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तीसवां अध्ययन
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आत्मा की कल्याण मय भावना आत्मा को उसे कल्याण मय बनाती है। और पापशील भावना उसे पापशील । दोनों के मधुर और कटुरूप भी उसके सामने आये बिना नहीं रहते। हिंसा के द्वारा मनुष्य कुछ देर के लिये जय भी पा खेता है किन्तु यह भूलना न होगा कि तलवार के बल पर पाई गई विजय एक दिन पराजय में बदल जाती है। दूसरों की चिता भस्म पर जिन्होने अपने महल चुने हैं किन्तु एक दिन वह राख महल और महल की अट्टालिका में अट्टहास करने वाले सत्ताधीशों की राख बनाकर छोड़ेगी ।
सूणं सुदत्ताणं णिदिशा विय दिणं । अक्कोसचा अकोसं णत्थि कम्मं णिरत्थकं ॥ ५ ॥
अर्थ :- एचानेवाले को एक दिन पकना होगा। दूसरे की निन्दा पर मुस्कुरानेवाले को एक दिन निन्दित होना पड़ेगा | आकोश करनेवालों पर दूसरे आक्रोश किये बिना नहीं रहेंगे, क्योंकि कोई भी कर्म निरर्थक नहीं जाता । गुजराती भाषान्तरः
રાંધનારને પણ પોતે કોઇપણ સમર્ચે (તેના અદલામાં ) પાકવું પડશે, બીજાની મશ્કરી કરવાવાળાનો પણ એક દિવસે પોત નિંદાપાત્ર થવું પડશે, રાડ પાડનાર પર કોઈ એ માણસ રાડ પાડયાવગર રહે નહીં. કેમ કે કોઈપણ अाम निरर्थ (भुं ) अनी तु नथी.
ध्वनि के अनुरूप प्रतिध्वनि होती है। क्योंकि सभी कर्म अपने साथ प्रतिफल लिये रहते हैं। दूसरों की फजिहत पर जिनके मन में गुदगुदी चलती है उसके लिये प्रस्तुत गाथा में कड़ी चेतावनी ची हैं, जिन्हें आज दूसरों की आलोचना में रस आ रहा है कल उनकी आलोचना में दुनिया र लेगी और जो आज बोलते हैं हम ऊंचे हैं, दूसरे नीचे, हम अच्छे हैं, दूसरे बुरे हैं। मन का अहंकार आज उनके मुंह से यह बुलवा रहा है किन्तु कल जब बाहर की सफेद चदरिया उब जाएगी और दुनिया के सामने उनका सही रूप आयेगा उस दिन दुनियां देखेगी कि आचार और क्रिया का दंभ रखनेवाले कितने गहरे पानी में थे ।
आज हम अपने इस मिथ्या विश्वास को अपनी ढाल बनाते हैं कि हमें कोई देख नहीं रहा है । हमारे पर्दे के पीछे की लीला को कोई जानता नहीं है। पर सत्य की प्रखर किरणें एक दिन इस मिथ्या विश्वास के पर्दे को घिरती हुई दुनियाँ के सामने तुम्हें उसी रूप में ला देगी जिसमें कि तुम हो। एक पाश्चात्य विचारक भी बोलता है
Foul deeds will rise, though all the earth overwhelm them to men's eyes. अर्थात् बुरे कार्य अवश्य प्रकट होंगे। मनुष्य की आंखों से उन्हें छिपाने के लिये भले सारी पृथ्वी उन पर इक दी जाए, फिर भी प्रकट हुए बिना नहीं रहेंगे।
भगवान् महावीर के शब्दों में
सुचिमा कम्मा सुचिण्णा फला भवंति । चिणा कम्मादुचिणा फला भवति ।
सुम्दरमा का प्रतिफल सुन्दर होता है और बुरे कर्मों का प्रतिफल सदैव असुन्दर ही रहेगा । मति भद्दा भाइ, मधुरं मधुरंति माण ति ।
कडुयं कडुयं भणिर्य ति फरूस फरूस ति माणति ॥ ६ ॥
अर्थ मन्त्र कार्यों को दुनिया भर मानती है। मधुररूप में स्वीकार करती है। कड़वे को कहना कहा जाता है और कठोर को कठोर कहा जाता है।
गुजराती भाषान्तर :
ભદ્ર (સારાં) કામોને દુનિયા સારાં જ કહેછે, મધુર પદાર્થોને મધુર છે એમ લોકો કબુલ કરે છે, તેમજ કડવી વસ્તુને કડવી અને કઠોરને કઠોર જ માને છે,
समग्र और स्थान बदल देने से कार्य नहीं बदल जाता । सुन्दर वस्तु सर्वत्र सुन्दर रहेगी। सोना महल में सोना रहे और शमसान में पीतल बन जाए तो उसे सोना कौन कहेगा । सोना सर्वत्र सोना रहेगा और पीतल पीतल मंदिर की छाया