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इस - भालियाई
टीकाः यो लक्षणत्वम प्रहेलिका कुतूहलादाख्याति तस्य नरो जमो दानानि प्रयोजयेत् तत् ता करण श्रामण्याम्महदन्तरं भवेत् विपरीतं भवेदित्यर्थः । गतार्थः ।
स्वप्न और लक्षणावि का बताना भौतिक विद्याएं हैं। आत्मा के प्रशस्त पथ के पथिक के लिए अग्राह्य है। ये भौतिक विद्याएं आत्मशान्ति के लिए विनभूत हैं । भगवान् महावीर बोलते हैं कि
ताजोगं कार्ड भूकम्भं च जे पतंजति । सायरस्व इडिक हे अभिभोगभाषणं कुणइ ॥
मंत्र योग करके जो भूतिकर्म का प्रयोग करता है उसके पीछे शारीरिक सुख और ऋद्धिप्राप्ति की कामना है। ऐसा साधक अभियोग भाव करता है ।
जे लवणयसु चा वि, आयाह-विवाहयधूवरेसु य । जुंजेर जुज्झेसु य पत्थिवाणं, सामण्णस्स महदंतरे खु से ॥ ५ ॥
अर्थ :- जो साधक चूडोपनयन आदि संस्कारों में तथा वर वधू के आवाह विवाह प्रसंगों में सम्मिलित होता है। और राजाओं के साथ युद्ध में भी जुड़ता है, किन्तु साधक की इन समस्त क्रियाओं और श्रमण भाव के बीच बहुत बड़ा अन्तर है।
गुजराती भाषान्तर :
જે સાધક ચૂડા, ઉપનયન આદિ સંસ્કારોમાં તથા વરવધૂના આવાહ-વિવાહ પ્રસંગોમાં સમ્મિલિત હૅય છે અને રાજાઓ સાથે યુદ્ધમાં પણ ભાગ લે છે, એવા સાધકની આ બધી ક્રિયાઓ અને શ્રમન્નુભાવની વચ્ચે ઘણું જ અંતર છે.
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साधक पतन ही किस सीमा तक पहुंचता है उसी का चित्र प्रस्तुत गाथा में दिया गया है गृहस्थ के आँगन में चूकोपनयन संस्कार आता है तो अन्ध-भक्ति से प्रेरित गृहस्थ उसमें सम्मिलित होने के लिए मुनि से प्रार्थना करता है और लेह से बंधा साधक वहां पहुँच जाता है तो आवाद-विवाद के प्रसंगों पर वर वधू को आशीर्वाद देने के लिए भी मुनि पहुंच जाते हैं। यदि नेह की धारा किसी राजा की ओर बढ़ रही है तो अपने साथी राजा की सहायता के लिए वह युद्ध में भी पहुंच जाता है। या उनको विजय के प्रसाधन बताते हैं । किन्तु यह सब श्रमण जीव जीवन को बाधा पहुंचाने वाली शक्तियाँ हैं ।
टीका :- चेति चेटको दासो यश्चेकोपनयनेष्ववादविवादेषु षधूवरेषु च पार्थिवानां युद्धेषु चायमानं योजयति तान्युपतिष्ठति । गत 1
विशेष - टीकाकार चेल का अर्थ चैटक- दास के रूप में करते हैं।
जे जीवाण हेतु पूर्वणट्ठा, किंचि लोकसुहं पउंजे ।
अविस पाहिणे से, सामण्णस्स महंतरं खुले ॥ ६ ॥
अर्थ :- जो जीवन के लिए, पूजन के लिए और इस लोक के किंचित् सुख के लिए युक्ति का प्रयोग करता है, अर्थात् अपनी साधना का प्रयोग इन तुच्छ वस्तुओं के लिए करता है वह मानो अर्थी की प्रदक्षिणा करता है । अथवा वह खार्थी पुरुष विषयों की प्रदक्षिणा करता 1
गुजराती भाषान्तर:
જે જીવન માટે, પૂજન માટે આને આ લોકના નજીવી સુખ-પ્રાપ્તિ માટે યુક્તિનો ઉપયોગ કરે છે, અર્થાત્ પોતાની સાધનાનો પ્રયોગ આ તુચ્છ વસ્તુઓ માટે કરે છે, તે શવની પ્રદક્ષિણા કરે છે અથવા તે સ્વાર્થી પુરુષ વિષયાની પ્રદક્ષિણા કરે છે.
साधक के सामने सदैव उच्च आदर्श रहना चाहिए। उसके अनुरूप अपना जीवन निर्माण करे। यदि उसके सामने से यह आदर्श हट जाता है तो उसके सामने अपनी पूजा प्रतिष्ठा और तारका लिंक सुख के छोटे आदर्श आते है और वह उन तक पहुंचने की कोशिश करता है और उनके लिए अपनी आत्मसाधना को एक ओर रख देता है और मन्त्र तत्र आदि का
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