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________________ सत्ताईसवां अध्ययन १६५ प्रयोग करता है। लोभी गृहस्थ भी उसका साथ दे कर अपनी स्वार्थ साधना करना चाहता है । किन्तु ऐसा करनेवाला साधक अपने सही आदर्श तक न पहुंच कर बीच में ही रुक जाता है। उसकी सारी क्रिया केवल विषयों की प्रदक्षिणा है । भौतिक विषयों को केन्द्र बना कर वह उसके चारों ओर घूमता है । टीका: यो वा जीवनहेतोरात्मनः पूजनार्थं किंचिदिहलोकसुखमिह लोकस्य मनोज्ञं प्रयुनक्ति प्रकरोत्यर्थिविषयेषु प्रदक्षिणः उभयेषां ताशे करणं श्रमणस्य विपरीतम् । गलार्थः । कुसले संणिसोते पेज्ज्ञेण दोसेण य विव्यमुको । पियमयि सहे अनि य आ ण जहेज धम्मजीवी ॥ ७ ॥ अर्थ :- जो मन्त्र तन्त्र आदि की कुशलता से पूवक हो चुका जिसने भत्र परम्परा के स्रोत का छेदन कर दिया और जो प्रेम और द्वेष से विमुक्त है । वह धर्मजीवी महामुनि अकिंचन बन कर प्रिय और अप्रिय का सहन करे । किन्तु आत्मा के अर्थ - लक्ष्य का परित्याग न करे । गुजराती भाषान्तर : જે મન્ત્ર, તંત્ર આદિની કુશલતાથી જુદો થઇ ચૂકયો, જેણે ભવપરંપરાના પ્રવાહનું છેદન કરી નાખ્યું અને જે રાગદ્વેષથી વિમુક્ત છે, તે ધર્મજીવી મહાનિ અચિન બનીને પ્રિય અને અપ્રિયને સહન કરે પરંતુ આત્માના અર્થલક્ષ્યને છોડે નહીં. सन्त जीवन बिताने वाला साधक वासना और मोह के स्रोत को समाप्त करे। राग और द्वेष से उपरत रहकर विचरे । दुनिया जिसको कुशलता समसती है ऐसे मंत्रादि के प्रयोग साधना के लिए शूल है । अतः साधक उनसे बचे और वह अकिंचन हो कर आगे बढे । जीवन क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए कड़वे मीठे घूंट मिले तो उनको भी सहर्ष पी जाय । निन्दा और प्रशंसा के शूल और फूल में साधक उलझे नहीं। किसी भी प्रसंग पर किसी भी परिस्थिति में भय और प्रलोभन के आंधी-तूफानों में साधक आत्म लक्ष्य को न भूले । टीका :- ध्यपगत कुशलस्तु संहिस्रोतः शोको वा प्रेम्णा द्वेषेण च चिप्रमुक्तः प्रियाप्रियसी मार्कचन वारमार्थे नाजीवी । गतार्थः । एवं से सिद्धे बुद्धे गतार्थः । इति वार तक अर्हतर्षिप्रोक्तं वारत्तय णाम सप्तविंशतितमं अध्ययनं समाप्तम् । आई अप्रि अट्ठाईसवां स्रोत अध्ययन I "कामो विजेता, जगतो विजेता" वासना का विजयी विश्वविजयी है। और वासना का गुलाम विश्व का गुलाम है क्योंकि वासना जीवन की सबसे बडी दुर्बलता है। काम मी एक पुरुषार्थ हैं, किन्तु वह गलत मार्ग दर्शक है। जो राही को हिमालय के बदले ज्वालामुखी पर ले जाता | थक्क कर चूर चूर होने वाला परीने से भीगा हुआ राही ठण्डी हवा के लिए ज्वालामुखी पर चढ कर क्या पाएगा ? ठण्डी हवा के बदले ज्वालामुखी की भीषण लपटें और धू धू करती हुई सर्व स्वाहा ज्वालाएं । एक इंग्लीश विचारक कहता है कि : A life merely of pleasure or chiefly of pleasure is always a poor and worthless life, not worthy the living, always unsatisfactory in its course, always miserable in its end. — थियोडोर पारकर |
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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