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इसि-भासियाई टीका :-चित्रानामा प्रकारा विविधोइया च देहिनां संसारसंततिसर्वदमालया बनानीव भवन्ति सर्वपुष्पफलोदया । गतार्थः।
पावं परस्स कुवंतो, हसप मोह-मोहिओ।
मच्छ गलं गसंतो वा, विणिग्धायं न पस्सई ॥ २७ ॥ अर्थ:-मोह मोहित आत्मा दूसरों के लिए पाप करके हंसता है। मच्छ आटे की गोली को निगलना है, परन्तु उसके पीछे छिये विनिघात (पास) को यह नहीं है। गुजराती भाषान्तर:
લોભથી હિત થએલો જીવ પોતાના લાભ માટે બીજાનું નુકસાન કરીને હસે છે, જેમ સાક્ષી લેટની ગળીને ગળે છે પરંતુ તેની પાછળ છૂપાયેલા વિનિઘાતક (પ્રાણઘાતક કાંટા)ને તે જોતી નથી.
मोहित व्यक्ति दूसरों के लिए पाप के प्रसाधनों का निर्माण करता है। परिवार के संकुचित प्रेम के लिए दूसरे के हरेभरे जीवन को उजाड़ देता है। दूसरे के मुंह का कयल छीन कर इंसता है। अपने नन्हे मुन को हंसते देखने के लिए दूसरे के नन्हे मुन्ने को मलाता है। किन्तु यह मच्छ की मूढता है जो आटे की गोली को ही देखता है, पर उसके पीछे छिपे हुए कांटे को नहीं देखता है। स्थुल द्रष्टा केबल वर्तमान के ही मुखों को देखता है । पर उसके पीछे छिपे हुए कांटे को नहीं देखता।
परोषनायतलिच्छो, दप्प-मोह-चलुगुरो।
सीहो जरो दुपाणे धा, गुणदीसं न विदई ॥ २८ ॥ अर्थ:-दूसरे के विनिधात में तन्मय होने वाला व्यक्ति दर्प, मोह और बल का प्रयोग करता है। वृद्ध सिंह दुष्प्राण दुर्घल जीनों की हिंसा करता है । उसी प्रकार खार्थी मनुष्य बृद्ध सिंह की भांति दुर्थल प्राणिओं का शिकार करता है। गुजराती भाषान्तर:
બીજાના વિનિઘાતમાં તન્મય થયેલ આમા દઉં, મેહ અને બળના પ્રયોગ કરે છે. જેમ વૃદ્ધ સિંહ દુપ્રાણુ દુબળા જીવોની હિંસા કરે છે, તે જ પ્રમાણે સ્વાર્થી મનુષ્ય વૃદ્ધ સિંહની જેમ દુળ પ્રાણીઓના શિકાર કરે છે.
अहंकारी मानव अपने वल का उपयोग दुर्यलों की रक्षा में नहीं, अपितु शक्तिहीनों को कुचलने में करता है और उसे देख उसका अहंकार हंसता है । आसुरी तत्व का सिद्धान्त है Might is right शक्ति ही सत्य है। सभी क्षेत्रों में यही हो रहा है। शक्तिशाली राष्ट्र निबल राष्ट्रों को दबोचना है। उनके शक्तिस्रोतों को अपने हाथ में लेकर उनके साथ मनमाना खिलवाड़ करता है । उसकी अपनी राष्ट्रीय संपत्ति पर ही उन (छोटे राष्ट्रों)का अधिकार नहीं रह गया है। यह उपनिवेश वाद है। एक दबता रहे, कुंचलता रहे और दूसरा उसे कुचलता रहे । यद्द मानवता का सिद्धान्त नहीं है। प्रत्येक मानव को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है। अपनी शक्ति के सही विकास का सवको सुअवसर प्राप्त होना चाहिए। भूट के नीचे दूसरे के प्राणों को दबोचे रहना दानवता का नियम है।
सयल ने सदैव ही निर्बल को दबोचा है, पर उन्हें कुचल कर आप दानव वन जाते हैं । तो निर्बलों की रक्षा में अपनी शक्ति समर्पित कर आप देव बन जाते हैं। परन्तु मानव मानवता के सिद्धान्त को भूल चुका है । अर्हतर्षि सिंह के उदाहरण द्वारा उसे पुष्ट करते हैं । अईनर्षि वृद्ध सिंह द्वारा दुष्प्राण दुर्थल प्राणी की हिंसा का संकेत करते हैं । ऐसी ही मेड और मेखिये की कहानी भी प्रसिद्ध है।
नी के ढलाव की और एक भेड का बच्चा पानी पी रहा था । उपर की ओर मेडिया पानी पीने आया। मेड के बच्चे को देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया । परन्तु सोचा कि बिना अभियोग के किसी को भार देना इस बीसवीं सदी की सभ्यता के प्रतिकूल होगा। उसने अभियोग के स्वर में कहा "क्यों जी : क्या तुम को पता नहीं है कि मैं पानी पी रहा हूं। तुम मेरा पानी जूला कर रहे हो।" "चवा : जूठा पानी तो मैं पी रहा हूं, क्योंकि मैं तुलाव की ओर हूं!"। भेड ने नम्रता से जबाब दिया 1