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इलि - भालियाई
आत्मा जो भी शुभ या अशुभ का अनुभव करता है यह उसके पूर्वबद्ध कर्मों का ही प्रतिफल है। वर्तमान दुःख का कारण हमें वर्तमान में न दिखाई दे किन्तु इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि उसका कारण है ही नहीं। जिस आम को खा रहेका न बता सकें, किन्तु इतना तो सुनिश्चित है वह आम किसी न किसी द्वारा एक दिन अवश्य बोया गया था और आज वह फल और पतों से समृद्ध हुआ है। यही कार्यकारणपरंपरा हमारे सुख दुःख के सम्बन्ध में भी है।
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टीकाः यथा सत्यं इदं सर्वं । इह यत् क्रियते कर्म तत् परतः परलोके न युज्यते । मूलसिक्तेषु तेषां शाखासु फलं ते । गतार्थः ।
जारिसं कुप्पले बीयं तारिसं भुज्जप फलं । णाणासंठाण संबद्धं णाणासण्णाभिसविणतं ॥ २ ॥ जारिसं किज्जते कम्मं तारिसं भुज्जते फलं । णाणापयोग णिश्वतं तुखं वा जई वा सुहं ॥ ३ ॥
अर्थः- ( खेत में ) जैसा भीज बोया जाता है वैसा ही फल आता है। जोकि नानाविध आकृतियों में होता हैं और नानाविध संज्ञाओं से अभिहित होता है। जैसा कर्म किया जाता है वैसा ही फल भोगा जाता है । नानाविध प्रयोगों से कर्म निर्मित होते हैं। वह कर्म सुखरूप या दुःखरूप होता है ।
गुजराती भाषान्तर:
ખેતરમાં જેવું બીયાણું વાવવામાં આવે છે તેવું જ ફળ મળે છે; જે અનેક પ્રકારોનું હોય છે અને તેઓની અનેક સંજ્ઞાઓ પણ હોય છે, જેવું કર્મ કરવામાં આવે છે. તેવું જ ફેલ ભોગવું પડશે, અનેક પ્રયોગોથી કર્મોનું નિર્માણ થાય છે તે કર્માં સુખદાયી કે દુઃખદાયી થાય છે.
यह निश्रित सिद्धान्त है जैसा बीज होगा वैसा ही प्रतिफल होगा । बाजरी को बोकर कभी चावल की फसल काटी न जा सकी । प्याज खाकर इलाइची की डकार ली नहीं जा सकती । ध्वनि के अनुरूप प्रतिध्वनि अवश्य आयेगी । इंग्लिश विचारक शेक्सपीयर कहता है - What is done cannot be undone किये हुए कर्म को मिटाया नहीं जा सकता । आचार्य विनोबा भी कहते हैं-कर्म वह आइना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है अतः हमें उसका एहसान मानना चाहिये । कर्म हमारे जीवन के निर्माता है, पर कर्म के निर्माता हम हैं । जब तक कर्म नहीं किये जाएं तब तक हम स्वतंत्र हैं, पर एकबार शुभाशुभ अध्यवसाय के द्वारा जो कर्म एकत्रित कर लिये जाते हैं उन्हें भोगना ही होता है। दूसरा एक ओर इंग्लिश विचारक भी कहता है-
Our riches may be taken away by fortune, our reputation by malice, our spirits by calamity, our health by disease, our friends by death; but our actions must follow us beyond the grave.
दुर्भाग्य हमारा चन छीन सकता है। नीचता हमारा जोश, रोग स्वास्थ्य और मृत्यु हमारे मित्र छीन सकती है किन्तु हमारे कर्म तो हमारी मृत्यु के बाद भी पीछा करेंगे, उन्हें कोई छीन नहीं सकता । - कोल्टन ।
कलाणा लभति कल्लाणं पाचं पावा तु पावति ।
हिंसं लभति इतारं जस्ता य पराजयं ॥ ४ ॥
अर्थः- आत्मा कल्याण से कल्याण प्राप्त करता है और पाप श्रील विचारधारा के द्वार वह पाप को ( कटु फल को ) प्राप्त करता है। हिंसक व्यक्ति हिंसा के द्वारा हिंसा को प्राप्त करता है। वह विजय पाकर मी पराजित हो जाता है। गुजराती भाषान्तर :
આત્મા કયાણવડે કલ્યાણુની પ્રાપ્તિ કરે છે, અને પાપસ્વભાવની વિચારપરંપરાથી તે પાપ ( કરનાર તેના ફી) ને મેળવે છે. હિંસા કરનાર માણસ હિંસાના કારણે જ હિંસાનો ભોગ અને છે, ક્દાચ એને વિજય પ્રાપ્ત થાય તો પશુ તે વિજય પણ પરાજયસ્પર્શી જ બને છે.