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________________ छब्बीसवां अध्ययन १५५ प्राचीन युग में ग्राह्मण खेती करता था। प्रस्तुत पाठ यह अभिव्य के करता है जनता की पूजा और प्रतिफल पाने वाले ब्राह्मण ने जब अपने आप को उच्च धरासल से नीचे ला पटका हो और जनता की ओर से मिलने वाली पूजा प्रतिष्ठा के स्रोत सूखने लगे, तब विवश कर इसने ऋमिर्ग अपनाया होगा। नई नापने मायण संस्कृति को पुनः उद्बोधन दिया है। खेती करना है तो करुणा और दया की खेती की ओर बटो। यह पानी की खेती है, यदि इसमें श्रद्धा और ज्ञान का अभाव है तो तुम्हारी खेती तुम्हें धान्य का उपहार नहीं देगी। आत्मा की खेती करो और उसमें प्रेम का बीज डालो, दया के जल से सींचो फिर आनन्द की फसल काटो। निम्न माथाओं में इसी दिव्य खेती की प्रेरणा दीगई है। टीका:-दिव्यां स कृषि कृष्णार्प येन तां मुश्चेत् । गतार्थः । आता छत्तं तवो बीयं. संजमो जमणंगलं। झाणं, फालो निसित्तोय, संवरो य बीयं दद ॥ ८॥ अर्थ :-आत्मा क्षेत्र है, तप बीज और संयम रूप हल से युक्त है । ध्यान रूप फलक लेकर संवर रूप मीष शेए । गुजराती भाषान्तर: આત્મા ખેતર છે, તપ બીજ અને સંયમ રૂપ હળથી યુક્ત છે. ધ્યાનરૂપી પાટિયું લઈને તેમાં સંવરરૂપ બીજ વાવવું. आत्मिक खेती का सुन्दर रूपक यहा पर दिया गया है। आत्मा ही क्षेत्र है, उसमें संबर रूप बीज बोना है। उस खेन को साफ करने के लिए संयम रूप हल है। ध्यान फलक है। बीज के विकास के लिए धूप चाहिए। मुनि की तपःसाधना तेज है। जो कि फसल को परिपक्व बनाता है। टीका:-'भारमा क्षेत्र सपो बीज संयमो युगलांगले। ध्यानं च फालो निशितः संयमन र बीज मिति पाटः संदिग्धपाठः पौनरुक्त्याच्छन्दसोऽशुद्धरवाच । आत्मा क्षेत्र है, तप गीज है, संयम युग लागल है, ध्यान फलक है और संयम दृद्ध बीज है। किन्तु यह पाठ अशुद्ध जात होता है । इसके दो कारण हैं । प्रथम तो इसमें बीज की पुनशक्ति है । दूसरा छन्द भी अशुद्ध है। 'तपो बीयं' पाठ टीकाकार तथा प्रोफेसर शुमिंग को मान्य है। इसीलिए इसमें पुनरुक्ति दोष आता है। जब कि अन्य हस्तलिखित प्रतियों में तथा रतलाम से प्रकाशित प्रति में “तपो पीतं" पाठ है। पी: का अर्थ तेज होगा । खेती के लिए धूप भी तो आवश्यक होगा। अतः पीतं पाठ लेने पर द्विक्ति हट जाती है। अकुडतं व कूडे सुं, विणर णियमेण ठिते । तितिक्खा य हलीसा तु, यागुत्तीयपग्गहा ॥९॥ अर्थ:--मायाशीलों में माया रहित होकर रहना और नियमतः जो विनय में स्थित है तितिक्षा जिनके लिए हलीसा है । दया और गुप्ति प्रग्रह अर्थात् रस्सी है। गुजराती भाषान्तर: માયાશીલોમાં માયારહિત થઈને રહેવું અને નિયમથી જે નમ્રતાયુક્ત રહે છે તિતિક્ષા જેમની હલસા છે. દયા અને ગુણિ પ્રહ અથૉત દોરડી છે. आध्यात्मिक खेती का सांग रूपक देते हुए अईतर्षि साधक की स्थिति और उसके प्रसाधन बता रहे हैं । आध्यात्मिक खेती करने की प्रथम शर्त है जीवन में सरलता होनी चाहिए। सरलता आध्यात्मिक कान्ति का प्रथम सोपान है । इदय सरल और स्वच्छ होना चाहिए। जिसके बाणी विचार और बर्ताव में द्वैत ( मेल नहीं) है वह साधना के उच्च शिखर पर पहुँच नहीं सकता है। एक विचारक बोलता है कि:-A. good face is a letter of recommendation, a good heart is a lotter of erodit यदि सुन्दर मुख खिफारिश का प्रमाण है सो सुन्दर हृदय विश्वास पत्र । १ पीतं. २ संजमो.
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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