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________________ इसि-आसियाई अK:-.. दुध इनिस आत्मा चलपूर्वक दुष्पथ में ले जाया जाता है जैसे कि दुर्दान्त घोचे के द्वारा सारथी महापथ में (विकट पथ) में ले जाया जाता है। मुनि की संयमित की हुई इन्द्रियाँ विषय की ओर वैसे ही नहीं जाती जैसे कि शिक्षित अश्व सारथि को सुपथ में ले जाते हैं। गुजराती भाषान्तरः રાંયમરહિત ઈકિ પોતાની શક્તિથી આત્માને ખોટા માર્ગે લઈ જઈ તેફાની (કાબૂમાં ન રહે તેવા). ઘોડાની જેમ ખાડાર્વતારી દે છે. સંયમી મુનિની સંયમિત ઈદ્રિયો કેળવાયેલ ઘોડા મુજબ આડે રસ્તે લઈ भवानी संभव नथी. इन्द्रिय संयम की आवश्यकता बताते हुए ऋषि ने एक सुन्दर रूपक दिया है। जिस साधक की इन्द्रियां संयमित हैं तो वे उसे सदैव शान्ति के पक्ष में ले जाएंगी और यदि साधक इन्द्रियों का गुलाम है तो उस पर शासन करेंगी और साधक को अपने इशारों पर चलने के लिए बाध्य कर देंगी, इसके लिये अश्व का रूप दिया गया है। यदि अश्व अधिक्षित है तो वे साररि को गलत मार्ग पर ले जाएंगे। घोड़े की लगाम आदमी के हाथ में नहीं है तो फिर आदमी की लगाम घोड़े के हाथ में आ जाती है और फिर उसे घोड़ों के इशारों पर चलने को बाध्य होना पकता है। पर कुशल सारथि के शिक्षित घोड़े उसके इशारों पर चलते हैं और वह शीघ्र अपने लक्ष्य पर पहुंच जाता है। साधक को यदि अपने लक्ष्य पर पहुंचना है तो उसे इन्द्रियों के श्वों को शिक्षित और संयमित बनाने का अभ्यास करना होगा। पूर्व मणं जिणित्ताणं चारे विसथगोयरं। • विवेयं गयमारूढो सूरो धा गहितायुधो ॥ १६ ॥ अर्थ:-साधक पहले मन पर विजय पाये, फिर विवेक रूपी गज पर आरूल होकर शव सब पीर की भांति इन्द्रियों को विषय की ओर जाने से रोके । गुजराती भाषान्तर: પહેલા સાધક પોતાના મન ઉપર કાબુ મેળવે અને ત્યાર પછી વિવેકાપી હાથી ઉપર સવાર થઈ જાય અને ત્યાર પછી તે હથીયારોથી સજજ યોદ્ધાની માફક વિષયોતરફ ઘસડાતા ઈદ્રિયોને અટકી શકે છે. इन्द्रियों पर विजय पाने के पूर्व साधक को मन पर विजय पाना होगा, क्योंकि मन ही शक्ति का केन्द्र है। वही इन्द्रियों को प्रेरित करता है, अन्यथा इन्द्रियां तो जड़ हैं । वेग से घूमते हुए पंखे को रोकना है तो पहले बटन बन्द करना होगा, अन्यथा चूमते हुए पंखे को पकड़ने जायेंगे तो अंगुलियां भले कट जावें, पन्ने की गति कम नहीं हो सकती। इन्द्रियों के पंखे को रोकना है तो पहले मन के खीच को दबाना होगा। प्रस्तुत गाथा इन्द्रियों को साधने की दिशा में महत्त्वपूर्ण संकेत दे रही है। इन्द्रियों का मारना नहीं है, उन्हें साधना है और उसका तरीका है पहले मन पर विवेक का अंकुश रखनः । प्राचीन कहानियों में मुना गया है किसी साक्क की अखि किसी रमणी की रूप मधुरिमा में उलझ गई तो उसने अपनी आंख फोर डाली, किसी के हाथों ने अनधिकार के फल ले लिये तो उसने अपने हाथ ही काट डाले। किन्तु यह सब तो वैसा ही हुआ कि कोई लड़का पैंसिल से गन्दे शब्द लिखता है तो पैसिल छीन ली जाए और वह फाउन्टन से गन्दे चित्र खींचता है तो फाउन्टन पेन को तोड़ डाला जाय; पर यह समस्या सही हल नहीं है । फाउन्टन या पैन्सिल तोड़ कर लड़के की आदत को बदला नहीं जा सकता, उसकी वृत्ति को बदलना होगा। उसके मन में उल्कान्ति लाना होगा क्योंकि वे तो बाहिरी उपकरण है, उनका कोई खास महत्व नहीं है। ऐसे ही इन्द्रियाँ भी बाहिरी उपकरण हैं और एक रूप में वे जब हैं। मन ही उनके द्वारा ज्ञान करता है। अतः इन्द्रियों को नहीं मन को जीतना होगा। ___ कैशी गौतम संवाद में महामुनि गौतम शत्रुविजय के लिये सर्व प्रथम एक महान् शत्रु पर विजय पाने का निर्देश करते है-एक को जीत लेने पर पांच [इन्द्रियां] को आप काबू में कर सकते है और पांच के जीत लेने पर दस शत्रु पर विजय पा सकते हैं और दस पर विजय पा लेने के बाद समस्त शत्रुओं पर विजय पा सकते हैं। तं नो हाई जं अचेयणाई जाणंति न घडोव ।। -विशेषावश्यक भाष्य
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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