________________
१७४
इसि-भासियाई
टीका: उच्चावचं गोत्रमधिकृत्य विकल्प भावनायानुप्रेक्षादिना विभावयेत् न हैमका खादेत खादित कामयेत् चक्रवत्यपि । गतार्थः ।
खण-थोव-मुघुतमंसरं, सुविहित पाउणमप्पकालियं ।
तस्सवि विपुले फलागमे, किं पुण जे सिद्धि परक्कमे ॥ २४ ॥ अर्थ:-क्षणस्तोक और मुहूर्त मात्र अल्प समय भावी शुभ क्रिया विपुल फल दे जाती है। फिर जो सिद्धं स्थिति के लिए पुरुषार्थ करते हैं उनकी साधना का तो कहना ही क्या।। गुजराती भाषान्तर:
કોઈ પણ સારું કાર્ય એક ક્ષણ સુધી પણ કરે છે તે સારું કામ ઘણું જ મોટું ફળ જરૂર આપે છે, અને જે સિદ્ધ સ્થિતિ મેળવા માટે જ પ્રયત્ન કરે છે તેનું શું કહેવું ?
शुभ क्रिया यदि एक क्षण के लिए भी जीवन में आती है तो बह फलवती होती है। फिर जिन साधकों का सारा जीबन सिद्ध-स्थिति पाने के लिये है वे तो तथ्यरूप से सिद्धि के निकट पहुंच ही जाते हैं।
टीका:-हे सुविहितपुरुष! भल्पकालकमन्तरं क्षणोकमुहर्तमान प्राप्त तस्य विभावतोऽपि विपुलः फसागमे किं पुनस्तस्य यः सिद्धि प्रति पराक्रमेत् । गतार्थः ।
एवं से सिद्धे बुद्धे ॥ गतार्थः । अद्दबज नाम अष्टाविंशतितमं आईकीयं अध्ययनम् ।
वर्द्धमान अर्हतर्षि प्रोक
उनतीसवां अध्ययन साधन के क्षेत्र में इन्द्रिय-निग्रह महत्व का स्थान रखता है। क्योंकि इन्द्रियों के घोड़े आत्मा के रथ को खींचते हैं। यदि अश्व बेलगाम हुए तो रथ अवश्य पथभ्रष्ट होगा और उसका यात्री क्षतिग्रस्त होगा । अतः कुशल सारथि अश्व की लगाम अपने हाथ में रखता है और सदैव जागरुक रहता है कि अश्व कहीं विषयगामी न बने । पर आत्मा के इस रथ का सारथि मन है। मन जिस और प्रेरणा देगा इन्द्रियो उसी ओर दौड़ जाएंगी अतः अश्व के साथ उसका सारथि मी प्रशिक्षित होना चाहिये । संयमित मन ही इन्द्रियों पर शासन कर सकता है और वहीं कर्म लोत को सुखा भी सकता है। .
किसी तालाब को सुखाना है तो सर्व प्रथम उसके आगमन द्वार को रोक कर जलस्रोत सुखाना होगा। ऐसे ही यदि मन के तालाब को सुखाना है उसे वासना की जलराशि से मुक्त करना है तो पहले वासना के आगमनद्वार को रोकना होगा। जब तक जलराशि के स्रोत को रोक नहीं दिया जाय तब तक उसे मुखाने के समस्त प्रयत समय और श्रम का अपव्यय ही कहे जायेंगे। वे स्रोत क्या है और उनके निरोध के उपाय क्या है यही बताना प्रस्तुत अध्ययन का विषय है।
सर्वति सव्वतो सोता किंण सोतोणिचारण ?।
पुढे मुणी आढने कहं सोतो पिहिजाति ? ॥१॥ अर्थ:-सभी ओर के स्रोत बह रहे हैं, क्या उस स्रोत का निरोध नहीं हो सकता? इस प्रकार पूछे जाने पर मुनि बोले कि किस प्रकार स्रोत को रोका जा सकता है। गुजराती भाषान्तर:
ચારો બાજુના સ્ત્રોતો વહે છે, ત્યારે તે સ્ત્રોતનો અટકાવ કરવો અશક્ય છે કે ? એમ પુછતાંજ તો કેવી રીત અટકાવ થવો સંભવ છે તે મુનિ બોલવા લાગ્યા.
+
१ जहा महातलायरस समिरुले जलागमे ।
उसिलवणाए तवणाए क्रमेण सोसणा भये ॥
-दत्तराध्ययन भ. ३० गाथा ५