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सत्ताईसवां अध्ययन
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पहुंचेगा । सत्य के प्रखर वक्ता ने उत्तर देते समय मगध के साम्राज्य को बीच में न आने दिया, न उसकी उपासना और भक्ति को ही सत्य के लिए व्यवधान बनने दिया । "यह मेरा भक्त है और मगध का सम्राट है यदि यह रूठ गया तो । " मन की दुर्बलता के ये विचार भगवान् महावीर को सत्य का उद्घोष करने से रोक न सके ।
उन्होंने अपने साधक शिष्यों से कहा, तुम्हारे मीतर सात्विक तेज प्रकट होना चाहिए कि तुम्हारे सामने दर दर भटकने वाला भिक्षुक आये या लक्ष्मीपति आए अथवा सम्राट भी क्यों न आए, सत्य प्रकट करते समय तुम्हारे मन का एक अणु भी काँपना नहीं चाहिए ।" नम सत्य कहने के लिए बहुत बढ़े साहस की अपेक्षा रहती हैं। क्योंकि हर कान इतना मजबूत नहीं रहता जो नम सत्य सुन सके। लेबनान का प्रसिद्ध विचारक खलील जिब्रान कहता है कि एक यार तुमने नम सत्य कहा तो तुम्हारे सभी संगी साथी तुम्हें छोड़ कर चल देंगे । यदि तुमने दुबारा नम सत्य का प्रयोग किया तो तुम देश से निकाल दिये जाओगे। और यदि तुमने तीसरी बार नम सत्य कहा तो तुम फांसी के फंदे पर लटका दिये जाओगे और तुम्हारी जीवन लीला समाप्त हो जाएगी !" ।
जिसमें नम सत्य कहने का साहस नहीं होता है वह चापलूस बन जाता है, उपन्यास सम्राट श्री. प्रेमचन्दजी लिखते हैं कि " चापलूसी जहरीका प्याला है। वह तब तक आप को ऋष्ट नहीं पहुंचाएगी जबतक कि आप अमृत समझकर उसको पी न जाये" एक इंग्लिश विचारक बोलता है कि: Flattery is counterfeit, and like counterfeit mouey, it will eventually get you in to trouble if you try to pass it डेल कारनेगी । चापलूसी एक नकली सिक्का है और नकली सिक्के की भांति यह अन्ततः आप को कष्ट में डाल देगी, यदि आप इसको चलाने का प्रयत्न करेंगे। किसी ने पूछा कि किन जानवरों का काटना अधिक खतरनाक होता है ? इसके उत्तर में विचारक ने कहा कि जंगलियों में निन्दकों का और पालतुओं में चापलूसों का । चापलूसी सरलता और निष्कपटता को रंग मार कर भगा देती है। एक और विचारक कहता है कि: Flavory cits in the padour, chen dealing is picked out of door. जब चापलूसी बैठक में आकर बैठ जाती है तो निष्कपट व्यवहार को ढकेल कर बाहर कर दिया जाता है ।
वास्तव में साधक की यह कामना रहे कि न तो में किसी की सस्ती प्रशंसा करूं और न दूसरों से अपनी सस्ती प्रशंसा सुनूं । साधक के जीवन में जब मुँह मीठी बात करने की वृत्ति आसकेगी तो वह गृहस्थ को सत्य बात न कह सकेगा। और गृहस्थ को भी मुँह देखी बात कहने वाले सन्त प्रिय बनेगे । ऐसे साधक और गृहस्थ दोनों ही पतन के पथ पर हैं।
टीका :- यो भिक्षुः परेण सत्यमागतस्तस्य कर्णसुखं वचनं श्रूयात् सोऽनुप्रियभाषकचाटुकार। खलु मुग्धात्मार्थे हीयते नियमात् । गतार्थः ।
जे लक्खणमिण, पहेलियाउ अक्खाई याद य कुतूहलाओ । तहा दाणाहं णरे पउंज, सामण्णस्स महंतर खु से ॥ ४ ॥
अर्थ :- जो कुतूहल से लक्षण, स्वप्न और प्रहेलिका बोलता है और मनुष्य ( उसके लिये ) दान आदि का प्रयोग करता है, किन्तु यह श्रामण्य भाव से बहुत दूर की वस्तु है ।
गुजराती भाषान्तर :
જે આશ્ચર્યથી લક્ષણ, સ્વર, અને પ્રહેલિકા બોલે છે, જે મનુષ્ય દાનાદિનો પ્રયોગ કરે છે. પરંતુ આ શ્રાઞણ્ય ( साधा ) आनथी बाहूरनी वस्तु छे.
पिली गाथा में कहा गया है कि मंत्री के मोह में गृहस्थ से भिक्षु मुंहदेखी बात कहता है। उसी प्रस्तुत गाथा स्पष्ट करती है। सेह-बद्ध सन्तु आपने ही गृहस्थों को लक्षण विद्या बतलाता है खम के प्रतिफल बताता है। पहेलियां बुझाता है और भी ऐसे ही कौतूहल पूर्ण काम करता है। कार्यसिद्धि के लिए भक्तगण दान का भी प्रयोग करता है। यह दान का प्रवाह मुनि के संकेतों पर बहता है । किन्तु उसका लक्ष्य दान के द्वारा अधिक संपत्ति बटोरना रहता है। और यह प्रपंच वन में रहने वाले मुनि के साधक जीवन से बहुत ही दूर की वस्तु है ।
१- जहा पुण्णरस कत्थद तदा तुच्छरस कथा । जहा तुच्छरस कस्थह, तहा पुण्णस्स कत्थद आचारांग सूत्र.