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________________ इसि-भासियाई भोगी या विलासी जीवन पामर जीवन है। जिसका कोई मूल्य नहीं है। ऐसा जीवन अयोग्य है । विलासी मनुष्य को सदैव ही अगन्तोष रहता है । जो अन्त में दुःख में परिणत हो जाता है। प्रस्तुत अध्ययन में वासना पर विजय की प्रेरणा की गई है। छिण्णसोते भिसं सन्वे, कामे कुणह सब्बसो। कामा रोगा मणुस्साणं, कामा दुग्गतियणा ॥१॥ अर्थ:-साधक वासना के सभी स्रोतों को रोक दे। क्योंकि मानव के लिए काम रोग के सदृश है और काम दुर्गति के वर्दक है। गुजराती भाषान्तर: સાધક વાસનાના બધા માગોને અટકાવી બંધ કરી દે. કારણકે માનવ માટે કામ-વિષયવાસના રોગસમાન છે, અને તે દુર્ગતિ તરફ ખસેડનાર છે. साधक काम विजेता बने । काम ने जिस व्यक्ति के उपर विजय पाई वह सबसे बडा अभागा है। इंग्लिश विचारक बोलता है कि The Worst of stares in he whom passion rules. साधक साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सर्च प्रथम वासना की रस्सी को तोड दे। क्योंकि दासना ही मानव को पतन के मार्ग में ढकेलती है । वासना विदूषित चित्त आत्म-शान्ति का बहुत बडा माधक है। टीका:-छिमस्रोतसो निरुद्वाश्रवान् भृशं कुरुत सर्वान् कामान् सर्वशः कामा मनुष्याणां रोगा भवन्ति । कामो दुर्गतिवर्धनः। गताः । णासेवेजा मुणी गेहिं, एकंतमणुपस्सतो। कामे कामेमाणा, अकामा जति दोग्गाई ॥२॥ अर्थ:-निर्जन वन का वासी मुनि गृहस्थी का आसेवन न करे । काम की कामना करने वाला आत्मा काम का सेवन म करने पर मी दुर्गति का पथिक बनता है। गुजराती भाषान्तर: નિર્જન જંગલમાં રહેતા મુનિ ગ્રહસ્થીનું આસેવન (ઉપભોગ ન કરે. કામની કામના કરવાવાળો આત્મા કામનું સેવન ન છતાં પણ દુર્ગતિનો પથિક અને છે. साधक जीवन निर्जन वन में महकने वाला पुष्प है । गृहस्थ के संचित दायरे में उसकी मक्त आत्मा अंधती है। तो उसके विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। घर का वातावरपा उसके मन को वासना की ओर मोडेगा । एक बात और भी है कि जिसके मन में वासना की रंगीन तस्वीरें घूम रही हैं पर सामाजिक बन्धन या और दूसरे बन्धन उनको ऐसा करने से रोक रहे हैं। किन्तु यह मानसिक वासना उसको दुर्गति में ढकेलती है। कोरा कायिक संयम संयम नहीं है । बह तो कैरी-जीवन है । ऐसे साधक के लिए 'इतो श्रयस्ततो भ्रष्टः' वाली उक्ति फलितार्थ होती है। "गेही" से यहां गृहस्थ के भोग ही अपेक्षित है । आचारांग सूत्र में भगवान महावीर की तपस्साधना में सागारिय" शब्द माया है "सय गेहि वितिमिस्सेहि इस्थियो तस्थ से परिण्णाय सागारियं न सेवइय से सर्व एसियाझाइ। -माधु.. म. ९ गाथा । भगवान् वैषयिक अभिलाषा की सेवन नहीं करते हैं। यहां गेही शब्द भी उसी अर्थ में आया है। टीका:-ना सवेत मुनिर्गछिमेकान्तमनुपश्यने । अकामाः पुनः कामान् कामयमाना दुर्गतिं यान्ति । गतार्थः । साधक कामनाओं से विरत हो निष्काम बने । गीता कहती है--- विहाय कामान्यः सर्वान् पुमांश्वरति निःस्पृहः । निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति ॥ -कर्मयोगीश्नीकृष्ण (गीता)
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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