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अट्ठाईसवां अध्ययन गुजराती भाषान्तर:
સાંસારિક વિષયોના ઉપગને શોધ જ કુખરૂપ છે, અને કામમાં તે તૃપ્તિ દુર્લભ છે, અને તેના વિયોગમાં તેનાથી પણું અધિક દુઃખ છે. માટે સાચું સુખ તે વિષયભોગની ઇચ્છાના સ્થમાં જ છે.
भोगों की प्राप्ति स्वयं कटप्रद है। जब कि उनके वियोग के क्षण उनसे भी अधिक दुःख प्रदान करते हैं। जिनके सम्मिलन में दुःख है उनका विमोग गी दुखभरा हुआ है फिर उसने तृप्ति तो असंभव है। सृष्य काश्य ही सुख का मार्ग है। मिलाइए भगवान् महावीर की वाणी से "बुक्ख इयं जस्स न होइ मोहो"। उत्तरा० अध्ययन ३२ ।
काममोगाभिभूतप्पा, विच्छिण्णा वि णराहिया।
फीति कित्ति इमं भोचा, दोग्गति यियसा गया ॥१०॥ अर्थ:--काम भोग से अभिभुत सम्राट सम्पूर्ण पृथ्वी को भोग कर विवश हो एक दिन उनसे विच्छिन्न होकर दुर्गति के पथिक बने । गुजराती भाषान्तर:
વાસનાના ભોગથી અભિભૂત બનેલા સમ્રાટ સંપૂર્ણ પૃથ્વીને ભેગા કરીને વિવશ થઈ એક દિવસ તેનાથી વિચ્છિન્ન થઈને દુર્ગતિના પંથે વયા.
बडे बड़े सम्राट जो कि एक दिन कहते थे कि मेरा एक बार हजारों वीरों को पृथ्वी पर सुला सकता है और उन्होंने तलवार के बल पर साम्राज्य कायम किया, दुनियों ने उनका दबदबा माना । किन्तु नलवार के बल पर स्थिर किया गया साम्राज्य तलवार के द्वारा ही विलीन हो गया । इतिहास ने देखा, मुस्कराया और बोला कि तुम तलवार के धनी हो पर ऐसे हजारों तलवार के धनी आए और गए उनकी रेखा भी काय नहीं रही। वही राह तुम्हारे लिए भी है और इतिहास अपगे नवनिर्माण के खागत में जुट गया । जो केवल अपने लिए ही जिमें हैं, अपना ऐशाआराम ही जिनका लक्ष्य रहा है. दुनियाँ बहुत जल्दी उनको भूल गई । परन्तु दूसरों के लिए जीने वाले लाग के पथिका को आज तक नहीं भूल पाहे है।
काममोहितचित्तेणं, विहाराहारकंखिणा।
दुग्गमे भयसंसारे, परीतं केसभागिणा ॥ ११॥ अर्थ-कामामिनिविष्ट अात्मा मोह की मदिरा में आहार विहार का आकांक्षी बनता है । और इस दुर्गम भय प्रद संसार में चारों ओर से फेश का भागी बनता है। गुजराती भाषान्तर:
વિષયોના ઉપભોગમાં આસક્ત બનેલા મામા મોહના નશામાં જ મસ્ત રહેવા ઈચ્છે છે અને તેવો જ આહાર વિહાર તેને ગમે છે, તેથી જ આ દુર્ગમ ભયપ્રદ સંસારમાં ચારો તરફથ્રી કલેશના ભાગીદારીથી ઘેરાયેલો જણાય છે.
सन्त का भोजन शरीर निर्वाह के लिए होता है। जब कि वासना प्रिय व्यक्ति का आहार विहार वासना की अभिवृद्धि के लिए होता है। कामासक्त आत्मा सुन्दर मनोज्ञ वस्तुओं का उपभोग चाइता है। किन्तु उसके ये मनोरम आहार और विहार ही उसके लिए अशान्ति के निमित्त बनते हैं। क्योंकि यदि मन को प्रिय लगने वाला भोजन सीमा से अधिक खा लिया गया तो बही रोग का निमश्रण हो जाएगा।
___ अप्पकत्तावराहोऽयं, जीवाणं भवसागरो।
सेओ जरग्गवाणं वा अवसाणमि दुत्तरो॥ १२ ॥ अर्थ:-प्राणियों का अल्प अपराध म. भव सागर की वृद्धि करता है । वह पाप वृद्ध बल की भांति अन्त में दुरुत्तर होता है। गुजराती भाषान्तर:
પ્રાણુઓનો નવો અપરાધ પણ ભવસાગરની વૃદ્ધિ કરે છે. તે પાપ વૃદ્ધ બળદની જેમ અન્તમાં મુશ્કેલી ભર્યું બને છે.
मानव जब बासना की लहरों में बहा है तब वह न करने वाला काम भी कर डालता है। उसका परिणाम गलत आता है । अईतर्षि वही बतला रहे हैं । जैसे वृद्ध बैल के लिए जीवन की संख्या में यात्रा करना दुष्कर है। छोटी यात्रा भी