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अट्ठाईसवां अध्ययन
१७३ केशर का व्यापारी प्रतिक्षण सावधान रहता है। कार में धूल पड़ती है तो उसका मूल्य कम हो जाता है। मेधावी प्रतिक्षण जीवन के मल का दूर करने के लिए सचेष्ट रहता है। स्वर्ण का मैल उसकी कौति को दूर करता है और स्वर्णकार म्वर्ण की मैल को दूर करता है, इसी लगन के साथ साधक आत्म मल को दूर करे।
अंजणस्स खयं दिस्त, वम्भीयस्स य संचयं ।।
मधुस्स य समाहार, उज्जमो संजमे रो॥२२॥ अर्थ:-अंजन का क्षय वल्नीक का संचय और मधु का समाहार-संग्रह देख कर निचित होता है कि संयम में ही पुरुषार्थ करना चाहिए। गुजराती भाषान्तर:
કાજળ નાશ, ફડાનું નિર્માણ, મધનો સંગ્રહ આ વસ્તુઓને ઉો વિચાર કરીએ તો નિશ્ચિત થાય છે કે સંયમમાટે જ પ્રયત્ન કરવો જોઈએ.
दीपक जल जल करके अपनी आहुति दे कर काजल को तैयार करता है। किन्तु वह काजल आंखों में जाते ही समाप्त हो जाता है । वल्मीक कीड़ा विशेष अत्यन्त मेहनत के साथ अपना घर बनाता है किन्तु उस श्रमसाधना द्वारा बनाया गया घर भी पशु या मानव के एक ही पाद-प्रहार से समाप्त हो जाता है । मधुमक्षिकाएं इधर उधर से मधु बिन्दु लेकर मधु-छन का निर्माण करती हैं। किन्तु क्रूर मधुग्राही धुवां छोडता है और सभी मधु मक्खियां अपनी जान बचा कर बढ़ जाती है। इधर महीनी की श्रमसाधना से एहत्रित मधु को मानव एक घंटे में ही लेकर चला जाता है।
दूसरे के पुरुषार्थ से निर्मित वस्तु का अपहर्ता चोर है। ऐसा करना शोषण में समाविष्ट होता है, क्योंकि वह दूसरे के श्रम का अनुचित लाभ उठाता है। इसी प्रकार से एक किसान वर्ष भर से धूप और वर्षा में खेती करता है, जेठ की धूप में भूमि को साफ करता है, वर्षा की झडियों में खेल की कीचड़ भरी भूमि में वीज चोता है, वर्ष भर तक श्रमसाधना करता है और उसका लेनदार साहूकार एक ही दिन में धान्य राशि को लेकर चल देता है। किसान के नन्हे नन्हे बच्चे आंसू भरी आंखों से देखते ही रह जाते हैं : यह क्या बोरी नहीं है ? ऐस्त करने वाला शोषक है ।
दूसरी दृष्टि से देखा जाय तो सब का पुरुषार्थ निकम्मा गया। क्योंकि उसका परिणाम मलत आया। क्योंकि वह पुरुषार्थ भौतिक के लिए किया गया था । जरध्यात्म-साधना के लिए किया गया पुरुषार्थ कभी निष्फल नहीं जाता है, क्योंकि आध्यात्मिक सद्गों को अपहरण करने की ताकत किसी में नहीं है। अतः अहत ऋषि कहते हैं कि इन रामी परिणामों को देख कर साधक को चाहिए कि वह संयम में पुरुषार्थ करे।
टीका:-अंजनस्य कज्जलस्य क्षयं वल्मीकस्य च संचयं मधुनचाहारं चिरकालीनमहला पुरुषस्य संयमोघमो बरः श्रेयान् भवेत् , नतु कामः । गतार्थः।
उचादीयं यं विकल्पं तु, भावणाए विभावए ।
ण हेमं दंतकट्ठ तु, चमवट्टी चि खादप ॥ २३ ॥ अर्थ:-उच्च आदि के विकल्प केवल भायना पर आधारित है। चक्रवत्ता भी वर्ण दन्तकाष्ट नहीं खाता है। गुजराती भाषान्तरः
ઉચ્ચ નીચ વિગેરે ભેદભાવ કેવળ ભાવના પર જ આધારિત છે, કેમ કે ચક્રવર્તિ પણ સોનાના દાંતણથી મે साई ४२ता नथी,
उच्चता और नीचता सम्पति और विपत्ति की भूमि मानव का मन ही है। बकवी भी अमाज की ही रोटियां खाता है । आज तक इतिहास में कोई भी राजा या चकवर्ती मोती या स्वर्ण की रोटी या भान नहीं खाए हैं । किन्तु यह तो मानव मन की तृष्णा ही है कि जिसके द्वारा रात दिन सम्पत्ति के अर्जन में लगा रहता है और सम्पत्ति दालों को प्रथमश्रेणी का मानव समझता है।
१ दंतकट्ठ-दातीन का एक अर्थ कट या यूष ओषामन या घी में भून कर चावल की कांजी भी किया गया है। उपासक दशा अ० १ उपभोग परिमाण विधि।