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________________ R गुजराती भाषान्तर: કામગ્રહથી છુટા પડેલા ધીર, તેંદ્રિય આત્માઓ ધન્ય છે. એવા શુદ્ધવાદી શુદ્ધ આત્માઓ આ સુંદર દેખાવવાળી મેદિની-પૃથ્વીને પાર કરે છે. इसि - भासियाई वासना की लहरें जिस आत्मा को छू नहीं सकर्ती । यथार्थतः वे आत्माएँ धन्य हैं। वे ही शुद्धात्माएँ इस चमक भरी पृथ्वी को पार कर सकती हैं। सौन्दर्यभरी दुनिया मानव मन का सबसे बडा नागपाश है। जिसमें वासनालिप्त आत्मा के लिए बहुत बडा बन्धन | जो रेशमी तारों से बना है पर छोह शृंखलाओं से भी अधिक दुर्भव है । जिसने वासना की रस्सी को तोड़ कर फेंका है उसके लिए दूसरे बंधन को तोडना कथे श्रागे को तोड़ने के समान है। मिलाइए भगवान महावीर के अन्तिम प्रवचन एए य संगे समइक भित्ता, सदुत्तरा खेव भवंति सेना । जहा महासागरमुत्तरिता, न भवे अवि गंगासमाणा । 1 - उत्तरा० अध्ययन ३२ गाथा १८ । जिसने काम राम पर विजय पा लिया है उसके लिए दूसरे परिषदों पर विजय पाना ऐसा ही है जैसा कि महासागर तैर कर आने वाले के लिए गंगा को पार कर देना । जे गिद्धे कामभोगे, पाबाई कुरुसे नरे । से संसरति संसारं, चाउरंतं महन्भयं ॥ १९ ॥ अर्थ -- जो मानव भोगों में गिद्ध हो कर पाप करते हैं वे मद्दाभयशील चतुरंग संसार में भटकते हैं और परिभ्रमण करते हैं। गुजराती भाषान्तर : જે માનવ ભોગોમાં આસક્ત થઈને પાપ કરે છે તે મહાલય શીલ ચતુરંગ સંસારમાં ભટકે છે અને પરિ ભ્રમણ કરે છે. वासना-सत मानव के लिए संसार का पथ विशाल है। वासना के कीचड में ही पाप के पौधे लगते हैं । जहा निस्साचिणीं नाथं, जाति-अंधो दुरुहिया | इच्छते पारमार्ग, अंतरे चिय सीदति ॥ २० ॥ अर्थ :--- जैसे निखाविणी अर्थात्-छिद्र रहित नौका पर जन्मान्ध बैठता है यदि वह पार पहुंचना चाहता है किन्तु चीन में ही वह कष्ट पाता हैं। गुजराती भाषान्तरः नौका यदि ठीक भी है किन्तु उसका यात्री (कर्णधार) ही मानव शरीर सुन्दर हैं किन्तु यदि उसको स्वामी के पास विवेक का सकता है । साधन सुन्दर है किन्तु यदि उसका उपयोग कर्ता कुशल सुरक्षा साधन की विवेकशीलता पर निर्भर करती है। જેવી રીતે નિસાવિષ્ણુી અર્થાત્ છિદ્રત નૌકા (ભલે હોય) પણ જન્મથી જ આંધળો માણસ તેનો ખલાસી (કર્ણધાર) હોય અને તે પાર પહોંચવા માગતો હોય તો પોતાના અંધત્વને લિધે તે વચમાં જ આફતનો ભોગ થઈ પડે છે. अन्धा है तो उसकी यात्रा विडंबनापूर्ण ही होगी । प्रकाश नहीं है तो वह अपने लक्ष्य पर नहीं पहुंच नहीं है तो साधन की सुन्दरता व्यर्थ है । साधन की अहपण अरहता इसिणा बुझतं काले काले य मेहावी, पंढिए य खणे खणे । कालातो कंत्रणस्सेव, उबरे मालमपणो ॥ २१ ॥ अर्थ :- मेघावी पंडित प्रति- समय और प्रतिक्षण-त्वर्ण की भांति अपना मैल दूर करे। आर्द्रक अर्हतर्षि इस प्रकार बोले । गुजराती भाषान्तर : બુદ્ધિમાન પંડિત હરઘડી અને પ્રતિક્ષણ સોનાની જેમ ( પોતાની શાંતિથી ) મેલ દૂર કરે. આક અર્હત્તષિ આ પ્રમાણે બોલ્યા, T
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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