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"इसिभासियाई" सूत्रपरिचय आता है कहीं च. के लिये य आता है। इसिभासियाई सूत्र के पाठ संशोधन के लिये प्रसिद्ध आगम सेवी विद्वान मुनि श्री पुण्यविजयजी म० के द्वारा पाटन भण्डार की चार प्रतियां प्रास की गई थी। उनमें तीन प्रतियों में परिग्रह शब्द के लिये सर्वत्र परिग्रह ही आया है। यद्यपि प्राकृत व्याकरण के अनुसार परिग्रह के लिये परिम्गह शन्द आता है। पर हम कैसे मानले कि परिग्रह शब्द लिखने में वृद्ध लेखकों की स्खलना हुई है ? यदि प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में ऐसे शब्द मिलते हैं तो फिर क्यों न उन्हें स्वीकार किया जाए? व्याकरण भाषा के पीछे चलता है । वह शासनं नहीं, अनुशासन करता है । महान वैयाकरण पाणिनीजी ने भी समस्स आर्ष रूपों को मान्यता दी है। उसके लिये पृथक् सूत्र बनाये हैं और जो आर्ष रूप से अष्टाध्यायी से सिद्ध नहीं होते उन्हें यार्तिककार वार्तिकों के द्वारा सिद्ध करते हैं।
आगम में आत्मा के 'अप्पा' 'अत्ता' आया' आदि विभिन्न पर्याय मिलते हैं । ये तमाम उच्चारण भेद प्रान्तीय भाषा मेद को लेकर आये हैं। : इसिभासियाई सूत्र में आत्मा के लिये आता शब्द का ही अधिकतर प्रयोग हुआ है । इसमें तश्रुति की प्रधानता है । किस शब्द का उच्चारण. किस भाषा से अधिक साम्य रखता है, इस सबके लिये हमें सूत्रों का गहराई से अध्ययन करना होगा। इसके लिये सर्व प्रथम आगमों की तश्रुति प्रधान पाठों वाली एक प्रति तैयार करनी होगी। उसके लिये भाषाविज्ञान का गहरा अध्ययन अपेक्षित है । भाषा विज्ञान के आधार पर जो प्रतियां तैयार होगी वे भाषाविदों के लिये भी काफी खोजपूर्ण सामग्री प्रदान करेगी। इसिमासियाई सूत्र की रचना पद्धति
- इसिभासियाई सूच के मूल बक्ता अति हैं जो मान मिगत भगवान पापना और भगवान महावीर के शासन में हुए हैं। अतिषियों की संख्या पैंतालिस हैं और उन्हीं के प्रवचन पैंतालीस अध्ययनों के रूप में संकलित है । इन अध्ययनों का संकलन कर्ता कौन है, यह निश्चित कहा नहीं जा सकता, क्योंकि कहीं पर भी संकलन का ने मुंह खोला ही नहीं है।"-
.. प्रस्तुत सूत्र की रचना पद्धति बताती है कि इसका संकलन कर्ता एक अवश्य है । हर अध्ययन के प्रारंभ में अध्ययन में वर्णित विषय का मूल बताती हुई एक पंक्ति आती है। बाद में " अरहता इसिणा बुइत" आता है । अर्हतर्षि का प्रवचन तो इस के बाद शुरू होता है। किन्तु प्रश्न यह है कि इसके पहले की पंक्ति और "इसिणा बुइत" बोलने वाला कौन है। ____ जब हम मूल आगों का.अध्ययन करते हैं तो वहां ज्ञात होता है कि भागमों के तीन प्रवक्ता हैं। भगवान महावीर गणधर देव गौतम स्वामी से कहते हैं। उसके पहले आर्य जम्बु से आचार्य सुधर्मस्वामी कहते हैं। प्रस्तुत द्वादशांगी के मुख्यवक्ता सुधर्मस्वामी हैं। उन्हीं की याचना आज चाल है । आर्य जम्बु सुधर्मस्वामी से प्रश्न करते हैं-"आर्य, आपकी कृपा से मैंने इतने अंग सूत्रों का वर्णन सुन लिया है । प्रस्तुत अंग सूत्र में श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ फरमाया है ?" आर्य जम्बु के प्रश्न के समाधान में आचार्य सूत्र की व्याख्या करते हैं। ___आर्य जम्बु और आचार्य सुधर्म के पहले भी एक वक्ता आते हैं जो आचार्य सुधर्म के नगरी में आगमन का संदेश देते हैं । वर्तमान श्रुतपरम्परा के अनुसार सर्वप्रथम उरक्षेपक ( भूमिका निर्देशक ) आर्य देवार्ड गणि क्षमाश्रमण हैं। वर्तमान आगमों को स्थिर रूप देकर उन्हें संकलित और सम्पादित करनेवाले आर्य देवर्द्धि ही है। अन्य
१. आता खेतं । इसि. अ. ५
आता जाणाह पनवे । इसि. अ.६ अन्तगद सूत्र प्रथम वर्ग भूमिका.