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________________ अट्ठाईसवां अध्ययन जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को छोड़ कर निःपृह हो जाना है और ममता तथा अहंकार को छोड देता है वही शान्ति पाता है। करुणा के अजस्र स्रोत महात्मा बुद्ध कहते है कि "जैसे कभी छत में जल भरता है वैसे ही अशानी के मन में कामनाएँ जमा होती हैं। जे लुभंति कामेसु, तिविहं हवति तुच्छ से। अज्झोचवण्णा कामेसु, बहवे जीवा किलिस्संति ॥ ३ ॥ अर्थ:-जो कामों में लुब्ध होता है वह टीन कार से अ1ि , पो ... भागा साग लग होता है। काम में आसक हुए बहुत से प्राणी दुःख प्राप्त करते हैं। गुजराती भाषान्तर: જે વિષય-વાસનામાં લુબ્ધ હોય છે તે ત્રણે પ્રકારથી અર્થ, મન, વચન અને કર્મ દ્વારા સત્વહીન બને છે. કામમાં આસક્ત બનેલા ઘણા પ્રાણીઓ દુઃખ અને આપત્તિઓ ભેગે છે. __ जो साधक वासना के चक में गिर जाता है वह अपना तेज खो बैठता है । मन, वाणी और शरीर तीनों से वह निःसत्व बन जाता है। इक्षुदंड में से जय रस निकल जाता है तो वह निःसत्व कहलाता है। ऐसे ही जब जीवन में से ब्रह्मचर्य का तेज समाप्त हो जाता है तब मानव के जीवन का भी इस समाप्त हो जाता है । जो व्यक्ति अपनी शक्ति को वासना के अधीन कर देता है वह मानो निकृष्ट प्रबन्धक के हाथ में अपनी शासन व्यवस्था सौंप देता है। एक विचारक बोलता है कि: Passion thougli k bud regulator, is 8. powerful spring. काम यद्यपि निकृष्ट शासक है तथापि यह शक्तिशाली स्रोत है। --एमर्सन् । स्वामी विवेकानन्द मी कहते हैं कि कामना सागर की भांति अतृप्त है । इम ज्यों ज्यों उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते जाते है त्यो यो उसका कोलाहल बनता है। टीका:-ये कामेषु लुभ्यन्ति तेषां त्रिविधं जगत् तुरममिव भवति कामेश्वध्युपपना बाहवरे जीवाः क्लियन्ति । काम में आसक्त आत्मा सम्पूर्ण जगत को तुच्छ मानता है । वह अपनी प्रिय वस्तु को पाने के लिए सामाज्य तक को छोड़ देता है। किन्त परिणाम में वासना का गर्त उसे अधिक से अधिक नीचे ही ले जाता है। सलं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा । बहुसाधारणा कामा, कामा संसारवहुणा ॥४॥ अर्थ :--काम शल्य रूप है और काम ही विष रूप है । काम आशीविष सर्प के सदृश भयंकर है । काम बहुत साधारण है और काम संसार के वधक है। गुजराती भाषान्तर :-- કામ શલ્યરૂપ છે અને કામ જ વિષરૂપ છે અને અને કામ કાળા નાગની જેમ ભયંકર છે. કામ બહુ જ સાધારણુ છે અને કુમ સંસારનું વર્ધનકર્તા છે. ___काम का बाहरी रूप तो मोहक है, किन्तु उसके अन्तर में धोर हलाहल विष है । वे मोहक और सुरूप दिखलाई पडने वाले काम एक बिन इतने विद्रूप हो कर सामने आते हैं कि कूरता भी शर्मा जाती है। प्रस्तुत गाथा का पूर्वार्ध और दूसरी गाथा का उत्तरार्ध दोनों ही उत्तराध्ययनसूत्र के नवम अध्ययन की ५३ वी गाथा में आश्चर्य जन रूप से साथ मिलते हैं जब कि राजर्षि नाम देवेन्द्र को उत्तर दे रहे हैं। सहल कामा विसं कामा कामा मासीबिसोचमा । कामे य पश्येमाणा अकामा जति दोग्गई। —उत्सरा. अ. ९ गा. ५३ पत्थति भावी कामेजे जीवा मोहमोहिया। दुग्गमे भयसंसारे, ते धुवै दुश्खभागिणो ॥५॥ अर्थ:- जो मोहमोहित आत्म। भाव से काम की प्रार्थना करते हैं, दे इस दुर्गम भयावह संसार में अवश्य ही दुःख के भागी बनते हैं।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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