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________________ ! अट्ठाईसवां अध्ययन असम्भावं पवति, दीणं भाति वीकवं । कामग्गदाभिभूतप्पा, जीवितं पहयंति य ॥ १५ ॥ अर्थ :--जो असद्भाव की प्रवर्तना करते हैं और दीन भाषा बोलते हैं ऐसे कामग्रहों से अभिभूत आत्मा जीवन को नष्ट कर देते हैं। गुजराती भाषान्तर:--- જે અસદ્ભાવની પ્રવતૅના કરે છે, અને દીન ભાષા બોલે છે. એવા કામગ્રહોથી હારેલો આત્મા જીવનને નષ્ટ उरी हे छे. १७१ कामाभिनिविन आश्मा पतन की इस सीमा तक पहुंच जाती है कि वासना के प्रति बाधक बनने वाले के प्रति उसके मन मैं दुर्भावनाएं रहती हैं। और उसका वाणी तेज समाप्त हो जाता है। हर समय दीन वाणी का प्रयोग करता रहता है। किसी के सामने निर्भीक हो कर बोलने का शौर्य वह खो बैठता है। एक दिन वह सिंह की भांति दहाड़ता है किन्तु जब वह किसी वासना के कुचक्र में पक जाता है तो सारे गर्जन और तर्जन भूल जाता है। उसकी राणी इतनी नम्र हो जाती है कि एक सन्त के जीभ से भी इतनी नम्रता नहीं टपकेगी। हिंसापति, कानसी केति माणया । विसं गाणं स विष्णाणं, फेइर्णेति हि संखयं ॥ १६ ॥ अर्थ :- कामप्रेरित आत्मा हिंसा और चोरी का भी आश्रय लेता है। ऐसे व्यक्ति संपत्ति, ज्ञान और विज्ञान सब कुछ खो बैठते हैं। गुजराती भाषान्तर:-- કામથી પ્રેરિત આત્મા હિંસા અને ચોરી પણ કરે છે. આવી વ્યક્તિઓ સંપત્તિ જ્ઞાન અને વિજ્ઞાન બધું मोहा मेसे छे. वारानाप्रेरित मन अपने पथ के माधक को दूर करने के लिए हिंसा को अपनाता है। बहुत-सी ऐसी घटनाएं हुई हैं कि काम के प्रस्ताव को ठुकरा देने पर प्रतिहिंसा की ज्वाला उसके हृदय में भभक उठी और उसने अपने प्रेमी को समाप्त भी कर दिया 1 कामी आत्मा चोरी से भी पीछे नहीं रह सकती है। क्योंकि वासना के क्षेत्र में अधिकार अनधिकार का प्रश्न ही नहीं उठता है। अनधिकार प्रवेश एक प्रकार की चोरी ही है। ऐसा व्यक्ति अपनी सम्पत्ति, ज्ञान और विज्ञान सब कुछ खो बैठता है, इसके लिए रावण को छोड कर दूसरे किसी के उदाहरण की आवश्यकता ही नहीं होगी। वासना की आंधी ने उसके विज्ञान के दीए को तुझा तो सोने की लंका उसकी आंखों के सामने ही रास्त्र की देरी हो गई । सदेवोरगगंध वं, सतिरिक्खं समाणुसं । कामपेजर संबद्धं, किस्सते विधेहं जगे ॥ १७ ॥ अर्थ :-- देव, उरग-सर्प, गंधर्व, पशु-संसार और मानवसृष्टि सभी काम के पंजर में यंत्र कर दुनिया में विविध कष्टों का अनुभव करते । गुजराती भाषान्सर : દેવ, ઉરણ—સર્જ, ગંધર્વ, પશુ–સંસાર, અને માનવસૃષ્ટિ અધા વાસનાના પિંજરામાં બંધાઈને દુનિયામાં વિવિધ કોને અનુભવે છે. बासना की शृंखला में देव, दानव और मानव सभी दलता से बद्ध हैं, पशु संसार भी उससे मुक्त नहीं है। चारों ओर के कष्टों को सहन कर भी मानव वासना का परित्याग करने के लिए तैयार नहीं होता है । कामग्गह विणिमुक्का, धण्णा धीरा जिर्तिदिया । वितरति मेणि रम्मं, सुद्धप्पा सुद्धवादिणो ॥ १८ ॥ अर्थ :- कामग्रह से विनिर्मुक्त घोर जितेन्द्रिय आत्माएँ धन्य हैं ऐसी शुद्ध शदी शुद्ध आत्माएँ इस रम्य लगने वाली मेदिनी-- पृथ्वी को पार कर जाते हैं।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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