ों में कैद नहीं होता, अपि तु मानव मात्र नहीं, प्राणिमात्र के लिये मुक्त रूप में बहता है । वहीं सिद्धि-स्थिति पा सकता है। फिर वह चाहे किसी भी जाति में जन्मा हो, किसी भी पंथ में पला हो जिसने आत्मा के क्षेत्र में करुणा के बीज डाले हैं वह बन्धनातीत है। एक इंगलिश विचारक भी बोलता है - Paradise is open to all kind hearts. दयालु हृदय के व्यक्ति के लिये स्वर्ग के द्वार सदैव खुले दया ही एक ऐसा तत्व है जो मानव
में मानवता की प्राण प्रतिक्ष कर सकता है। उसी पर हमें गर्व होना चाहिये ।
मानव यदि यह अहंकार करे कि मैं श्राकाश में उड़ सकता हूं किन्तु आकाश में उड़ना कोई चमत्कार नहीं है । एक गन्दी मक्खी भी आकाश में उड़ सकती हैं । यदि वह अहंकार करे कि मैं विशाल काय महासागरों को पार कर सकता हूँ यह भी उसका मिथ्या अहंकार है, क्योंकि एक मछली भी पानी में तर सकती है । किन्तु यदि वह बोलता है मेरे दिल में दया का झरना बढ़ रहा है तो सचमुच वह उसके गौरव की वस्तु होगी ।
जिसके दिल में दया है वहीं दिल का अमीर भी है। उसका हृदय सदैव प्रसन्नता से भरा रहता है। एक विचारक बोलता है
A kind heart is a fountain of gladness, making overything in its vicinity freshness into smiles. -1 इर्निंग
दयाल हृदय प्रसन्नता का फौव्वारा है जोकि अपने पास की प्रत्येक वस्तु को मुस्कानों में भरकर ताजा बना देता है । वास्तव में आज हम एक दूसरे के इतने निकट हैं एक दूसरे के प्रति विश्वास और निशा है वह सत्र दया की देन है, क्योंकि क्या वह सुनहरी चेन ( अंजीर ) है जो समाज को संगठित रखती है ।
Kindness is the golden chain by which society is bound together.
वास्तव में जिसके हृदय में दया का झरना बह रहा है स्वर्गीय आनंद उसके हृदय में नृत्य करता है ।
टीका :- एतां कृषि ऋष्ट्वा सर्वसत्वदयाव । बाह्मणः क्षत्रियो वैश्यः शूद्रोऽपि वा सिध्यति । पिंगाध्ययनम् शिस्य द्वितीयपाठ । गतार्थः ।
प्रस्तुत अध्ययन में छब्बीसवें अध्ययन के द्वितीय पाठ के समान है ।
एवं से सिद्धे बुद्धे० ॥ गतार्थः ।
इति पिंगअतर्षिप्रोक्त बत्तीसवां अध्ययन |
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