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इसि - भासियाई
सुनि आहार करता है । उसके लिए आहार का विधान है। सारथी अक्ष के द्वारा नित्र स्थान पर पहुंचना चाहता है। लाक्षाकार और इक्षुकार ( को लहू पीलने वाले ) आग के द्वारा अपना लक्ष्य सिद्ध करना चाहते हैं। इसी प्रकार मुनि भी साधना करना चाहता है। उसके लिए शरीर का सहयोग आवश्यक है। जब तक शरीर स्वस्थ है मुनि साधना में स्थित रहेगा । आहार के द्वारा शरीर समाधिस्थ रहता है। यदि तन की समाधि समाप्त हुई तो मन की समाधि उसके पहले ही समाप्त हो जाएगी । समाधि के अभाव में साधक आर्त ध्यान करेगा | अतः मुनि योग्य कारणों के उस्थित होने पर आहार अवश्य ही करे।
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टीका :- यथा नामीको इपुकारकः तृषेण्यसिकार्य शेषं तदेव केवल मिषु तापविष्यामीति । गतार्थः । अध्ययनस्य यौगन्धरायणअध्ययनमिति युक्ततरं नामं भवेत् ।
अम्बड अध्ययन का यौगन्धरायण अध्ययन नाम योग्य होगा ।
एवं से सिद्धे बुद्धे विरप विपाके० ॥ इति पंचविंशतितमं अंबडाध्ययनम् ।
मातंग अतर्षि प्रोक्त छब्बीसवां अध्ययन
मानव को अशुभ से शुभ की ओर मोड़नेवाली एक वृति है उसका नाम है धर्म
धर्म क्या है, उसका स्वरूप क्या ? क्या अमुक प्रकार के क्रियाकांड का लेना धर्म है ? नहीं, वह धर्म नहीं, धर्म का शरीर है। आत्मा का खभाव ही धर्म है। आचार्य कुन्दकुन्द ने धर्म की परिभाषा दी है- "वत्थु सहाओ धम्मो" । वस्तु का भाव ही धर्म है। यहां पर एक प्रश्न होगा कि चोर का स्वभाव चोरी करना है, तो क्या चोरी करना भी धर्म है ? यह गलत है, क्योंकि चोरी स्वभाव नहीं विभाव है । अन्यथा कोई भी चोर चोरी करके भागता नहीं ।
आत्मा अपने स्वभाव में आए, अपने सहज गुणों को विकसित करे वही धर्म है। धर्म आत्मा में रहता है; मन्दिर मस्जिद और उपाथ्र्यों की दीवारों में नहीं । धर्म का असली मन्दिर हृदय है । यदि वह हृदय में स्थित है तो साधनाओं द्वारा उसका चिकास होगा और साधनाओं में उसका प्रकाश होगा तथा जीवन की प्रत्येक क्रिया उससे आलोकित रहेगी । आचार और व्यवहार शुद्ध बनेगे । मिना विचार शुद्धि का धर्म भी अधूरा रहेगा। एक विचारक ने कहा है कि:
A religion without reality is tree without root, and a reality without religion is root without tree
शेक्सपीयर
नीति बिना धर्म का बिना जय का वृक्ष है और धर्म बिना की नीति वृक्ष बिना की जब है। दोनों ही अधूरे हैं। धर्म के साथ जीवन का संबन्ध स्थापित करना ही प्रस्तुत अध्ययन का विषय है ।
कतरे धम्मे पण्णत्ते, सव्वा महाउसो ! सुणेह मे ।
किणा भणवण्णाभा, युद्धं सिक्खति माहणा ॥ १ ॥
अर्थ :- उस महामुनि ने कितने प्रकार के धर्म बतलाए हैं ? हे आयुष्मानो। तुम लोग मुझसे सुनो। ब्राह्मण वाले माह श्रावक क्यौं युद्ध सीखते हैं ? ।
गुजराती भाषान्तर:
એ મહાન મુનિએ કેટલા પ્રકારના ધર્મ બતાવ્યા છે ? હે આયુષ્યમાન 1 તમે મને સાંભળો, બ્રાહ્મણુ વર્ણવાળા शाभे छ ? માણુ શ્રાવક શા માટે
युद्ध