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इसि-भासियाई हो सकता है । एक कार्य बाहर से शुभ दिखाई पडता हो, परन्तु यदि उसका उद्देश्य बुरा है तो सारा कार्य ही बुरा होगा। दूसरी ओर एक कार्य बाहर से देखने में तो अशुभ लगता है, किन्तु उसका हेतु शुभ है तो वह कार्य शुभ होगा।
फल की मधुरता और करता उसके कन्द पर आधारित है। कन्द यदि मधर है तो लता भी सुन्दर होगी और उसके फल भी रसप्रद होंगे। यदि कन्द ही बुरा है, तो लता फल विहीन होगी या कटु फल से युक्त होगी।
छिण्णादाणं सयं कम्म, भुजाए तं न बजए।
छिन्नमूलं व वल्लीणं, पुथ्थुप्पणं फलाफलं ॥ २२ ॥ अर्थ:-संकृत कम के आदाम अर्थात् द्वार को छेदन करके प्राप्त कर्मों को भोगे। प्राप्त का त्याग शक्य नहीं है, लता का मूल नष्ट कर दिया है, कि पूर्व के उत्पन्न हुए फलाफल का उपभोग तो करना ही होगा। गुजराती भाषान्तर:
પોતે કરેલા કામોનું આદાન અર્થાત ગ્રહણનો જ રસ્તે નષ્ટ કરીને પ્રાપ્ત કમને ભોગવે. કેમકે પ્રાણને છોડવું શકય નથી. વેલના મૂળને નાશ કર્યો છે, પરંતુ પૂર્વના ઉત્પન્ન થયેલા ફળાફળનો ઉપભોગ તો કરવો જ જોઈએ.
साधक कर्माश्रव का द्वार बन्द करे और जो उदयावलि का प्राप्त कर्म हैं उनको भोग कर क्षय करे । क्योंकि आश्रष द्वार का चिरोध हो जाने से भविष्यकालीन कर्म-परम्परा समान हो सकती है, किन्तु पूर्वपद्ध को तो भोगना ही होगा। लता का मूल काट देने से उसमें नए फल नहीं आसकते हैं, किन्तु पूर्वोत्पन्न शुभाशुभ फलों का उपभोग करना ही होगा ।
टीका:-स्वयमात्मप्रयलेन रिसदानमप्युपादाने छि यस्य तत्कर्म भुज्यते न तद् वज्यंते अवश्यं वेदनीयं भवति यथा वल्लीना फलाफलमिति पूर्षवत् पूर्वोत्पछिसमुलमपि भुग्यते। गतार्थः ।।
छिन्नमूला जहा चल्ली, सुकमूलो जहा दुमो ।
नमोहं तहा कम्म, सिण्णं वा हयणायकं ॥ २३ ॥ अर्थ:-जिसकी जड छिन्न हो चुकी है ऐसी लता और जिसका मूल सूख गया है ऐसा वृक्ष दोनो ही नष्ट होने वाले हैं। इसी प्रकार मोह के नष्ट होने से आठों कर्म नष्ट हो जाते हैं। जैसे सेनापति के हटते ही सारी सेना के पैर उखड़ जाते हैं। गुजराती भाषान्तर :
જેનું મૂળ કપાઈ ગયું છે એવી લતા અને જેનું મૂળ સૂકાઈ ગયું છે એવું ઝાડ બંનેનો નાશ નિશ્ચિત જ છે. જેવી રીતે સેનાપતિની પીછેહઠથી સારી સેના લડાઈનું મેદાન છોડી નાસી જાય છે, તેજ પ્રમાણે મોહ નાશ પામતાં આઠે આઠ કર્મ નાશ પામે છે,
जबतक मोह कर्म की २८ प्रकृतियो समाप्त नहीं होती हैं तम तक एक भी कर्म आत्मा से पृथक नहीं हो सकता है। जिस प्रकार से सेनापति के हटते ही सेना मैदान को छोड़ कर भाग जाती है उसी प्रकार मोह के हटते ही समस्त कर्म समाप्त हो जाते हैं। क्योंकि कर्म बन्ध का मूल हेतु राग चेतना और द्वेष चेतना है। और ये चेतना ही अन्य कर्मों के बन्धन में हेतुभूत बनती हैं। अतः कर्म-परम्परा की समाप्ति के लिए मोह की जड पर ही प्रहार करना होगा। पहले दर्शन -मोह और बाद में चारित्र-मोह क्षय होगा । इनके क्षय हो चुकने पर शेष तीन घनघाती कर्मों को क्षय करने में अन्त मुहर्त से अधिक समय की आवश्यकता भी नहीं रहेगी।
अप्पारोही जहा बीयं, धूमहीणो जहाऽनलो।
छिन्नमूलं तहा कम्मं, नट्ठसण्णोवरेसओ ।। २४ ॥ अर्थ:-विनष्ट गीज और धूमहीन अनि जिस प्रकार शीघ्र समाप्त हो जाते हैं, इसी प्रकार मूल के नष्ट होते ही कर्म भी विनष्ट हो जाते हैं। जैसे नष्ट संज्ञा वाला उपदेशक समाप्त हो जाता है। गुजराती भाषान्तर:
નાશ પામેલું બીજ અને ધુંવાડાવગરને અગ્નિ જેવી રીતે તુરંત નાશ પામે છે. અને જેવી રીતે નષ્ટ સંજ્ઞાવાળો (એટલે આગમનું જ્ઞાન ભૂલી ગયેલ) ઉપદેશક પિતાના ફામમાં અસમર્થ બની જાય છે તે જ પ્રમાણે મૂળ નાશ પામતાં જ કર્મો નાશ પામે છે.