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चौबीसवां अध्ययन
गुजराती भाषान्तर :--
પ્રાણી ક્યાંય પણ જાય અનિત્યતા પડછાયાની માફક બધે ઠેકાણે તેના સાથે જ ફરે છે. પડછાયો તો જુદો જોઈ શકાય છે. પરંતુ આ અનિત્યતા તો કયારે દેખાતી પણ નથી.
મચ્છુ
मानव जब सुख के क्षणों में रहता है तब वह समझ बैठता है कि में अमर हूं। जब कोई मकान खरीदता है तब वह रजिस्ट्री में लिखवाता है कि जब तक चन्द्र और सूर्य है तब तक इस मकान पर मेरा अधिकार रहेगा। पर ओ भोले इन्सान ! जब तक चन्द्र और सूर्य रहेंगे तब तक तूं रहेगा या नहीं ? ।
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झूठी अमरता के स्वभ उसे हजार हजार पाप करने के लिए प्रेरित करते 1 दस पीढी आराम से रहे इतनी विशाल सम्पत्ति होने पर भी मानव का लोभी मन ग्यारहवीं पीढी के लिए चिन्तित रहता है ।
अतर्षि बार बार अनित्यता का प्रतिपादन करते हैं। उसका तात्पर्य यह नहीं है कि संसार में नित्यता पदार्थ ही नहीं हैं । जैन दर्शन अनेकान्त वादी दर्शन है। उसकी एक आंख पदार्थ की अस्थिरता पर रहती है तो दूसरी आंख उसकी स्थिरता पर जमी रहती है। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर पदार्थ की नित्यानिलता का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि:
उपपतिषियंतिय भावा पियमेण पजवण्यस्स ।
दवट्टियस्स सच्च सया अणुष्पसमणि ॥ - सम्मति प्रकरण अध्याय १ गाथा ११ ।
पर्यायास्तिक की दृष्टि से प्रलेक पदार्थ उत्पन्न भी होता है और नष्ट भी होता है। द्रव्यास्तिक नथ की दृष्टि से पदार्थ अनुत्पस और अविनष्ट है। दूसरे शब्दों में वह भुव है। अतः प्रत्येक पदार्थ नित्यानित्यात्मक है। फिर भी यहां पर अर्हतर्षि बार बार जो अनित्यता को ही सामने ला रहे हैं उसका कारण यह है कि अनित्यता मानव के मस्तिष्क में रही तो वह बुराई से बचेगा। वह उन नाजुक क्षणों में भी बुराई से बचेगा, जब कि सम्पत्ति की चमक उसको अपनी ओर खींच रही होगी । वह सोचेगा कि छोटी सी जिन्दगी के लिए पाप की इतनी बढी गठरी क्योंकर बांधी जाय ? |
कम्मभावेऽणुवती, दीसंति य तथा तथा ।
देहिणं पकति चेच, लीणा वत्तेय अनिश्चता ॥ १६ ॥
अर्थ :---कर्म के सद्भाव में हो जो ( अनित्यता ) आत्मा के साथ रहती है और अनेक रूपों में परिलक्षित होती है। इस प्रकार देहधारियों की प्रकृतियों को अनियता ने लीन कर रखा है ।
गुजराती भाषान्तर :
કર્મના અસ્તિત્વમાં જે જે અનિત્યતા આત્માની સાથે રહે છે અને અનેક રૂપોમાં પરિલક્ષિત થાય છે, આજ પ્રમાણે પ્રાણિઓના પ્રકૃતિને નશ્વરતાએ લીન કરી રાખી છે.
माना कि जो वृत्तियाँ हैं और जो प्रवृत्तियां हैं वे सभी कर्म के सद्भाव में ही रह सकती है। मानव की विविध रूपता और संसार की विचित्रता जो कुछ भी दिखाई दे रही है ये सभी कर्मजन्य हैं। कोई डॉक्टर बनने का स्वप्न देखता हैं, तो कोई वकील बनना चाहता है, कोई इंजिनियर बनने के लिए अमेरिका पहुंच जाता है, तो कोई मिनिस्टर बनने की साथ रखता है। किन्तु यह अनित्यता सबको अपने में लीन कर लेती हैं। एक ही प्रहार में सब आशाओं का चूर करती हुई कहती है तुम्हारे सभी सपने झूठे होंगे ।
जं कडं देहिणा जेणं, णाणावण्णं सुहासुहं । पाणावत्थंतरोवेतं सव्यमण्णेति तं तहा ॥ १७ ॥
अर्थ :- देहधारी नानाविध जो शुभाशुभ कृत्य करते हैं और मनुष्य नाना प्रकार के वस्त्रों से युक्त होता है और वह उसी को पूर्ण मान बैठता है ।
गुजराती भाषान्तर :
પ્રાણિઓ જે અનેક શુભાશુભ કૃત્યો કરે છે અને તે મનુષ્ય નાના પ્રકારના વોથી યુક્ત થાય છે અને તેને જ તે સંપૂર્ણ માની બેસે છે.