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________________ - - - . 4 पचीसो अध्ययन જો કે ઉચિત નમ્રતાપૂર્ણ વ્યવહારથી કુશળ છે. સુન્દર, મધુર અને રિમિત અર્થાત્ સ્વરના માધુર્યથી યુક્ત સંભાષણ કરવાવાળા, મુદા સ્તન અને જાંગથી સુશોભિત ને અનુપમ રૂપથી શોભા પામેલ અમુક સમય જોઈને હાસ્ય અને સંભાષણ કાર્ય કરવાવાળી એવી સ્ત્રીઓને પણ જોઈને તેઓના મનન એક ખૂણામાં જરા પણ વાસના ઉત્પન્ન थती नथी. जो साधक काम विजेता है उसका आहार-विहार नियमित होता है । वह आहार लेता है, क्योंकि शरीर को टिकाए रखना है। पर बह आहार मी तमी लेता है जब वह उसके नियमों के अनुकूल हो । उसके लिए बनाया गया भोजन वह रहण नहीं करता है भजन गालिबासस्या हो वह भी अमि और धूम रहित हो। ऐसा निर्दोष आहार शव्या और स्थान तथा वनादि के ग्राहक साधक मधुरभाषिणी और सौन्दर्यशालिनी नारियों के नेत्र कटाक्ष से घायल नहीं होते हैं।। नध कोटि परिशुद्ध-मन, वाणी और कर्म से अशुद्ध आहार का न प्रहण करना न करवाना और न अनुमोदन करना यह नव कोटि परिशुद्ध कहलाता है। टीका:-हे भावसम्बट! ते सुत्रमार्गानुसारिणः क्षीणकषाया दान्तेन्द्रियाः शरीरसंधारणार्थ योगसंधानाय नवकोरिपरिशुद्धत्यादि प्रसिद्धलक्षण पिंड सादी मिक्षां शर्म चोपधि च गवेषमाणाः साधवः संगत-गत-हसिस-भणितैः सुन्दरस्तनजवनैश्च प्रतिरूपा रूपवत्यः खियो दृष्ट्वा न तेषां मनसापि प्रादुर्भाव गच्छन्ति मैथुनार्था प्रामधर्माः । गताथैः । एतावदेव ऋषिभाषितमित्यंबटस्य संबोधितावादनुमेयम् । शेषाणां ऋषिभाषितानां वाग्वृत्ति स्त्रनुसृत्य हारितेत्यादि कधुवास्य यौगन्धरायणभाषितमिति। अम्बई के संबोधन से ऐसा अनुमान होता है कि इतना ही ऋषिभाषित है। शेष ऋषिभाषित की वाग्वृत्ति का अनुसरण करने पर शात होता है कि हारित आदि लघुवाक्य योगन्धरायण द्वारा कह गये हैं। से कथमेत ? विगतरागता सरागस बियणं अधिक्ख हतमोहस्स, तत्थ तत्थ इतराइतरेसु फुलेसु परकडं जाव पडिरूयाओ पासिचा णो माणसा वि पादुभावो भवति, त कहमिति ? । मूलयाते हतो रुक्खो, पुप्फत्रासे इतं फलं। छिण्णाए मुजूसूईए, कतो तालस्स रोहणं ? ॥१॥ अर्थ:-यह वीतरागता कैसे हुई? क्योंकि बहुत से सराग आत्मा ऐसे भी होते है जिन्होंने मोद को पराजित कर दिया है, मोह को उपशान्त कर दिया है। वे यहाँ वहां अन्यान्य कुलों से परकृत आहार आदि का उपभोग करते हैं। और रूपचती सुन्दर नारियों को देख कर भी जिनके मन में पाप का उद्धव नहीं होता है। प्रश्न:-हे भगवन् ! ऐसा क्यों होता है। उसर:-जैसे जड़ नष्ट कर देने पर वृक्ष नष्ट हो जाता है और फुल के समाप्त कर देने पर फल स्वयं नष्ट हो जाते हैं। यदि ताब के मूर्द्धन्य भाग को सूई से छेद दिया जाय फिर उसकी वृद्धि कमी संभवित है? जिसने वासना की जड़ को नष्ट कर दिया है उसके मन में बासना के अंकुर फूट नहीं सकते हैं। गुजराती भाषान्तर: આ વીતરાગતા વિષયોગ માટે તિરસ્કાર કેવી રીતે થઈ? કારણકે ઘણા વિષયાસક્ત જીવ એવા પણ &ય છે કે જેઓએ મહને પરાજીત કરી દીધું છે કે મોહનું શમન કરી દીધું છે. તેઓ અહીયાં ત્યાં અન્યાન્ય કલોથી બીજાઓએ કરેલા આહારદિકનો સ્વીકાર કરે છે. અને રૂપવતી સુંદરીઓને જોઈ જેના મનમાં ખરાબ ખ્યાલ આવતો જ નથી. *:-भगवन् ! शामारे थाय छे ? ઉત્તર –જેવી રીતે મૂળ કાપી નાખતાં વૃક્ષ નષ્ટ થઈ જાય છે અને ફૂલને ચડાવી દેતાં ફળ પોતે નાશ પામે છે. બે તાડના ઉપરના ભાગને સોઈથી છેદી દેવામાં આવે તો પછી તેની વૃદ્ધિ કેવી રીતે થઈ શકે? જેણે વાસનાને જડમૂળથી ના કરી છે તેના મનમાં વાસનાના અંકૂર ફૂટ શક્તા નથી,
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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