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________________ पीसवां अध्ययन २४३ गर्भ में पुनरागमन के कारण मानव की हिंसात्मक प्रवृत्ति है। पाप वृत्तियों के द्वारा जिनका मन पराजित रहता है, अथवा जो वासना के प्रवाह में वह जाते हैं तथा अपने ऊपर अंकुश नहीं रख सकते हैं। इन्द्रियां अपने विषय की ओर दौड़ती हैं। उनकी दौड़ पर विवेक का ठोकुश न रहा तो वे स्वच्छंद हो जाएगी। अंकुश का अर्थ यह नहीं है कि उनको बलपूर्वक दबाए रखना । वासना को दबाने का अर्थ यह हुआ कि बाहरी वातावरण या सामाजिक भय मन की वासना को बाहर नहीं आने देते हैं, किन्तु वह भीतर ही भीतर दबी रहती है और यह दबाब कभी कभी अनुचित परिणाम ला देता है। वासना का प्रवाह कभी कभी बांध तोड देता है और उसमें साधक तथा उसकी साधना डूबती उतराती सी जान पडती है। किन्तु तथ्य यह है कि वासना की बाड नई नहीं । पहले वह दमी हुई थी और अब वह खुले रूप में आगई है और दबाव ने उसके वेग को विद्रोह करने के लिए प्रेरित कर दिया है। अतः दमन का अर्थ दबाना नहीं, विवेक पूर्वक वासना की जल राशि क्षय करना है। आगम की भाषा में पहला तरीका उपशमन का है। जो साधक वासना को दवाता गया और ग्यारहवाँ गुण श्रेणी तक पहुंच गया, किन्तु वहां पहुंचने के बाद दबी हुई वासना विद्रोह कर उठती है और संयम का बांध ढह जाता है, इसीलिए कहा जाता है कि इतना बड़ा सावक भी पतन की गहरी खाई में पहुंच गया। उसके बोध के सीमेन्ट और कॉकोट के बांध के प्लास्टर के नीचे कोरी माटी श्री । अतः टकर लगते ही बांध ढह गया। दूसरा तरीका है क्षय का वासना का संपूर्ण क्षय करके साधक मुक्त होता हैं किन्तु जो उसे क्षय न करके उसके प्रवाद में वह जाता है वह अपनी वासना के पोषण के लिए प्राणियों की हिंसा भी करता है। टीका :-तत्रो योगन्धरायणो अंबटं परिवाजकमेवमवादीद् यथा हारिताः पुरुषा एभिरेभिश्च वाषदादानैः कर्मोंपादानैः । ये खलु हारिताः पापैः कर्मभिरचिताभितितन्त्यन्यानपि प्राणिनो अतिपालयन्ति । गतार्थः । जानू ! अण्णे व पाणे अतिवातावेंते या सतिजंति समगुजाणंति, ते सयमेव भुसते भासति सतिछंति समगुज्जाणंति अविरता उप्पडिता पश्चक्खातपावकम्मा मणुजा अदत्तं आदियंति... सातिअंति समणुजाणंति सयमेव अभपरिग्गहं गिण्हंति मीसयं भणियव्वं जाव समणुजाणंति । अर्थ : :- जो दूसरे प्राणियों का वध करते हैं उसके लिये प्रेरणा देते हैं। उसका अनुमोदन करते हैं। वे यंभूषावाद बोलते हैं। दूसरे को उसके लिए प्रेरित करते हैं जो अविरत हैं साथ ही पाप परिणति को रोकने के लिए प्रयाख्यान नहीं करते हैं अदत्तादान का भी सेवन करते हैं। दूसरों को उसके लिये प्रेरणा देते हैं और उसका अनुमोदन भी करते हैं। इसी प्रकार स्वयं परिग्रह और अब्रह्मचर्य का ग्रहण करते हैं। इस प्रकार मैथुन और परिग्रह का मिश्रित वक्तव्य । यावत् वे उसकी प्रेरण भी देते हैं। गुजराती भाषान्तरः અને જે બીજા પ્રાણીઓનો વધ કરે છે અગર તે ફામમાટે પ્રેરણા આપે છે. અગર તેનું અનુમોદન કરે છે, તે સ્વયં મૃષાવાદ બોલે છે. બીજાને તે કામ માટે પ્રેરિત કરે છે, જે અવિરત છે. સાથે સાથે પાપના પરિણામને રોકવા માટે મનાઇ કરતા નથી, અદત્તાદાન જે આપ્યું નથી તેનો સ્વીકાર કરવો તેને પણ સેવે છે. સ્ત્રીઓને તે કામ કરવા સારું પ્રવૃત્ત કરે છે અને એનું અનુમોદન પણ કરે છે. એજ પ્રમાણે પોતે પરિગ્રહ અને અબ્રહ્મચર્ય સાંસારિક ભોગનું સેવન કરે છે. એ પ્રમાણે મૈથુન અને પરિગ્રહનું મિશ્રિત વક્તવ્ય છે. જ્યાં સુધી તેઓ તેની પ્રેરણા પણ આપે છે. टीका :- अन्यानपि जनान् प्राणिनोऽतिपातयत्यतोऽनुमोदयन्ति समनुजानंति एवमेव मृपा भाषन्त इत्यादि कारणग्रिकम् | अविरतामतिताऽप्रत्याख्यातपापकर्मणो मनुजा इत्येतरक्षणात् पठितव्यस्वा दिद्दापास्यम् । ने स्वयमेवादसमाददते अपरिग्रही गृहन्तीत्यालापकः पूर्ववत् । गतार्थः । विशेष :--- अब्रह्मचर्य और परिग्रह का संयुक्त निर्देश भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का ध्वनित कर रहा है। गर्भवास के दूसरे हेतु हैं मृषावाद, अशुभ से अविरति । साथ ही जिसने प्रत्याख्यान के द्वारा अपनी वृति को अशुभ की ओर जाने से रोका नहीं है और जो चौर्यकर्म में प्रवृत होता है, वासना और परिग्रह में लिप्त होता है और इसके लिए दूसरे को भी प्रवृत्त करता है वह भव-परम्परा की वृद्धि करता है।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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